अयोध्याकाण्ड
अयोध्याकाण्ड पेज 21
एहि बिधि राम सबहि समुझावा। गुर पद पदुम हरषि सिरु नावा।
गनपती गौरि गिरीसु मनाई। चले असीस पाइ रघुराई।।
राम चलत अति भयउ बिषादू। सुनि न जाइ पुर आरत नादू।।
कुसगुन लंक अवध अति सोकू। हहरष बिषाद बिबस सुरलोकू।।
गइ मुरुछा तब भूपति जागे। बोलि सुमंत्रु कहन अस लागे।।
रामु चले बन प्रान न जाहीं। केहि सुख लागि रहत तन माहीं।
एहि तें कवन ब्यथा बलवाना। जो दुखु पाइ तजहिं तनु प्राना।।
पुनि धरि धीर कहइ नरनाहू। लै रथु संग सखा तुम्ह जाहू।।
दो0--सुठि सुकुमार कुमार दोउ जनकसुता सुकुमारि।
रथ चढ़ाइ देखराइ बनु फिरेहु गएँ दिन चारि।।81।।
जौ नहिं फिरहिं धीर दोउ भाई। सत्यसंध दृढ़ब्रत रघुराई।।
तौ तुम्ह बिनय करेहु कर जोरी। फेरिअ प्रभु मिथिलेसकिसोरी।।
जब सिय कानन देखि डेराई। कहेहु मोरि सिख अवसरु पाई।।
सासु ससुर अस कहेउ सँदेसू। पुत्रि फिरिअ बन बहुत कलेसू।।
पितृगृह कबहुँ कबहुँ ससुरारी। रहेहु जहाँ रुचि होइ तुम्हारी।।
एहि बिधि करेहु उपाय कदंबा। फिरइ त होइ प्रान अवलंबा।।
नाहिं त मोर मरनु परिनामा। कछु न बसाइ भएँ बिधि बामा।।
अस कहि मुरुछि परा महि राऊ। रामु लखनु सिय आनि देखाऊ।।
दो0--पाइ रजायसु नाइ सिरु रथु अति बेग बनाइ।
गयउ जहाँ बाहेर नगर सीय सहित दोउ भाइ।।82।।
तब सुमंत्र नृप बचन सुनाए। करि बिनती रथ रामु चढ़ाए।।
चढ़ि रथ सीय सहित दोउ भाई। चले हृदयँ अवधहि सिरु नाई।।
चलत रामु लखि अवध अनाथा। बिकल लोग सब लागे साथा।।
कृपासिंधु बहुबिधि समुझावहिं। फिरहिं प्रेम बस पुनि फिरि आवहिं।।
लागति अवध भयावनि भारी। मानहुँ कालराति अँधिआरी।।
घोर जंतु सम पुर नर नारी। डरपहिं एकहि एक निहारी।।
घर मसान परिजन जनु भूता। सुत हित मीत मनहुँ जमदूता।।
बागन्ह बिटप बेलि कुम्हिलाहीं। सरित सरोवर देखि न जाहीं।।
दो0-हय गय कोटिन्ह केलिमृग पुरपसु चातक मोर।
पिक रथांग सुक सारिका सारस हंस चकोर।।83।।
राम बियोग बिकल सब ठाढ़े। जहँ तहँ मनहुँ चित्र लिखि काढ़े।।
नगरु सफल बनु गहबर भारी। खग मृग बिपुल सकल नर नारी।।
बिधि कैकेई किरातिनि कीन्ही। जेंहि दव दुसह दसहुँ दिसि दीन्ही।।
सहि न सके रघुबर बिरहागी। चले लोग सब ब्याकुल भागी।।
सबहिं बिचार कीन्ह मन माहीं। राम लखन सिय बिनु सुखु नाहीं।।
जहाँ रामु तहँ सबुइ समाजू। बिनु रघुबीर अवध नहिं काजू।।
चले साथ अस मंत्रु दृढ़ाई। सुर दुर्लभ सुख सदन बिहाई।।
राम चरन पंकज प्रिय जिन्हही। बिषय भोग बस करहिं कि तिन्हही।।
दो0-बालक बृद्ध बिहाइ गृँह लगे लोग सब साथ।
तमसा तीर निवासु किय प्रथम दिवस रघुनाथ।।84।।
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217