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गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरित मानस

रामचरित मानस

बालकाण्ड

बालकाण्ड पेज 56

कैकयसुता सुमित्रा दोऊ। सुंदर सुत जनमत भैं ओऊ।।
वह सुख संपति समय समाजा। कहि न सकइ सारद अहिराजा।।
अवधपुरी सोहइ एहि भाँती। प्रभुहि मिलन आई जनु राती।।
देखि भानू जनु मन सकुचानी। तदपि बनी संध्या अनुमानी।।
अगर धूप बहु जनु अँधिआरी। उड़इ अभीर मनहुँ अरुनारी।।
मंदिर मनि समूह जनु तारा। नृप गृह कलस सो इंदु उदारा।।
भवन बेदधुनि अति मृदु बानी। जनु खग मूखर समयँ जनु सानी।।
कौतुक देखि पतंग भुलाना। एक मास तेइँ जात न जाना।।

दो0-मास दिवस कर दिवस भा मरम न जानइ कोइ।   
रथ समेत रबि थाकेउ निसा कवन बिधि होइ।।195।।


यह रहस्य काहू नहिं जाना। दिन मनि चले करत गुनगाना।।
देखि महोत्सव सुर मुनि नागा। चले भवन बरनत निज भागा।।
औरउ एक कहउँ निज चोरी। सुनु गिरिजा अति दृढ़ मति तोरी।।
काक भुसुंडि संग हम दोऊ। मनुजरूप जानइ नहिं कोऊ।।
परमानंद प्रेमसुख फूले। बीथिन्ह फिरहिं मगन मन भूले।।
यह सुभ चरित जान पै सोई। कृपा राम कै जापर होई।।
तेहि अवसर जो जेहि बिधि आवा। दीन्ह भूप जो जेहि मन भावा।।
गज रथ तुरग हेम गो हीरा। दीन्हे नृप नानाबिधि चीरा।।

दो0-मन संतोषे सबन्हि के जहँ तहँ देहि असीस।
सकल तनय चिर जीवहुँ तुलसिदास के ईस।।196।।

कछुक दिवस बीते एहि भाँती। जात न जानिअ दिन अरु राती।।
नामकरन कर अवसरु जानी। भूप बोलि पठए मुनि ग्यानी।।
करि पूजा भूपति अस भाषा। धरिअ नाम जो मुनि गुनि राखा।।
इन्ह के नाम अनेक अनूपा। मैं नृप कहब स्वमति अनुरूपा।।
जो आनंद सिंधु सुखरासी। सीकर तें त्रैलोक सुपासी।।
सो सुख धाम राम अस नामा। अखिल लोक दायक बिश्रामा।।
बिस्व भरन पोषन कर जोई। ताकर नाम भरत अस होई।।
जाके सुमिरन तें रिपु नासा। नाम सत्रुहन बेद प्रकासा।।

दो0-लच्छन धाम राम प्रिय सकल जगत आधार।
गुरु बसिष्ट तेहि राखा लछिमन नाम उदार।।197।।


धरे नाम गुर हृदयँ बिचारी। बेद तत्व नृप तव सुत चारी।।
मुनि धन जन सरबस सिव प्राना। बाल केलि तेहिं सुख माना।।
बारेहि ते निज हित पति जानी। लछिमन राम चरन रति मानी।।
भरत सत्रुहन दूनउ भाई। प्रभु सेवक जसि प्रीति बड़ाई।।
स्याम गौर सुंदर दोउ जोरी। निरखहिं छबि जननीं तृन तोरी।।
चारिउ सील रूप गुन धामा। तदपि अधिक सुखसागर रामा।।
हृदयँ अनुग्रह इंदु प्रकासा। सूचत किरन मनोहर हासा।।
कबहुँ उछंग कबहुँ बर पलना। मातु दुलारइ कहि प्रिय ललना।।

दो0-ब्यापक ब्रह्म निरंजन निर्गुन बिगत बिनोद।
सो अज प्रेम भगति बस कौसल्या के गोद।।198।।

 

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