एक सूफी यात्रा करते हुए रात हो जाने पर किसी मठ में ठहरा। अपना खच्चर तो उसने अस्तबल में बांध दिया और आप मठ के भीतर एक मुख्य स्थान पर जा बैठा। मठ के लोग मेहमान के लिए भोजन लाये तो सूफी को अपने खच्चर की याद आयी। उसने मठ के नौकरो को अज्ञा दी अस्तबल में जा और खच्चर को घास और जौ खिला।
नौकर ने निवेदन किया, ‘‘आपके फरमाने की जरुरत नहीं। मैं हमेशा यही काम किया करता हूं।’’
सूफी बोला, ‘‘जौ पानी में भिगो कर देना, क्योंकि खच्चर बूढ़ा हो गया है और उसके दांत कमजोर हैं।’’
‘‘हरजत, आप मुझे सिखाते हैं लोग तो ऐसी-ऐसी युक्तियां मुझसे सीख कर जाते हैं।’’
‘‘पहले इसका तैरु उतारना। फिर इसकी पीठ के घाव पर मरहम लगा देना।’’
‘‘खुदा के लिए अपनी तदबीर किसी और मौके के लिए न रख लीजिए। मैं ऐसे सब काम जानता हूं। सारे मेहमान हमसे खुश होकर जाते है; क्योंकि हम अपने अतिथियों जान के बराबर प्यार समझते हैं।’’
‘‘और देख, इसको पानी भी पिलाना; परन्तु थोड़ा गर्म करके देना।’’
‘‘आपकी इन छोटी-छोटी बातों के समझाने से मुझे शर्म आती है।’’
‘‘जौ में जरा-सी घास भी मिला देना।’’
‘‘आप धीरज से बैठे रहिए। सबकुछ हो जायेगा।’’
‘‘उस जगह का कूड़ा-करकट साफ कर देना और अगर वहां सील हो तो सूखी घास बिछा देना।’’
‘‘ऐ बुजुर्गवार! एक योग्य सेवक से ऐसी बातें करने से क्या लाभ?’’
‘‘मियां, जरा खुरेरा भी फिर देना, और ठंड का मौसम है खच्चर की पीठ पर झूल भी डाल देना।’’
‘‘हजरत, आप चिन्ता न कीजिए। मेरा काम दूध की तरह स्वच्छ और बेलग होता है। मैं आपने काम में आपसे ज्यादा होशियार हो गया हूं। भले-बुरे मेहमानों से वास्ता पड़ा है। जिसे जैसा देखता हूं, वैसी ही उसकी सेवा करता हूं।’’
नौकर ने इतना कहकर कम कसी और चला गया। खच्चर का इन्तजाम तो उसे क्या करना था। अपने गुझ्टे मित्रों में बैठकर सूफि की हंसी उड़ाने लगा। सूफी रास्ते का हारा-थका ही, लेट गया और अर्द्धनिद्रा की अवस्था में सपना देखने लगा।
उसने सपने में देखा, उसके खच्चर को एक भेड़िये ने मार दिया है और उसकी पीठ और जांघ के मांस के लोथड़े को नोच-नोचकर खा रहा है। उसकी आंख खुल गयी। मन-ही-मन कहने लगा—यह कैसा पागलपन का सपना है। भला वह दयालू सेवक खच्चर को छोड़कर कहां जा सकता है! फिर सपने में देखा कि वह खच्चर रास्ते में चलते समय कभी कुंए में गिर पड़ता है, कभी गड्ढे में। ऐसी भयानक दुर्घटना सपने में वह बार-बार चौंक पड़ता और आंख खूलने पर कुरानशरीफ की आयतें पढ़ लेता।
अन्त में व्याकुल हो कर कहने लगा, ‘‘अब हो ही क्या सकता है। मठ के सब लोग पड़े सोते हैं और नौकर दरवाजे बन्द करके चले गये।’’
सूफी तो गफलत में पड़ा हुआ था और खच्चर पर वह मुसीबत आयी कि ईश्वर दुश्मन पर भी न डाले। उस बेचारे को तैरु वहां की धूल और पत्थरों में घिसटकर टेढ़ा हो गया और बागडोर टूट गयी। बेचारा दिन भर का हारा-थका, भूखा-प्यास मरणासन्न अवस्था में पड़ रहा। बार-बार अपने मन में कहता रहा कि ऐ धर्म-नेताओं! दया करो। मैं ऐसे कच्चे और विचारहीन सूफियों से बाज आया।
इस प्रकार इस खच्चर ने रात-भर जो कष्ट और जो यातनाएं झेलीं, वे ऐसी थीं, जैसे धरती के पक्षी को पानी में गिरने से झेलनी पड़ती हैं। वह एक ही करवट सुबह तक भूखा पड़ा रहा। घास और जौ की बाट में हिनहिनाते-हिनहिनाते सबेरा हो गया। जब अच्छी तरह उजाला हो गया, तो नौकर आया और तुरन्त तैरु को ठीक करके पीठ पर रखा और निर्दयी ने गधे बेचनेवालों की तरह दो-तीन आर लगायीं। खच्चर कील के चुभ से तरारे भरने लगा। उस गरीब के जीभ कहां थी, जो अपना हाल सुनाता।
लेकिन जब सूफी सवार होकर आगे बढ़ा तो खच्चर निर्बलता के कारण गिरने लगा। जहां। जहां कहीं गिरता था, लोगा उसे उठा देते थे और समझते थे कि खच्चर बीमार है। कोई खच्चर के कान मरोड़ता, कोई मुंह खोलकर देखता, कोई यह जांच करता कि खुर और नाल के बीच में कंकर तो नहीं आ गया है और लोग कहते कि ऐ शेख तुम्हारा खच्चर बार-बार गिर पड़ता है, इसका क्या कारण है?
खच्चर तो मजबूत है। मगर वह खच्चर जिसने रात भर लाहौल खाई हो (अर्थात् चारा न मिलने के कारण रातभर ‘दूर ही शैतान’ की रट लगाता रहा), सिवा इस ढंग के रास्ता तय नहीं कर सकता और उसकी यह हरकत मुनासिब मालूम होती है, क्योंकि जब उसका चारा लाहौल था तो रात-भर इसने तसबीह (माला) फेरी अब दिन-भर सिज्दे करेगा (अर्थात् गिर-गिर पड़ेगा)
[जब किसी को तुम्हारे काम से हमदर्दी नहीं है तो अपना काम स्वयं ही करना चाहिए। बहुत से लोग मनष्य-भक्षक हैं। तुम उनके अभिवादन करने से (अर्थात् उनकी नम्रता के भम्र में पड़कर) लाभ की आशा न रक्खो। जो मनुष्य शैतान के धोखे में फंसकर लाहौल खाता है, वह खच्चर की तरह मार्ग में सिर के बल गिरता है। किसी के धोखे में नहीं आना चाहिए। कुपात्रों की सेवा ऐसी होती है, जैसी इस सेवक ने की। ऐसे अनधिकारी लोगों के धोखे में आने से बिना नौकर के रहना ही अच्छा है।]
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217