मुंशी प्रेमचंद - गोदान

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गोदान

भाग-12

पेज-114

रात को गोबर झुनिया के साथ चला, तो ऐसा काँप रहा था, जैसे उसकी नाक कटी हुई हो। झुनिया को देखते ही सारे गाँव में कुहराम मच जायगा लोग चारों ओर से कैसी हाय-हाय मचाएँगे, धनिया कितनी गालियाँ देगी, यह सोच-सोच कर उसके पाँव पीछे रह जाते थे। होरी का तो उसे भय न था। वह केवल एक बार दहाड़ेंगे, फिर शांत हो जाएँगे। डर था धनिया का, जहर खाने लगेगी, घर में आग लगाने लगेगी। नहीं, इस वक्त वह झुनिया के साथ घर नहीं जा सकता।

लेकिन कहीं धनिया ने झुनिया को घर में घुसने ही न दिया और झाड़ू ले कर मारने दौड़ी, तो वह बेचारी कहाँ जायगी? अपने घर तो लौट नहीं सकती। कहीं कुएँ में कूद पड़े या गले में फाँसी लगा ले, तो क्या हो? उसने लंबी साँस ली। किसकी शरण ले?

मगर अम्माँ इतनी निर्दयी नहीं हैं कि मारने दौड़ें। क्रोध में दो-चार गालियाँ देंगी! लेकिन जब झुनिया उनके पाँव पकड़ कर रोने लगेगी, तो उन्हें जरूर दया आ जायगी। तब तक वह खुद कहीं छिपा रहेगा। जब उपद्रव शांत हो जायगा तब वह एक दिन धीरे से आएगा और अम्माँ को मना लेगा। अगर इस बीच उसे कहीं मजूरी मिल जाय और दो-चार रुपए ले कर घर लौटे, तो फिर धनिया का मुँह बंद हो जायगा।

झुनिया बोली - मेरी छाती धक-धक कर रही है। मैं क्या जानती थी, तुम मेरे गले यह रोग मढ़ दोगे। न जाने किस बुरी साइत में तुमको देखा। न तुम गाय लेने आते, न यह सब कुछ होता। तुम आगे-आगे जा कर जो कुछ कहना-सुनना हो, कह-सुन लेना। मैं पीछे से जाऊँगी।

गोबर ने कहा - नहीं-नहीं, पहले तुम जाना और कहना, मैं बाजार से सौदा बेच कर घर जा रही थी। रात हो गई है, अब कैसे जाऊँ? तब तक मैं आ जाऊँगा।

झुनिया चिंतित मन से कहा - तुम्हारी अम्माँ बड़ी गुस्सैल हैं। मेरा तो जी काँपता है। कहीं मुझे मारने लगें तो क्या करूँगी?

गोबर ने धीरज दिलाया - अम्माँ की आदत ऐसी नहीं। हम लोगों तक को तो कभी एक तमाचा मारा नहीं, तुम्हें क्या मारेंगी। उनको जो कुछ कहना होगा, मुझे कहेंगी, तुमसे तो बोलेंगी भी नहीं।

गाँव समीप आ गया। गोबर ने ठिठक कर कहा - अब तुम जाओ।

झुनिया ने अनुरोध किया - तुम भी देर न करना'

'नहीं-नहीं, छन भर में आता हूँ, तू चल तो।'

'मेरा जी न जाने कैसा हो रहा है! तुम्हारे ऊपर क्रोध आता है।'

'तुम इतना डरती क्यों हो? मैं तो आ ही रहा हूँ।'

'इससे तो कहीं अच्छा था कि किसी दूसरी जगह भाग चलते।'

'जब अपना घर है तो क्यों कहीं भागें? तुम नाहक डर रही हो।'

'जल्दी से आओगे न?'

'हाँ-हाँ, अभी आता हूँ।'

'मुझसे दगा तो नहीं कर रहे हो? मुझे घर भेज कर आप कहीं चलते बनो?'

'इतना नीच नहीं हूँ झूना! जब तेरी बाँह पकड़ी है, तो मरते दम तक निभाऊँगा।'

 

 

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