Home Page

States of India

Hindi Literature

Religion in India

Articles

Art and Culture

 

जलालुद्दीन रूमी का जीवन परिचय दन्त-कथाए जनाज़ा क़ब्रिस्तान

जलालुद्दीन रूमी का जीवन परिचय दन्त-कथाए जनाज़ा क़ब्रिस्तान

महाकवि मौलाना जलालुद्दीन रूमी का जन्म फारस देश के प्रसिद्ध नगर बलख में सन् ३०४  हिजरी में हुआ था। रूमी के पिता शेख बहाउद्दीन अपने समय के अद्वितीय पंडित थे। फारस के बड़े-बड़े अमीर और विद्वान् उनका उपदेश सुनने और फतवे लेने आया करते थे। रूमी के जीवन पर अपने  पिता बड़ा प्रभाव पड़ा था और इनकी प्रारम्भिक शिक्षा भी उन्हीं के द्वारा हुई थी। तत्कालीन फारस सम्राट् ख्व़ारज़मशाह इनके बड़े भक्त थे। लेकिन एक बार किसी मामले में सम्राट् से इनका मतभेद हो गया। अत: उन्होंने बलख नगर छोड़ दिया। बादशाह ने बहुत-कुछ अनुनय-विनय की, परन्तु उन्होंने एक न सुनी। जिस समय वे बलख से रवाना हुए, उनके साथ तीन सौ विद्वान् मुरीद थे। जहां कहीं वे गया, लोगों ने उसका हृदय से स्वागत किया और उनके उपदेशें से लाभ उठाया।
यात्रा करते हुए सन् ६१० हिजरी में वे नेशांपुर नामक नगर में पहुंचे। वहां के प्रसिद्ध विद्वान् ख्वाजा फरीदउद्दीन अत्तार ने उनके आगमन का हाल सुना तो सेवा में उपस्थित हुए। उस समय बालक जलालुद्दीन (मौलाना रूमी) की उम्र ६ वर्ष की थी। ख्वाजा अत्तार ने जब उन्हें देखा तो बहुत खुश हुए और उसके पिता से कहा, ‘‘यह बालक एक दिन अवश्य महान् पुरुष होगा। इसकी शिक्षा और देख-रेख में कमी न करना।’’ ख्वाजा अत्तार ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘मसनवी अत्तार’ की एक प्रति भी बालक रूमी को प्रेमोपहार के रूप भेंट की।
वहां से शेख बहाउद्दीन भ्रमण करते हुए बगदाद पहुंचे और कुछ दिन वहां रहे। फिर वहां से हजाज़ और शाम होते हुए लाइन्दा पहुंचे। यहां मौलाना रूमी का विवाह एक प्रतितिष्ठत कुल की कन्या से हुआ। उस समय उनकी उम्र १८ वर्ष की थी। इसी अर्से में बादशाह ख्व़ाजरज़मशाह का देहान्त हो गया और शाह अलाउद्दीन कैकबाद राजसिंहासन पर बैठा। उसने अपने मुख्य कर्मचारियों को भेजकर शेख बहाउद्दीन से राजधानी में आने की प्रार्थना की। वह सन् ६२४ हिजरी में अपने पुत्र सहित क़ौनिया की तरफ रवाना हुए। जब शहर के करीब पहुंचे तो बादशाह स्वयं मुख्य कर्मचारियों सहित स्वागत के लिए आये और बड़े सम्मान के साथ राजधानी में लिवा ले गये और एक आलीशान महल में ठहराया।

 यहां वह चार वर्ष तक रहे। सन६२८ हिजरी में उनका देहान्त हो गया।मौलाना रूमी अपने पिता के जीवनकाल से उनके विद्वान शिष्य सैयद बरहानउद्दीन से पढ़ा करते थे। पिता की मृत्यु के बाद वह दमिश्क और हलब के विद्यालयों में शिक्षा प्राप्त करने के लिए चले गये और लगभग १५ वर्ष बाद वापस लौटे। उस समय उनकी उम्र चालीस वर्ष की हो गयी थी।
अब मौलाना रूमी की विद्वत्ता और सदाचार की इतनी प्रसिद्ध हो गयी थी कि देश-देशान्तरों से लोग उनके दर्शन करने और उपदेश सुनने आया करते थे। रूमी भी रात-दिन लोगों को सन्मार्ग दिखाने और उपदेश देने में लगे रहते। इसी अर्से में उनकी भेंट विख्यात साधू शम्स तबरेज़ से हुई।
मौलाना रूमी और शम्स तबरेज़ की मुलाक़ात के सम्बन्ध में कई दन्त-कथाएं प्रचलित हैं। मोलवी शिबली ने एक प्रसिद्ध फारसी पुस्तक के आधार पर इस घटना को इस तरह लिख है: ‘‘एक दिन मौलाना रूमी घर में तशरीफ रखते थे। पास में विद्यार्थी बैठे थे। चारो तरफ किताबों का ढेर लगा हुआ था। संयोग से शम्स तबरेज़ किसी तरफ से आ निकले और सलाम करके बैठ गये। किताबों की तरफ इशारा करके मौलाना से पूछा, ‘यह क्या है?’ मौलाना ने फरमाया, ‘यह चह चीज है, जिसको तुम नहीं जानते।’ यह कहना था कि तमाम किताबों में आग लग गयी। मौलाना ने आश्चर्य से कहा, ‘यह क्या है?’ शम्म तबरेज ने जवाब दिया, ‘यह वह चीज है, जिसको तुम नहीं जानते।’ ’’
बस शम्स तबरेज़ यह कहकर किसी तरफ निकल गये और आंखों से ओझल हो गये। उधर मौलाना का यह हाल हुआ कि रात दिन ‘शम्स, शम्स’ की रटन थी। आख़िर बड़ी तलाश के बाद उनका पता चला और मौलाना रूमी उन्हें क़ौनिया में लिवा लाये। यहां रहकर उन्होंने रूमी को अध्यात्म-विद्या की शिक्षा दी और उसके गुप्त रहस्य बतलाये।

मौलाना रूमी पर उनकी शिखाओं का ऐसा प्रभाव पड़ा कि रात-दिन आत्मचिन्तन और साधना में संलग्न रहने लगे। उपदेश, फतवे ओर पढ़ने-पढ़ाने का सब काम बन्द कर दिया। जब उनके भक्तों और शिष्यों ने यह हालत देखी तो उन्हें सन्देह हुआ कि शम्स तबरेज़ ने मौलाना पर जादू कर दिया है। इसलिए वे उस ब्रह्मनिष्ठ साधु के विरुद्ध हो गये। यह बदगुमानी यहां तक बढ़ी कि इन मूर्खों ने उनका वध कर डाला। इस दुष्कृत्य में मौलाना रूमी के छोटे बेटे इलाउद्दीन मुहम्मद का भी हाथ था। इस हत्या से सारे देश में शोक छा गया और हत्यारों के प्रति रोष और घृणा प्रकट की गयी। मोलाना रूमी को तो इस दुर्घटना से ऐसा दु:ख हुआ कि वे संसार से विरक्त हो गये और एकान्तवास करने लगे। इसी समय उन्होंने अपने प्रिय शिष्य मौलाना हसामउद्दीन चिश्ती के आग्रह पर संसारप्रसिद्ध ग्रंथ ‘मसनवी’ की रचना शुरू की।
कुछ दिन बाद वह बीमार हो गये और बीमारी भी ऐसी थी कि वह फिर स्वस्थ नहीं हो सके। जब लोगों ने उनके रोग-ग्रस्त होने का समाचार सुना तो वे हजारों की संख्या में दर्शनों के लिए आने लगे। एक दिन मौला सदरउद्दीन उनकी सेवा में उपस्थित हुए और जब ऐसी नाजुक हालत देखी तो चरणों में गिर पड़े और प्रार्थना करने लगे, ‘‘ऐ खुदा मौलाना को शफा (स्वस्थता) अता कर।’’
मौलान रुमी ने कहा, ‘‘शफा तुम्हारे लिए मुबाकरिक हो। आशिक (प्रेमी) और माशूक (प्रेमपात्र) में सिर्फ बाकी रह गया है। क्या तुम नहीं चाहते कि यह भी उठ जाये?’’ ये शब्द सुनकर सदरउद्दीन को और दुख: हुआ, वे फूट-फूटकर रोने लगे।
उसी दिन शाम को उनका देहान्त हो गया। यह सन् ६७२ हिजरी की घटना है। मौलाना रुमी की उम्र उस समय ६८ वर्ष की थी।
जब यह दु:खद समाचार लोगों ने सुना तो सारे देश में हाहाकार मच गया। मौलाना की मृत्यु पर जैसा शोक मनाया, वैसा सारे फारस देश में किसी की मृत्यु पर नहीं मनाया गया था। मारे शोक के लो दीवाने हो रहे थे। कोई कपड़े फाड़ता था, कोई छाती पीटता था, और कोई अपना सिर धुनता था। जानेज़े के साथ सभी धर्मों और सम्प्रदायों के लोग थे। यहूदी अपनी पवित्र पुस्तक ‘तोरीत’ का पाठ करते जाते थे, ईसाई ‘इंजील’ सुनाते जा रहे थे और मुसलमान ‘क़ुरान शरीफ’ पढ़ते जाते थे।

जब जनाज़ा क़ब्रिस्तान में पहुंचा तो बादशाह ने यहूदियों से पूछा, ‘‘तुम्हारा मौलाना से क्या सम्बन्ध था?’’ उन्होंने जवाब दिया, ‘‘यदि वह तुम्हारा (मुसलमानों का) मुहम्मद था तो हमारा मूसा था।’’ ईसाइयों ने कहा, ‘‘यदि तुम्हारा मुहम्मद ओर मूसा था तो हमारा ईसा था।’’ वास्तव में मौलाना रुमी ने मतमतान्तरों के झगड़ों को छोड़कर सर्वात्मवाद को अपना लिया था। उन्हें किसी मज़हब का पक्षतात नहीं था। वे मुसलमानों, यहूदियों और ईसासइयों को एक निगाह से देखते थे और सभी धर्मों और श्रेणियों के लोग उनके सत्संग से लाभ उठाते थे। प्राणिमात्र को सुख पहुंचाना और ईश्वर-चिन्तन में मग्न रहना ही उनका मजहब था। ऐसे समदर्शी और सर्वात्मवादी महापुरुष की मृत्यु से सब वर्णों के लोगों में शोक छा जाना अनिवार्य था।
मौलाना जलालुद्दीन रुमी का मज़ार क़ौनिया में बना हुआ है, जहां हज़ारों यात्री ज़ियारत के लिए जाते हैं।

रूमी की कहानियाँ

National Record 2012

Most comprehensive state website
Bihar-in-limca-book-of-records

Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)

See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217