अयोध्याकाण्ड
अयोध्याकाण्ड पेज 44
सब प्रकार भूपति बड़भागी। बादि बिषादु करिअ तेहि लागी।।
यहु सुनि समुझि सोचु परिहरहू। सिर धरि राज रजायसु करहू।।
राँय राजपदु तुम्ह कहुँ दीन्हा। पिता बचनु फुर चाहिअ कीन्हा।।
तजे रामु जेहिं बचनहि लागी। तनु परिहरेउ राम बिरहागी।।
नृपहि बचन प्रिय नहिं प्रिय प्राना। करहु तात पितु बचन प्रवाना।।
करहु सीस धरि भूप रजाई। हइ तुम्ह कहँ सब भाँति भलाई।।
परसुराम पितु अग्या राखी। मारी मातु लोक सब साखी।।
तनय जजातिहि जौबनु दयऊ। पितु अग्याँ अघ अजसु न भयऊ।।
दो0-अनुचित उचित बिचारु तजि जे पालहिं पितु बैन।
ते भाजन सुख सुजस के बसहिं अमरपति ऐन।।174।।
अवसि नरेस बचन फुर करहू। पालहु प्रजा सोकु परिहरहू।।
सुरपुर नृप पाइहि परितोषू। तुम्ह कहुँ सुकृत सुजसु नहिं दोषू।।
बेद बिदित संमत सबही का। जेहि पितु देइ सो पावइ टीका।।
करहु राजु परिहरहु गलानी। मानहु मोर बचन हित जानी।।
सुनि सुखु लहब राम बैदेहीं। अनुचित कहब न पंडित केहीं।।
कौसल्यादि सकल महतारीं। तेउ प्रजा सुख होहिं सुखारीं।।
परम तुम्हार राम कर जानिहि। सो सब बिधि तुम्ह सन भल मानिहि।।
सौंपेहु राजु राम कै आएँ। सेवा करेहु सनेह सुहाएँ।।
दो0-कीजिअ गुर आयसु अवसि कहहिं सचिव कर जोरि।
रघुपति आएँ उचित जस तस तब करब बहोरि।।175।।
कौसल्या धरि धीरजु कहई। पूत पथ्य गुर आयसु अहई।।
सो आदरिअ करिअ हित मानी। तजिअ बिषादु काल गति जानी।।
बन रघुपति सुरपति नरनाहू। तुम्ह एहि भाँति तात कदराहू।।
परिजन प्रजा सचिव सब अंबा। तुम्हही सुत सब कहँ अवलंबा।।
लखि बिधि बाम कालु कठिनाई। धीरजु धरहु मातु बलि जाई।।
सिर धरि गुर आयसु अनुसरहू। प्रजा पालि परिजन दुखु हरहू।।
गुर के बचन सचिव अभिनंदनु। सुने भरत हिय हित जनु चंदनु।।
सुनी बहोरि मातु मृदु बानी। सील सनेह सरल रस सानी।।
छं0-सानी सरल रस मातु बानी सुनि भरत ब्याकुल भए।
लोचन सरोरुह स्त्रवत सींचत बिरह उर अंकुर नए।।
सो दसा देखत समय तेहि बिसरी सबहि सुधि देह की।
तुलसी सराहत सकल सादर सीवँ सहज सनेह की।।
सो0-भरतु कमल कर जोरि धीर धुरंधर धीर धरि।
बचन अमिअँ जनु बोरि देत उचित उत्तर सबहि।।176।।
मासपारायण, अठारहवाँ विश्राम
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217