अयोध्याकाण्ड
अयोध्याकाण्ड पेज 17
मातु पिता भगिनी प्रिय भाई। प्रिय परिवारु सुह्रद समुदाई।।
सासु ससुर गुर सजन सहाई। सुत सुंदर सुसील सुखदाई।।
जहँ लगि नाथ नेह अरु नाते। पिय बिनु तियहि तरनिहु ते ताते।।
तनु धनु धामु धरनि पुर राजू। पति बिहीन सबु सोक समाजू।।
भोग रोगसम भूषन भारू। जम जातना सरिस संसारू।।
प्राननाथ तुम्ह बिनु जग माहीं। मो कहुँ सुखद कतहुँ कछु नाहीं।।
जिय बिनु देह नदी बिनु बारी। तैसिअ नाथ पुरुष बिनु नारी।।
नाथ सकल सुख साथ तुम्हारें। सरद बिमल बिधु बदनु निहारें।।
दो0-खग मृग परिजन नगरु बनु बलकल बिमल दुकूल।
नाथ साथ सुरसदन सम परनसाल सुख मूल।।65।।
बनदेवीं बनदेव उदारा। करिहहिं सासु ससुर सम सारा।।
कुस किसलय साथरी सुहाई। प्रभु सँग मंजु मनोज तुराई।।
कंद मूल फल अमिअ अहारू। अवध सौध सत सरिस पहारू।।
छिनु छिनु प्रभु पद कमल बिलोकि। रहिहउँ मुदित दिवस जिमि कोकी।।
बन दुख नाथ कहे बहुतेरे। भय बिषाद परिताप घनेरे।।
प्रभु बियोग लवलेस समाना। सब मिलि होहिं न कृपानिधाना।।
अस जियँ जानि सुजान सिरोमनि। लेइअ संग मोहि छाड़िअ जनि।।
बिनती बहुत करौं का स्वामी। करुनामय उर अंतरजामी।।
दो0-राखिअ अवध जो अवधि लगि रहत न जनिअहिं प्रान।
दीनबंधु संदर सुखद सील सनेह निधान।।66।।
मोहि मग चलत न होइहि हारी। छिनु छिनु चरन सरोज निहारी।।
सबहि भाँति पिय सेवा करिहौं। मारग जनित सकल श्रम हरिहौं।।
पाय पखारी बैठि तरु छाहीं। करिहउँ बाउ मुदित मन माहीं।।
श्रम कन सहित स्याम तनु देखें। कहँ दुख समउ प्रानपति पेखें।।
सम महि तृन तरुपल्लव डासी। पाग पलोटिहि सब निसि दासी।।
बारबार मृदु मूरति जोही। लागहि तात बयारि न मोही।
को प्रभु सँग मोहि चितवनिहारा। सिंघबधुहि जिमि ससक सिआरा।।
मैं सुकुमारि नाथ बन जोगू। तुम्हहि उचित तप मो कहुँ भोगू।।
दो0-ऐसेउ बचन कठोर सुनि जौं न ह्रदउ बिलगान।
तौ प्रभु बिषम बियोग दुख सहिहहिं पावँर प्रान।।67।।
अस कहि सीय बिकल भइ भारी। बचन बियोगु न सकी सँभारी।।
देखि दसा रघुपति जियँ जाना। हठि राखें नहिं राखिहि प्राना।।
कहेउ कृपाल भानुकुलनाथा। परिहरि सोचु चलहु बन साथा।।
नहिं बिषाद कर अवसरु आजू। बेगि करहु बन गवन समाजू।।
कहि प्रिय बचन प्रिया समुझाई। लगे मातु पद आसिष पाई।।
बेगि प्रजा दुख मेटब आई। जननी निठुर बिसरि जनि जाई।।
फिरहि दसा बिधि बहुरि कि मोरी। देखिहउँ नयन मनोहर जोरी।।
सुदिन सुघरी तात कब होइहि। जननी जिअत बदन बिधु जोइहि।।
दो0-बहुरि बच्छ कहि लालु कहि रघुपति रघुबर तात।
कबहिं बोलाइ लगाइ हियँ हरषि निरखिहउँ गात।।68।।
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217