Home Page

States of India

Hindi Literature

Religion in India

Articles

Art and Culture

 

गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरित मानस

रामचरित मानस

लंकाकाण्ड

लंकाकाण्ड पेज 25

एहीं बीच निसाचर अनी। कसमसात आई अति घनी।
देखि चले सन्मुख कपि भट्टा। प्रलयकाल के जनु घन घट्टा।।
बहु कृपान तरवारि चमंकहिं। जनु दहँ दिसि दामिनीं दमंकहिं।।
गज रथ तुरग चिकार कठोरा। गर्जहिं मनहुँ बलाहक घोरा।।
कपि लंगूर बिपुल नभ छाए। मनहुँ इंद्रधनु उए सुहाए।।
उठइ धूरि मानहुँ जलधारा। बान बुंद भै बृष्टि अपारा।।
दुहुँ दिसि पर्बत करहिं प्रहारा। बज्रपात जनु बारहिं बारा।।
रघुपति कोपि बान झरि लाई। घायल भै निसिचर समुदाई।।
लागत बान बीर चिक्करहीं। घुर्मि घुर्मि जहँ तहँ महि परहीं।।
स्त्रवहिं सैल जनु निर्झर भारी। सोनित सरि कादर भयकारी।।

छं0-कादर भयंकर रुधिर सरिता चली परम अपावनी।
दोउ कूल दल रथ रेत चक्र अबर्त बहति भयावनी।।
जल जंतुगज पदचर तुरग खर बिबिध बाहन को गने।
सर सक्ति तोमर सर्प चाप तरंग चर्म कमठ घने।।
दो0-बीर परहिं जनु तीर तरु मज्जा बहु बह फेन।
कादर देखि डरहिं तहँ सुभटन्ह के मन चेन।।87।।


मज्जहि भूत पिसाच बेताला। प्रमथ महा झोटिंग कराला।।
काक कंक लै भुजा उड़ाहीं। एक ते छीनि एक लै खाहीं।।
एक कहहिं ऐसिउ सौंघाई। सठहु तुम्हार दरिद्र न जाई।।
कहँरत भट घायल तट गिरे। जहँ तहँ मनहुँ अर्धजल परे।।
खैंचहिं गीध आँत तट भए। जनु बंसी खेलत चित दए।।
बहु भट बहहिं चढ़े खग जाहीं। जनु नावरि खेलहिं सरि माहीं।।
जोगिनि भरि भरि खप्पर संचहिं। भूत पिसाच बधू नभ नंचहिं।।
भट कपाल करताल बजावहिं। चामुंडा नाना बिधि गावहिं।।
जंबुक निकर कटक्कट कट्टहिं। खाहिं हुआहिं अघाहिं दपट्टहिं।।
कोटिन्ह रुंड मुंड बिनु डोल्लहिं। सीस परे महि जय जय बोल्लहिं।।

छं0-बोल्लहिं जो जय जय मुंड रुंड प्रचंड सिर बिनु धावहीं।
खप्परिन्ह खग्ग अलुज्झि जुज्झहिं सुभट भटन्ह ढहावहीं।।
बानर निसाचर निकर मर्दहिं राम बल दर्पित भए।
संग्राम अंगन सुभट सोवहिं राम सर निकरन्हि हए।।
दो0-रावन हृदयँ बिचारा भा निसिचर संघार।
मैं अकेल कपि भालु बहु माया करौं अपार।।88।।


देवन्ह प्रभुहि पयादें देखा। उपजा उर अति छोभ बिसेषा।।
सुरपति निज रथ तुरत पठावा। हरष सहित मातलि लै आवा।।
तेज पुंज रथ दिब्य अनूपा। हरषि चढ़े कोसलपुर भूपा।।
चंचल तुरग मनोहर चारी। अजर अमर मन सम गतिकारी।।
रथारूढ़ रघुनाथहि देखी। धाए कपि बलु पाइ बिसेषी।।
सही न जाइ कपिन्ह कै मारी। तब रावन माया बिस्तारी।।
सो माया रघुबीरहि बाँची। लछिमन कपिन्ह सो मानी साँची।।
देखी कपिन्ह निसाचर अनी। अनुज सहित बहु कोसलधनी।।

छं0-बहु राम लछिमन देखि मर्कट भालु मन अति अपडरे।
जनु चित्र लिखित समेत लछिमन जहँ सो तहँ चितवहिं खरे।।
निज सेन चकित बिलोकि हँसि सर चाप सजि कोसल धनी।
माया हरी हरि निमिष महुँ हरषी सकल मर्कट अनी।।
दो0-बहुरि राम सब तन चितइ बोले बचन गँभीर।
द्वंदजुद्ध देखहु सकल श्रमित भए अति बीर।।89।।

 

National Record 2012

Most comprehensive state website
Bihar-in-limca-book-of-records

Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)

See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217