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गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरित मानस

रामचरित मानस

अयोध्याकाण्ड

अयोध्याकाण्ड पेज 3

प्रथम जाइ जिन्ह बचन सुनाए। भूषन बसन भूरि तिन्ह पाए।।
प्रेम पुलकि तन मन अनुरागीं। मंगल कलस सजन सब लागीं।।
चौकें चारु सुमित्राँ पुरी। मनिमय बिबिध भाँति अति रुरी।।
आनँद मगन राम महतारी। दिए दान बहु बिप्र हँकारी।।
पूजीं ग्रामदेबि सुर नागा। कहेउ बहोरि देन बलिभागा।।
जेहि बिधि होइ राम कल्यानू। देहु दया करि सो बरदानू।।
गावहिं मंगल कोकिलबयनीं। बिधुबदनीं मृगसावकनयनीं।।

दो0-राम राज अभिषेकु सुनि हियँ हरषे नर नारि।
लगे सुमंगल सजन सब बिधि अनुकूल बिचारि।।8।।

तब नरनाहँ बसिष्ठु बोलाए। रामधाम सिख देन पठाए।।
गुर आगमनु सुनत रघुनाथा। द्वार आइ पद नायउ माथा।।
सादर अरघ देइ घर आने। सोरह भाँति पूजि सनमाने।।
गहे चरन सिय सहित बहोरी। बोले रामु कमल कर जोरी।।
सेवक सदन स्वामि आगमनू। मंगल मूल अमंगल दमनू।।
तदपि उचित जनु बोलि सप्रीती। पठइअ काज नाथ असि नीती।।
प्रभुता तजि प्रभु कीन्ह सनेहू। भयउ पुनीत आजु यहु गेहू।।
आयसु होइ सो करौं गोसाई। सेवक लहइ स्वामि सेवकाई।।

दो0-सुनि सनेह साने बचन मुनि रघुबरहि प्रसंस।
राम कस न तुम्ह कहहु अस हंस बंस अवतंस।।9।।

बरनि राम गुन सीलु सुभाऊ। बोले प्रेम पुलकि मुनिराऊ।।
भूप सजेउ अभिषेक समाजू। चाहत देन तुम्हहि जुबराजू।।
राम करहु सब संजम आजू। जौं बिधि कुसल निबाहै काजू।।
गुरु सिख देइ राय पहिं गयउ। राम हृदयँ अस बिसमउ भयऊ।।
जनमे एक संग सब भाई। भोजन सयन केलि लरिकाई।।
करनबेध उपबीत बिआहा। संग संग सब भए उछाहा।।
बिमल बंस यहु अनुचित एकू। बंधु बिहाइ बड़ेहि अभिषेकू।।   
प्रभु सप्रेम पछितानि सुहाई। हरउ भगत मन कै कुटिलाई।।

दो0-तेहि अवसर आए लखन मगन प्रेम आनंद।
सनमाने प्रिय बचन कहि रघुकुल कैरव चंद।।10।।

बाजहिं बाजने बिबिध बिधाना। पुर प्रमोदु नहिं जाइ बखाना।।
भरत आगमनु सकल मनावहिं। आवहुँ बेगि नयन फलु पावहिं।।
हाट बाट घर गलीं अथाई। कहहिं परसपर लोग लोगाई।।
कालि लगन भलि केतिक बारा। पूजिहि बिधि अभिलाषु हमारा।।
कनक सिंघासन सीय समेता। बैठहिं रामु होइ चित चेता।।
सकल कहहिं कब होइहि काली। बिघन मनावहिं देव कुचाली।।
तिन्हहि सोहाइ न अवध बधावा। चोरहि चंदिनि राति न भावा।।
सारद बोलि बिनय सुर करहीं। बारहिं बार पाय लै परहीं।।

दो0-बिपति हमारि बिलोकि बड़ि मातु करिअ सोइ आजु।
रामु जाहिं बन राजु तजि होइ सकल सुरकाजु।।11।।

 

 

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