मोहनदास करमचंद गाँधी की आत्मकथा सत्य के प्रयोग दूसरा भाग को जाने कल की
'खबर नहीं इस जुग में पल की मेरे पास कुछ अखवार पड़े थे । मैं उन्हे पढ़ रहा था । एक अखवार के एक कोने में मैंने एक छोटा-सा संवाद देखा । उसका शीर्षक था , 'इंडियन फ्रेंचाइज़' यानी हिन्दुस्तानी मताधिकार । इस संवाद का आशय यह था कि हिन्दुस्तानियो को नेटाल की धारासभा के लिए सदस्य चुनने का जो अधिकार हैं वह छीन लिया जाये । धारासभा मे इससे संबंध रखने वाले कानून पर बहस चल रही थी । मैं इस कानून से अपरिचित था । भोज मे सम्मिलित सदस्यों मे से किसी को भी हिन्दुस्तानियों का अधिकार छीनने वाले इस बिल की कोई खबर न थी । मैने अब्दुल्ला सेठ से पूछा । उन्होने कहा, 'इस बात के हम क्या जाने? व्यापार पर कोई संकट आवे तो हमे उसका चलता हैं। देखिये न, ऑरेंज फ्री स्टेट मे हमारे व्यापार की जड़ उखड गयी । उसके लिए हमने मेहनत की , पर हम तो अपंग ठहरे । अशबार पढ़ते है तो उसमे भी सिर्फ भाव-ताव ही समझ पाते हैं । कानूनी बातो का हमे क्या पता चले ? हमारे आँख-कान तो हमारे गोरे वकील हैं । ' मैने पूछा, 'पर यहाँ पैदा हुए औऱ अंग्रेजी जानने वाले इतने सारे नौजवान हिन्दुस्तानी यहाँ हैं, वे क्या करते हैं ?' अब्दुल्ला सेठ ने माथे पर हाथ रखकर कहा , 'अरे भाई, उनसे हमे क्या मिल सकता हैं ? वे बेचारे इसमे क्या समझे? वे तो हमारे पास भी नहीं फटकते , और सच पूछो तो हम भी उन्हे नहीं पहचानते । वे ईसाई हैं, इसलिए पादरियों के पंजे मे हैं । और पादरी सब गोरे हैं , जो सरकार के अधीन हैं ।' मेरी आँखे खुल गयी । इस समाज को अपनाना चाहिये । क्या ईसाई धर्म का यही अर्थ हैं ? वे ईसाई हैं, इससे क्या हिन्दुस्तानी नहीं रहे ? और परदेशी बन गये ? किन्तु मुझे तो वापस स्वदेश जाना था, इसलिए मैने अपर्युक्त विचारों को प्रकट नहीं किया । मैने अब्दुल्ला सेठ से कहा, 'लेकिन अगर यह कानून इसी तरह पास हो गया , तो आप सबको मुश्किल मे डाल देगा । यह तो हिन्दुस्तानियों की आबादी को मिटाने का पहला कहम हैं । इसमे हमारे स्वाभिमान की हानि हैं ।' 'हो सकती हैं । परन्तु मैं आपको फरेंचाइज़ (इस तरह अंग्रेजी भाषा के कई शब्द अपनी रुप बदलकर देशवासियों में रुढ़ हो गये थे । मातधिकार कहो तो कोई समझता ही नही।) का इतिहास सुनाऊँ । हम तो इसमे कुछ भी नही समझते । पर आप तो जानते ही है कि हमारे बड़े वकील मि. एस्कम्ब हैं । वे जबरदस्त लड़वैया हैं । उनके और यहाँ के जेटी-इंजीनियर के बीच खासी लड़ाई चलती हैं । मि. एस्कम्ब के धारासभा मे जाने मे यह लड़ाई बाधक होती थी । उन्होने हमे अपनी स्थिति का भाल कराया । उनके कहने से हमने अपने नाम मतदाता-सूची में लिखवाये और अपने सब मत मि. एस्कम्ब को दिये । अब आप देखेंगे कि हमने अपने इन मतो का मूल्य आपकी तरह क्यो नहीं आँका । लेकिन अब हम आपकी बात समझ सकते हैं । अच्छा तो कहिये , आप क्या सलाह देते हैं ?' दूसरे मेहमान इस चर्चा को ध्यानपूर्वक सुन रहे थे । उनमे से एक ने कहा , 'मैं आपसे सच बात कहूँ? अगर आप इस स्टीमर से न जाये औऱ एकाध महीना रुक जाये , तो आप जिस तरह कहेगे , हम लड़ेंगे ।' दूसरे सब एक साथ बोल उठे, 'यह बात सच हैं । अब्दुल्ला सेठ, आप गाँधी भाई को रोक लीजिये ।' अब्दुल्ला सेठ उस्ताद ठहरे । उन्होने कहा, 'अब उन्हे रोकने का मुझे कोई अधिकार नहीं , अथवा जितना मुझे है, उतना ही आपको भी है । पर आप जो कहते है सो ठीक हैं । हम सब उन्हे रोक लेय़ पर ये तो बारिस्टर हैं । इनकी फीस का क्या होगा ?' मै दुःखी हुआ और बात काटकर बोला, 'अब्दुल्ला सेठ, इसमे मेरी फीस की बात ही नही उठती । सार्वजनिक सेवा की फीस कैसी ? मै ठहरूँ तो एक सेवक के रुप मे ठहर सकता हूँ । मैं इन सब भाईयों को ठीक से पहचानता नही । पर आपको भरोसा हो कि ये सब मेहनत करेंगे, तो मैं एक महीना रुक जाने को तैयार हूँ । यह सच है कि आपको कुछ नही देना होगा , फिर भी ऐसे काम बिल्कुल बिना पैसे के तो हो नहीं सकते । हमें तार करने होगे , कुछ साहित्य छपाना पड़ेगा , जहाँ-तहाँ जाना होगा उसका गाड़ी-किराया लगेगा । सम्भव हैं, हमें स्थानीय वकीलों की भी सलाह लेनी पड़े । मैं यहाँ के कानूनों से परिचित नहीं हूँ। मुझे कानून की पुस्तके देखनी होगी । इसके सिवा , ऐसे काम एक हाथ से नहीं होते, बहुतो को उनमे जुटना चाहिये ।' बहुत-सी आवाजे एकसाथ सुनायी पड़ी, 'खुदा की मेहरबानी हैं । पैसे इकट्ठा हो जायेंगे, लोग भी बहुत हैं । आप रहना कबूल कर ले तो बस हैं ।' सभा सभा न रहीं । उसने कार्यकारिणी समिति का रुप ले लिया । मैने सलाह दी कि भोजन से जल्दी निबटकर घर पहुँचना चाहियें । मैने मन मे लड़ाई की रुप रेखा तैयार कर ली । मताधिकार कितनो को प्राप्त हैं, सो जान लिया । और मैने एक महीना रुक जाने का निश्चय किया । इस प्रकार ईश्वर ने दक्षिण अफ्रीका मे मेरे स्थायी निवास की नींव डाली और स्वाभिमान की लड़ाई का बीज रोपा गया ।
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