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जलालुद्दीन रूमी की कहानी - बाज और बादशाह

जलालुद्दीन रूमी की कहानी - बाज और बादशाह

जलालुद्दीन रूमी की कहानी -बाज और बादशाह

 एक बादशाह ने बाज पाल रखा था। वह उस पक्षी से बड़ा प्रेम करता था और उसे कोई कष्ट नहीं होने देता था। एक दिन बाज के दिल में न जाने क्या समायी कि बादशाह को छोड़कर चला गया। पहले तो बादशाह को बहुत रंज हुआ। परन्तु थोड़े दिन बाद वह उसे भूल गया। बाज़ छूट कर एक ऐसे मूर्ख व्यक्ति के हाथ में पड़ गया कि जिसने पहले उसके पर काट डाले और नाखून तराश दिये फिर एक रस्सी से बांध कर उसके आगे घास डाल दी और कहने लगा, ‘‘तेरा पहला मालिक कैसा मूर्ख था कि जिसने नाखून भी साफ न कराये, बल्कि उल्टे बढ़ा दिये। देख मैं, आज तेरी कैसी सेवा कर रहा हूं। तेरे बढ़े हुए बालों को काट कर बड़ी सुन्दर हजामत बना दी है और नाखुनों को तराश कर छोटा कर दिया है।
‘‘तू दुर्भाग्य से ऐसे गंवार के पल्ले पड़ गया, जो देखभाल करना भी नहीं जानता था। अब तू यहीं रह और देख कि मैं तुझको किस तरह घास चरा-चरा कर हृष्ट-पुष्ट बनाता हूं।’’
पहले तो बादशाह ने बाज का खयाल छोड़ दिया था, लेकिन कुछ दिन बाद उसे फिर उसकी याद सताने लगी। उसने उसको बहुत ढुंढ़वाया, परन्तु कहीं पता न चला। तब बादशाह स्वयं बाज की तलाश में निकला। चलते-चलते वह उसी स्थान पर पहुंच गया, जहां बाज अपने पर कटवाये रस्सी से बंधा घास में मुंह मार रहा था। बादशाह को उसकी यह दशा देखकर बड़ा दु:ख हुआ और वह उसे साथ लेकर वापस चला आया। वह रास्ते में बार-बार यही कहता रहा, ‘‘तू स्वर्ग से नरक में क्यों गया था?’’

[बाज की तरह आदमी भी, अपने स्वामी परमात्मा को छोड़कर दु:ख उठाता हैं। संसार की माया उसे पंगु बना देती है और मूर्ख मनुष्य अपनी मूर्खता के कामों को भी बुद्धिमानी का कार्य समझते हैं।]

रूमी की कहानियाँ

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