बालकाण्ड
बालकाण्ड पेज 49
एहि बिधि भूप कष्ट अति थोरें। होइहहिं सकल बिप्र बस तोरें।।
करिहहिं बिप्र होम मख सेवा। तेहिं प्रसंग सहजेहिं बस देवा।।
और एक तोहि कहऊँ लखाऊ। मैं एहि बेष न आउब काऊ।।
तुम्हरे उपरोहित कहुँ राया। हरि आनब मैं करि निज माया।।
तपबल तेहि करि आपु समाना। रखिहउँ इहाँ बरष परवाना।।
मैं धरि तासु बेषु सुनु राजा। सब बिधि तोर सँवारब काजा।।
गै निसि बहुत सयन अब कीजे। मोहि तोहि भूप भेंट दिन तीजे।।
मैं तपबल तोहि तुरग समेता। पहुँचेहउँ सोवतहि निकेता।।
दो0-मैं आउब सोइ बेषु धरि पहिचानेहु तब मोहि।
जब एकांत बोलाइ सब कथा सुनावौं तोहि।।169।।
सयन कीन्ह नृप आयसु मानी। आसन जाइ बैठ छलग्यानी।।
श्रमित भूप निद्रा अति आई। सो किमि सोव सोच अधिकाई।।
कालकेतु निसिचर तहँ आवा। जेहिं सूकर होइ नृपहि भुलावा।।
परम मित्र तापस नृप केरा। जानइ सो अति कपट घनेरा।।
तेहि के सत सुत अरु दस भाई। खल अति अजय देव दुखदाई।।
प्रथमहि भूप समर सब मारे। बिप्र संत सुर देखि दुखारे।।
तेहिं खल पाछिल बयरु सँभरा। तापस नृप मिलि मंत्र बिचारा।।
जेहि रिपु छय सोइ रचेन्हि उपाऊ। भावी बस न जान कछु राऊ।।
दो0-रिपु तेजसी अकेल अपि लघु करि गनिअ न ताहु।
अजहुँ देत दुख रबि ससिहि सिर अवसेषित राहु।।170।।
तापस नृप निज सखहि निहारी। हरषि मिलेउ उठि भयउ सुखारी।।
मित्रहि कहि सब कथा सुनाई। जातुधान बोला सुख पाई।।
अब साधेउँ रिपु सुनहु नरेसा। जौं तुम्ह कीन्ह मोर उपदेसा।।
परिहरि सोच रहहु तुम्ह सोई। बिनु औषध बिआधि बिधि खोई।।
कुल समेत रिपु मूल बहाई। चौथे दिवस मिलब मैं आई।।
तापस नृपहि बहुत परितोषी। चला महाकपटी अतिरोषी।।
भानुप्रतापहि बाजि समेता। पहुँचाएसि छन माझ निकेता।।
नृपहि नारि पहिं सयन कराई। हयगृहँ बाँधेसि बाजि बनाई।।
दो0-राजा के उपरोहितहि हरि लै गयउ बहोरि।
लै राखेसि गिरि खोह महुँ मायाँ करि मति भोरि।।171।।
आपु बिरचि उपरोहित रूपा। परेउ जाइ तेहि सेज अनूपा।।
जागेउ नृप अनभएँ बिहाना। देखि भवन अति अचरजु माना।।
मुनि महिमा मन महुँ अनुमानी। उठेउ गवँहि जेहि जान न रानी।।
कानन गयउ बाजि चढ़ि तेहीं। पुर नर नारि न जानेउ केहीं।।
गएँ जाम जुग भूपति आवा। घर घर उत्सव बाज बधावा।।
उपरोहितहि देख जब राजा। चकित बिलोकि सुमिरि सोइ काजा।।
जुग सम नृपहि गए दिन तीनी। कपटी मुनि पद रह मति लीनी।।
समय जानि उपरोहित आवा। नृपहि मते सब कहि समुझावा।।
दो0-नृप हरषेउ पहिचानि गुरु भ्रम बस रहा न चेत।
बरे तुरत सत सहस बर बिप्र कुटुंब समेत।।172।।
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See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217