अयोध्याकाण्ड
अयोध्याकाण्ड पेज 14
तात जाउँ बलि बेगि नहाहू। जो मन भाव मधुर कछु खाहू।।
पितु समीप तब जाएहु भैआ। भइ बड़ि बार जाइ बलि मैआ।।
मातु बचन सुनि अति अनुकूला। जनु सनेह सुरतरु के फूला।।
सुख मकरंद भरे श्रियमूला। निरखि राम मनु भवरुँ न भूला।।
धरम धुरीन धरम गति जानी। कहेउ मातु सन अति मृदु बानी।।
पिताँ दीन्ह मोहि कानन राजू। जहँ सब भाँति मोर बड़ काजू।।
आयसु देहि मुदित मन माता। जेहिं मुद मंगल कानन जाता।।
जनि सनेह बस डरपसि भोरें। आनँदु अंब अनुग्रह तोरें।।
दो0-बरष चारिदस बिपिन बसि करि पितु बचन प्रमान।
आइ पाय पुनि देखिहउँ मनु जनि करसि मलान।।53।।
बचन बिनीत मधुर रघुबर के। सर सम लगे मातु उर करके।।
सहमि सूखि सुनि सीतलि बानी। जिमि जवास परें पावस पानी।।
कहि न जाइ कछु हृदय बिषादू। मनहुँ मृगी सुनि केहरि नादू।।
नयन सजल तन थर थर काँपी। माजहि खाइ मीन जनु मापी।।
धरि धीरजु सुत बदनु निहारी। गदगद बचन कहति महतारी।।
तात पितहि तुम्ह प्रानपिआरे। देखि मुदित नित चरित तुम्हारे।।
राजु देन कहुँ सुभ दिन साधा। कहेउ जान बन केहिं अपराधा।।
तात सुनावहु मोहि निदानू। को दिनकर कुल भयउ कृसानू।।
दो0-निरखि राम रुख सचिवसुत कारनु कहेउ बुझाइ।
सुनि प्रसंगु रहि मूक जिमि दसा बरनि नहिं जाइ।।54।।
राखि न सकइ न कहि सक जाहू। दुहूँ भाँति उर दारुन दाहू।।
लिखत सुधाकर गा लिखि राहू। बिधि गति बाम सदा सब काहू।।
धरम सनेह उभयँ मति घेरी। भइ गति साँप छुछुंदरि केरी।।
राखउँ सुतहि करउँ अनुरोधू। धरमु जाइ अरु बंधु बिरोधू।।
कहउँ जान बन तौ बड़ि हानी। संकट सोच बिबस भइ रानी।।
बहुरि समुझि तिय धरमु सयानी। रामु भरतु दोउ सुत सम जानी।।
सरल सुभाउ राम महतारी। बोली बचन धीर धरि भारी।।
तात जाउँ बलि कीन्हेहु नीका। पितु आयसु सब धरमक टीका।।
दो0-राजु देन कहि दीन्ह बनु मोहि न सो दुख लेसु।
तुम्ह बिनु भरतहि भूपतिहि प्रजहि प्रचंड कलेसु।।55।।
जौं केवल पितु आयसु ताता। तौ जनि जाहु जानि बड़ि माता।।
जौं पितु मातु कहेउ बन जाना। तौं कानन सत अवध समाना।।
पितु बनदेव मातु बनदेवी। खग मृग चरन सरोरुह सेवी।।
अंतहुँ उचित नृपहि बनबासू। बय बिलोकि हियँ होइ हराँसू।।
बड़भागी बनु अवध अभागी। जो रघुबंसतिलक तुम्ह त्यागी।।
जौं सुत कहौ संग मोहि लेहू। तुम्हरे हृदयँ होइ संदेहू।।
पूत परम प्रिय तुम्ह सबही के। प्रान प्रान के जीवन जी के।।
ते तुम्ह कहहु मातु बन जाऊँ। मैं सुनि बचन बैठि पछिताऊँ।।
दो0-यह बिचारि नहिं करउँ हठ झूठ सनेहु बढ़ाइ।
मानि मातु कर नात बलि सुरति बिसरि जनि जाइ।।56।।
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See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217