अयोध्याकाण्ड
अयोध्याकाण्ड पेज 42
मुख प्रसन्न मन रंग न रोषू। सब कर सब बिधि करि परितोषू।।
चले बिपिन सुनि सिय सँग लागी। रहइ न राम चरन अनुरागी।।
सुनतहिं लखनु चले उठि साथा। रहहिं न जतन किए रघुनाथा।।
तब रघुपति सबही सिरु नाई। चले संग सिय अरु लघु भाई।।
रामु लखनु सिय बनहि सिधाए। गइउँ न संग न प्रान पठाए।।
यहु सबु भा इन्ह आँखिन्ह आगें। तउ न तजा तनु जीव अभागें।।
मोहि न लाज निज नेहु निहारी। राम सरिस सुत मैं महतारी।।
जिऐ मरै भल भूपति जाना। मोर हृदय सत कुलिस समाना।।
दो0- कौसल्या के बचन सुनि भरत सहित रनिवास।
ब्याकुल बिलपत राजगृह मानहुँ सोक नेवासु।।166।।
बिलपहिं बिकल भरत दोउ भाई। कौसल्याँ लिए हृदयँ लगाई।।
भाँति अनेक भरतु समुझाए। कहि बिबेकमय बचन सुनाए।।
भरतहुँ मातु सकल समुझाईं। कहि पुरान श्रुति कथा सुहाईं।।
छल बिहीन सुचि सरल सुबानी। बोले भरत जोरि जुग पानी।।
जे अघ मातु पिता सुत मारें। गाइ गोठ महिसुर पुर जारें।।
जे अघ तिय बालक बध कीन्हें। मीत महीपति माहुर दीन्हें।।
जे पातक उपपातक अहहीं। करम बचन मन भव कबि कहहीं।।
ते पातक मोहि होहुँ बिधाता। जौं यहु होइ मोर मत माता।।
दो0-जे परिहरि हरि हर चरन भजहिं भूतगन घोर।
तेहि कइ गति मोहि देउ बिधि जौं जननी मत मोर।।167।।
बेचहिं बेदु धरमु दुहि लेहीं। पिसुन पराय पाप कहि देहीं।।
कपटी कुटिल कलहप्रिय क्रोधी। बेद बिदूषक बिस्व बिरोधी।।
लोभी लंपट लोलुपचारा। जे ताकहिं परधनु परदारा।।
पावौं मैं तिन्ह के गति घोरा। जौं जननी यहु संमत मोरा।।
जे नहिं साधुसंग अनुरागे। परमारथ पथ बिमुख अभागे।।
जे न भजहिं हरि नरतनु पाई। जिन्हहि न हरि हर सुजसु सोहाई।।
तजि श्रुतिपंथु बाम पथ चलहीं। बंचक बिरचि बेष जगु छलहीं।।
तिन्ह कै गति मोहि संकर देऊ। जननी जौं यहु जानौं भेऊ।।
दो0-मातु भरत के बचन सुनि साँचे सरल सुभायँ।
कहति राम प्रिय तात तुम्ह सदा बचन मन कायँ।।168।।
राम प्रानहु तें प्रान तुम्हारे। तुम्ह रघुपतिहि प्रानहु तें प्यारे।।
बिधु बिष चवै स्त्रवै हिमु आगी। होइ बारिचर बारि बिरागी।।
भएँ ग्यानु बरु मिटै न मोहू। तुम्ह रामहि प्रतिकूल न होहू।।
मत तुम्हार यहु जो जग कहहीं। सो सपनेहुँ सुख सुगति न लहहीं।।
अस कहि मातु भरतु हियँ लाए। थन पय स्त्रवहिं नयन जल छाए।।
करत बिलाप बहुत यहि भाँती। बैठेहिं बीति गइ सब राती।।
बामदेउ बसिष्ठ तब आए। सचिव महाजन सकल बोलाए।।
मुनि बहु भाँति भरत उपदेसे। कहि परमारथ बचन सुदेसे।।
दो0-तात हृदयँ धीरजु धरहु करहु जो अवसर आजु।
उठे भरत गुर बचन सुनि करन कहेउ सबु साजु।।169।।
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See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217