बालकाण्ड
बालकाण्ड पेज 82
बाँधे बिरद बीर रन गाढ़े। निकसि भए पुर बाहेर ठाढ़े।।
फेरहिं चतुर तुरग गति नाना। हरषहिं सुनि सुनि पवन निसाना।।
रथ सारथिन्ह बिचित्र बनाए। ध्वज पताक मनि भूषन लाए।।
चवँर चारु किंकिन धुनि करही। भानु जान सोभा अपहरहीं।।
सावँकरन अगनित हय होते। ते तिन्ह रथन्ह सारथिन्ह जोते।।
सुंदर सकल अलंकृत सोहे। जिन्हहि बिलोकत मुनि मन मोहे।।
जे जल चलहिं थलहि की नाई। टाप न बूड़ बेग अधिकाई।।
अस्त्र सस्त्र सबु साजु बनाई। रथी सारथिन्ह लिए बोलाई।।
दो0-चढ़ि चढ़ि रथ बाहेर नगर लागी जुरन बरात।
होत सगुन सुन्दर सबहि जो जेहि कारज जात।।299।।
कलित करिबरन्हि परीं अँबारीं। कहि न जाहिं जेहि भाँति सँवारीं।।
चले मत्तगज घंट बिराजी। मनहुँ सुभग सावन घन राजी।।
बाहन अपर अनेक बिधाना। सिबिका सुभग सुखासन जाना।।
तिन्ह चढ़ि चले बिप्रबर बृन्दा। जनु तनु धरें सकल श्रुति छंदा।।
मागध सूत बंदि गुनगायक। चले जान चढ़ि जो जेहि लायक।।
बेसर ऊँट बृषभ बहु जाती। चले बस्तु भरि अगनित भाँती।।
कोटिन्ह काँवरि चले कहारा। बिबिध बस्तु को बरनै पारा।।
चले सकल सेवक समुदाई। निज निज साजु समाजु बनाई।।
दो0-सब कें उर निर्भर हरषु पूरित पुलक सरीर।
कबहिं देखिबे नयन भरि रामु लखनू दोउ बीर।।300।।
गरजहिं गज घंटा धुनि घोरा। रथ रव बाजि हिंस चहु ओरा।।
निदरि घनहि घुर्म्मरहिं निसाना। निज पराइ कछु सुनिअ न काना।।
महा भीर भूपति के द्वारें। रज होइ जाइ पषान पबारें।।
चढ़ी अटारिन्ह देखहिं नारीं। लिँएँ आरती मंगल थारी।।
गावहिं गीत मनोहर नाना। अति आनंदु न जाइ बखाना।।
तब सुमंत्र दुइ स्पंदन साजी। जोते रबि हय निंदक बाजी।।
दोउ रथ रुचिर भूप पहिं आने। नहिं सारद पहिं जाहिं बखाने।।
राज समाजु एक रथ साजा। दूसर तेज पुंज अति भ्राजा।।
दो0-तेहिं रथ रुचिर बसिष्ठ कहुँ हरषि चढ़ाइ नरेसु।
आपु चढ़ेउ स्पंदन सुमिरि हर गुर गौरि गनेसु।।301।।
सहित बसिष्ठ सोह नृप कैसें। सुर गुर संग पुरंदर जैसें।।
करि कुल रीति बेद बिधि राऊ। देखि सबहि सब भाँति बनाऊ।।
सुमिरि रामु गुर आयसु पाई। चले महीपति संख बजाई।।
हरषे बिबुध बिलोकि बराता। बरषहिं सुमन सुमंगल दाता।।
भयउ कोलाहल हय गय गाजे। ब्योम बरात बाजने बाजे।।
सुर नर नारि सुमंगल गाई। सरस राग बाजहिं सहनाई।।
घंट घंटि धुनि बरनि न जाहीं। सरव करहिं पाइक फहराहीं।।
करहिं बिदूषक कौतुक नाना। हास कुसल कल गान सुजाना ।
दो0-तुरग नचावहिं कुँअर बर अकनि मृदंग निसान।।
नागर नट चितवहिं चकित डगहिं न ताल बँधान।।302।।
बनइ न बरनत बनी बराता। होहिं सगुन सुंदर सुभदाता।।
चारा चाषु बाम दिसि लेई। मनहुँ सकल मंगल कहि देई।।
दाहिन काग सुखेत सुहावा। नकुल दरसु सब काहूँ पावा।।
सानुकूल बह त्रिबिध बयारी। सघट सवाल आव बर नारी।।
लोवा फिरि फिरि दरसु देखावा। सुरभी सनमुख सिसुहि पिआवा।।
मृगमाला फिरि दाहिनि आई। मंगल गन जनु दीन्हि देखाई।।
छेमकरी कह छेम बिसेषी। स्यामा बाम सुतरु पर देखी।।
सनमुख आयउ दधि अरु मीना। कर पुस्तक दुइ बिप्र प्रबीना।।
दो0-मंगलमय कल्यानमय अभिमत फल दातार।
जनु सब साचे होन हित भए सगुन एक बार।।303।।
मंगल सगुन सुगम सब ताकें। सगुन ब्रह्म सुंदर सुत जाकें।।
राम सरिस बरु दुलहिनि सीता। समधी दसरथु जनकु पुनीता।।
सुनि अस ब्याहु सगुन सब नाचे। अब कीन्हे बिरंचि हम साँचे।।
एहि बिधि कीन्ह बरात पयाना। हय गय गाजहिं हने निसाना।।
आवत जानि भानुकुल केतू। सरितन्हि जनक बँधाए सेतू।।
बीच बीच बर बास बनाए। सुरपुर सरिस संपदा छाए।।
असन सयन बर बसन सुहाए। पावहिं सब निज निज मन भाए।।
नित नूतन सुख लखि अनुकूले। सकल बरातिन्ह मंदिर भूले।।
दो0-आवत जानि बरात बर सुनि गहगहे निसान।
सजि गज रथ पदचर तुरग लेन चले अगवान।।304।।
मासपारायण,दसवाँ विश्राम
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217