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फणीश्वर नाथ रेणु मारे गए गुलफ़ाम उर्फ़ तीसरी कसम

फणीश्वर नाथ रेणु मारे गए गुलफ़ाम उर्फ़ तीसरी कसम

हिरामन गप रसाने का भेद जानता है। हीराबाई बोली, ''तुमने देखा था वह जमाना?''''देखा नहीं, सुना है। राज कैसे गया, बड़ी हैफवाली कहानी है। सुनते हैं, घर में देवता ने जन्म ले लिया। कहिए भला, देवता आखिर देवता है। है या नहीं? इंदरासन छोड़कर मिरतूभुवन में जन्म ले ले तो उसका तेज कैसे सम्हाल सकता है कोई! सूरजमुखी फूल की तरह माथे के पास तेज खिला रहता।लेकिन नजर का फेर किसी ने नहीं पहचाना। एक बार उपलैन में लाट साहब मय लाटनी के, हवागाड़ी से आए थे। लाट ने भी नहीं, पहचाना आखिर लटनी ने। सुरजमुखी तेज देखते ही बोल उठी, ए मैन राजा साहब, सुनो, यह आदमी का बच्चा नहीं हैं, देवता हैं।''

हिरामन ने लाटनी की बोली की नकल उतारते समय खूब डैम-फैट-लैट किया। हीराबाई दिल खोलकर हँसी। हँसते समय उसकी सारी देह दुलकती है।
हीराबाई ने अपनी ओढ़नी ठीक कर ली। तब हिरामन को लगा कि लगा कि...
''तब? उसके बाद क्या हुआ मीता?''
''इस्स! कथ्था सुनने का बड़ा सौक है आपको? लेकिन, काला आदमी, राजा क्या महाराजा भी हो जाए, रहेगा काला आदमी ही। साहेब के जैसे अक्किल कहाँ से पाएगा! हँसकर बात उड़ा दी सभी ने। तब रानी को बार-बार सपना देने लगा देवता! सेवा नहीं कर सकते तो जाने दो, नहीं, रहेंगे तुम्हारे यहाँ। इसके बाद देवता का खेल शुरू हुआ। सबसे पहले दोनों दंतार हाथी मरे, फिर घोड़ा, फिर पटपटांग।''
''पटपटांग क्या है?''
हिरामन का मन पल-पल में बदल रहा है। मन में सतरंगा छाता धीरे-धीरे खिल रहा है, उसको लगता है। उसकी गाड़ी पर देवकुल की औरत सवार है। देवता आखिर देवता है!
''पटपटांग! धन-दौलत, माल-मवेसी सब साफ! देवता इंदरासन चला गया।''

हीराबाई ने ओझल होते हुए मंदिर के कँगूरे की ओर देखकर लंबी साँस ली। ''लेकिन देवता ने जाते-जाते कहा, इस राज में कभी एक छोड़कर दो बेटा नहीं होगा। धन हम अपने साथ ले जा रहे हैं, गुन छोड़ जाते हैं। देवता के साथ सभी देव-देवी चले गए, सिर्फ सरोसती मैया रह गई। उसी का मंदिर है।''

देसी घोड़े पर पाट के बोझ लादे हुए बनियों को आते देखकर हिरामन ने टप्पर के परदि को गिरा दिया। बैलों को ललकार कर बिदेसिया नाच का बंदनागीत गाने लगा-
''जी मैया सरोसती, अरजी करत बानी;
हमरा पर होखू सहाई हे मैया, हमरा पर होखू सहाई!''
घोड़ेवाले बनियों से हिरामन ने हुलसकर पूछा, ''क्या भाव पटुआ खरीदते है महाजन?''

लंगड़े घोड़ेवाले बनिये ने बटगमनी जवाब दिया, ''नीचे सताइस-अठाइस, ऊपर तीस। जैसा माल, वैसा भाव।''
जवान बनिये ने पूछा, ''मेले का क्या हालचाल है, भाई? कौन नौटंकी कंपनी का खेल हो रहा है, रौता कंपनी या मथुरामोहन?''

''मेले का हाल मेलावाला जाने?'' हिरामन ने फिर छतापुर-पचीरा का नाम लिया।

सूरज दो बाँस ऊपर आ गया था। हिरामन अपने बैलों से बात करने लगा, ''एक कोस जमीन! जरा दम बाँधकर चलो। प्यास की बेला हो गई न! याद है, उस बार तेगछिया के पास सरकस कंपनी के जोकर और बंदर नचानेवाला साहब में झगड़ा हो गया था। जोकरवा ठीक बंदर की तरह दाँत किटकिटाकर किक्रियाने लगा था, न जाने किस-किस देस-मुलुक के आदमी आते हैं!''

हिरामन ने फिर परदे के छेद से देखा, हीराबई एक कागज के टुकड़े पर आँख गड़ाकर बैठी है। हिरामन का मन आज हल्के सुर में बँधा है। उसको तरह-तरह के गीतों की याद आती है। बीस-पच्चीस साल पहले, बिदेसिया, बलवाही, छोकरा-नाचनेवाले एक-से-एक गजल खेमटा गाते थे। अब तो, भोंपा में भोंपू-भोंपू करके कौन गीत गाते हैं लोग! जा रे जमाना! छोकरा-नाच के गीत की याद आई हिरामन को-

''सजनवा बैरी हो ग'य हमारो! सजनवा!

अरे, चिठिया हो ते सब कोई बाँचे; चिठिया हो तो

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