बालकाण्ड
बालकाण्ड पेज 38
हिमगिरि गुहा एक अति पावनि। बह समीप सुरसरी सुहावनि।।
आश्रम परम पुनीत सुहावा। देखि देवरिषि मन अति भावा।।
निरखि सैल सरि बिपिन बिभागा। भयउ रमापति पद अनुरागा।।
सुमिरत हरिहि श्राप गति बाधी। सहज बिमल मन लागि समाधी।।
मुनि गति देखि सुरेस डेराना। कामहि बोलि कीन्ह समाना।।
सहित सहाय जाहु मम हेतू। चकेउ हरषि हियँ जलचरकेतू।।
सुनासीर मन महुँ असि त्रासा। चहत देवरिषि मम पुर बासा।।
जे कामी लोलुप जग माहीं। कुटिल काक इव सबहि डेराहीं।।
दो0-सुख हाड़ लै भाग सठ स्वान निरखि मृगराज।
छीनि लेइ जनि जान जड़ तिमि सुरपतिहि न लाज।।125।।
तेहि आश्रमहिं मदन जब गयऊ। निज मायाँ बसंत निरमयऊ।।
कुसुमित बिबिध बिटप बहुरंगा। कूजहिं कोकिल गुंजहि भृंगा।।
चली सुहावनि त्रिबिध बयारी। काम कृसानु बढ़ावनिहारी।।
रंभादिक सुरनारि नबीना । सकल असमसर कला प्रबीना।।
करहिं गान बहु तान तरंगा। बहुबिधि क्रीड़हि पानि पतंगा।।
देखि सहाय मदन हरषाना। कीन्हेसि पुनि प्रपंच बिधि नाना।।
काम कला कछु मुनिहि न ब्यापी। निज भयँ डरेउ मनोभव पापी।।
सीम कि चाँपि सकइ कोउ तासु। बड़ रखवार रमापति जासू।।
दो0- सहित सहाय सभीत अति मानि हारि मन मैन।
गहेसि जाइ मुनि चरन तब कहि सुठि आरत बैन।।126।।
भयउ न नारद मन कछु रोषा। कहि प्रिय बचन काम परितोषा।।
नाइ चरन सिरु आयसु पाई। गयउ मदन तब सहित सहाई।।
मुनि सुसीलता आपनि करनी। सुरपति सभाँ जाइ सब बरनी।।
सुनि सब कें मन अचरजु आवा। मुनिहि प्रसंसि हरिहि सिरु नावा।।
तब नारद गवने सिव पाहीं। जिता काम अहमिति मन माहीं।।
मार चरित संकरहिं सुनाए। अतिप्रिय जानि महेस सिखाए।।
बार बार बिनवउँ मुनि तोहीं। जिमि यह कथा सुनायहु मोहीं।।
तिमि जनि हरिहि सुनावहु कबहूँ। चलेहुँ प्रसंग दुराएडु तबहूँ।।
दो0-संभु दीन्ह उपदेस हित नहिं नारदहि सोहान।
भारद्वाज कौतुक सुनहु हरि इच्छा बलवान।।127।।
राम कीन्ह चाहहिं सोइ होई। करै अन्यथा अस नहिं कोई।।
संभु बचन मुनि मन नहिं भाए। तब बिरंचि के लोक सिधाए।।
एक बार करतल बर बीना। गावत हरि गुन गान प्रबीना।।
छीरसिंधु गवने मुनिनाथा। जहँ बस श्रीनिवास श्रुतिमाथा।।
हरषि मिले उठि रमानिकेता। बैठे आसन रिषिहि समेता।।
बोले बिहसि चराचर राया। बहुते दिनन कीन्हि मुनि दाया।।
काम चरित नारद सब भाषे। जद्यपि प्रथम बरजि सिवँ राखे।।
अति प्रचंड रघुपति कै माया। जेहि न मोह अस को जग जाया।।
दो0-रूख बदन करि बचन मृदु बोले श्रीभगवान ।
तुम्हरे सुमिरन तें मिटहिं मोह मार मद मान।।128।।
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See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217