मोहनदास करमचंद गाँधी की आत्मकथा

सत्य के प्रयोग

पाँचवा भाग

अहिंसा देवी का साक्षात्कार ?

 

मुझे तो किसानो की हालत की जाँच करनी थी । नील के मालिको के विरुद्ध जो शिकायते थी, उनमे कितनी सचाई है यह देखना था । इस काम के लिए हजारो किसानो से मिलने की जरूरत थी । किन्तु उनके संपर्क मे आने से पहले मुझे यह आवश्यक मालूम हुआ कि मै नील के मालिको की बात सुन लूँ और कमिश्नर से मिल लूँ । मुझे दोनो को चिट्ठी लिखी ।

मालिको के मंत्री के साथ मेरी जो मुलाकात हुई , उसमे उसने साफ कह दिया कि आपकी गिनती परदेशी मे होती है । आपको हमारे और किसानो के बीच दखल नही देना चाहिये । फिर भी अगर आपको कुछ कहना हो, तो मुझे लिखकर सूचित कीजिये । मैने मत्री से नम्रतापूर्वक कहा कि मै अपने को परदेशी नही मानता और किसान चाहे तो उनकी स्थिति की जाँच करने का मुझे पूरा अधिकार है । मै कमिश्नर साहब से मिला । उन्होंने मुझे धमकाना शुरु कर दिया और मुझे सलाह दी कि मै आगे बढ़े बिना तिरहुत छोड़ दूँ ।

मैने सारी बाते साथियो को सुनाकर कहा कि संभव है सरकार मुझे जाँच करने से रोके और जेल जाने का समय मेरी अपेक्षा से भी पहले आ जाये । अगर गिरफ्तारी होनी ही है , तो मुझे मोतीहारी मे और संभव हो तो बेतिया मे गिरफ्तार होना चाहिये और इसके लिए वहाँ जल्दी से जल्दी पहुँच जाना चाहिये ।

चम्पारन तिरहुत विभाग का एक जिला है और मोतीहारी इसका मुख्य शहर । बेतिया के आसपास राजकुमार शुक्ल का घर था और उसके आसपास की कोठियो के किसान ज्यादा-से-ज्यादा कंगाल थे । राजकुमार शुक्ल को उनकी दशा दिखाने का लोभ था और मुझे अब उसे देखने की इच्छा थी ।

अतएव मै उसी दिन साथियो को लेकर मोतीहारी के लिए रवाना हो गया । मोतीहारी मे गोरखबाबू ने आश्रय दिया और उनका घर धर्मशाला बन गया । हम सब मुश्किल से उसमे समा सकते थे । जिस दिन हम पहुँचे उसी दिन सुना कि मोतीहारी से कोई पाँच मील दूर रहने वाले एक किसान पर अत्याचार किया गया है । मैने निश्चय किया कि धरणीधरप्रसाद वकील को साथ लेकर मै दूसरे दिन सबेरे उसे देखने जाऊँगा । सवेरे हाथी पर सवार होकर हम चल पड़े । चम्पारन मे हाथी का उपयोग लगभग उसी तरह होता है , जिस तरह गुजरात मे बैलगाड़ियो का । आधे रास्ते पहुँचे होंगे कि इतने मे पुलिस सुपरिंटेंडेंट का आदमी आ पहुँचा और मुझे से बोला, ' सुपरिंटेंडेंट ने आपको सलाम भेजा है।' मै समझ गया । धरणीधरबाबू से मैने आगे जाने को कहा । मै उस जासूस के साथ उसकी भाड़े की गाड़ी मे सवार हुआ ।

उसने मुझे चम्पारन छोड़कर चले जाने की नोटिस दी । वह मुझे घर ले गया और मेरी सही माँगी । मैने जवाब दिया कि मै चम्पारन छोड़ना नही चाहता, मुझे तो आगे बढ़ना है और जाँच करनी है । निर्वासन की आज्ञा का अनादर करने के लिए मुझे दूसरे ही दिन कोर्ट मे हाजिर रहने का समन मिला ।

मैने सारी रात जागकर जो पत्र मुझे लिखने थे लिखे और ब्रजकिशोरबाबू को सब प्रकार की आवश्यकता सूचनाये दी ।

समन की बात एकदम चारो ओर फैल गयी । लोग कहते थे कि उस दिन मोतीहारी मे जैसा दृश्य देखा गया वैसा पहले कभी न देखा गया था । गोरखबाबू के घर भीड़ उमड़ पड़ी । सौभाग्य से मैने अपना सारा काम रात को निबटा लिया था । इसलिए मै इन भीड़ को संभाल सका । साथियो का मूल्य मुझे पूरा-पूरा मालूम था । वे लोगो को संयत रखने मे जुट गये । कचहरी मे जहाँ जाता वहाँ दल के दल लोग मेरे पीछे आते । कलेक्टर , मेजिस्ट्रेट , सुपरिंटेंडेंट आदि के साथ भी मेरा एक प्रकार का संबन्ध स्थापति हो गया । सरकारी नोटिसो वगैरा के खिलाफ कानूनी विरोध करना चाहता , तो मै कर सकता था । इसके बदले मैने उनकी सब नोटिसो को स्वीकार कर लिया और अधिकारियो के साथ निजी व्यवहार मे मिठास से काम लिया । इसमे वे समझ गये कि मुझे उनका विरोध नही करना है, बल्कि उनकी आज्ञा का विनयपूर्वक विरोध करना है । इससे उनमे एक प्रकार की निर्भयता आ गयी । मुझे तंग करने के बदले उन्होंने लोगो को काबू मे रखने मे मेरी और मेरे साथियो की सहायता का प्रसन्न्ता पूर्वक उपयोग किया । किन्तु साथ ही वे समझ गये कि उनकी सत्ता आज से लुप्त हुई । लोग क्षणभर को दंड का भय छोड़कर अपने नये मित्र के प्रेम की सत्ता के अधीन हो गये ।

याद रहे कि चम्पारन मे मुझे कोई पहचानता न था । किसान वर्ग बिल्कुल अनपढ़ था । चम्पारन गंगा के उस पार ठेठ हिमालय की तराई मे नेपाल का समीपवर्ती प्रदेश है , अर्थात् नई दुनिया है । वहाँ न कहीँ कांग्रेस का नाम सुनायी देता था, न कांग्रेस के कोई सदस्य दिखायी पड़ते थे । जिन्होने नाम सुना था वे कांग्रेस का नाम लेने मे अथवा उसमे सम्मिलित होने से डरते थे । आज कांग्रेस के नाम के बिना कांग्रेस के सवेको ने इस प्रदेश मे प्रवेश किया और कांग्रेस की दुहाई फिर गयी ।

साथियो से परामर्श करके मैने निश्चय किया था कि कांग्रेस के नाम से कोई भी काम न किया जाय । हमे नाम से नही बल्कि काम से मतलब है । 'कथनी नही' 'करनी' की आवश्यकता है । कांग्रेस का नाम यहाँ अप्रिय है । इस प्रदेश मे कांग्रेस का अर्थ है , वकीलो की आपसी खींचातानी, कानूनी गलियो से सटक जाने की कोशिश । कांग्रेस यानी कथनी एक, करनी दूसरी । यह धारणा सरकार की और सरकार की निलहे गोरो की थी । हमे यह सिद्ध करना था कि कांग्रेस ऐसी नही है , कांग्रेस तो दूसरी चीज है । इसलिए हमने कही भी कांग्रेस का नाम तक न लेने और लोगो को कांग्रेस की भौतिक देह का परिचय न कराने का निश्चय किया था । हमने यह सोच लिया था कि वे उसके अक्षर को न जानकर उसकी आत्मा को जाने और उसका अनुकरण करे तो बस है । यही असल चीज है । अतएव कांग्रेस की ओर से किन्ही गुप्त या प्रकट दूतो द्वारा कोई भूमिका तैयार नही करायी गयी थी । राजकुमार शुक्ल में हजारो लोगो मे प्रवेश करने की शक्ति नही थी । उनके बीच किसी मे आज तक राजनीति का काम किया ही नही था । चम्पारन के बाहर की दुनिया को वे आज भी नही जानते थे । फिर भी उनका और मेरा मिलाप पुराने मित्रो जैसा लगा । अतएव यह करने मे अतिशयोक्ति नही बल्कि अक्षरशः सत्य है कि इस कारण मैने वहाँ ईश्वर का, अहिंसा का और सत्य का साक्षात्कार किया । जब मै इस साक्षात्कार के अपने अधिकार की जाँच करता हूँ, तो मुझे लोगो के प्रति अपने प्रेम के सिवा और कुछ भी नही मिलता । इस प्रेम का अर्थ है, प्रेम अर्थात अहिंसा के प्रति मेरी अविचल श्रद्धा ।

चम्पारन का यह दिन मेरे जीवन मे कभी न भूलने जैसा था । मेरे लिए और किसानो के लिए यह एक उत्सव का दिन था । सरकारी कानून के अनुसार मुझ पर मुकदमा चलाया जानेवाला था । पर सच पूछा जाय तो मुकदमा सरकार के विरूद्ध था । कमिश्नर ने मेरे विरूद्ध जो जाल बिछाया था उसमे उसने सरकार को ही फँसा दिया ।

 

 

 

 

top