मुंशी प्रेमचंद - गोदान

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गोदान

भाग-3

पेज-14

गोबर ने तिरस्कार किया - तो तुम अब सबकी सगाई ठीक करते फिरोगे?

धनिया ने तीखी आँखों से देखा - अब यही एक उद्यम तो रह गया है। नहीं देना है हमें भूसा किसी को। यहाँ भोला-भोली किसी का करज नहीं खाया है।

होरी ने अपने सफाई दी - अगर मेरे जतन से किसी का घर बस जाय तो इसमें कौन-सी बुराई है?

गोबर ने चिलम उठाई और आग लेने चला गया। उसे यह झमेला बिलकुल नहीं भाता था।

धनिया ने सिर हिला कर कहा - जो उनका घर बसाएगा, वह अस्सी रुपए की गाय ले कर चुप न होगा। एक थैली गिनवाएगा।

होरी ने पुचारा दिया - यह मैं जानता हूँ; लेकिन उनकी भलमनसी को भी तो देखो। मुझसे जब मिलता है, तेरा बखान ही करता है - ऐसी लक्ष्मी है, ऐसी सलीकेदार है।

धनिया के मुख पर स्निग्धता झलक पड़ी। मन भाए मुड़िया हिलाए वाले भाव से बोली - मैं उनके बखान की भूखी नहीं हूँ, अपना बखान धरे रहें।

होरी ने स्नेह-भरी मुस्कान के साथ कहा - मैंने तो कह दिया, भैया, वह नाक पर मक्खी भी नहीं बैठने देती, गालियों से बात करती है, लेकिन वह यही कहे जाय कि वह औरत नहीं, लक्ष्मी है। बात यह है कि उसकी घरवाली जबान की बड़ी तेज थी। बेचारा उसके डर के मारे भागा-भागा फिरता था। कहता था, जिस दिन तुम्हारी घरवाली का मुँह सबेरे देख लेता हूँ, उस दिन कुछ-न-कुछ जरूर हाथ लगता है। मैंने कहा - तुम्हारे हाथ लगता होगा, यहाँ तो रोज देखते हैं, कभी पैसे से भेंट नहीं होती।

'तुम्हारे भाग ही खोटे हैं, तो मैं क्या करूँ।'

'लगा अपने घरवाली की बुराई करने - भिखारी को भीख तक नहीं देती थी, झाड़ू ले कर मारने दौड़ती थी, लालचिन ऐसी थी कि नमक तक दूसरों के घर से माँग लाती थी।'

'मरने पर किसी की क्या बुराई करूँ। मुझे देख कर जल उठती थी।'

'भोला बड़ा गमखोर था कि उसके साथ निबाह कर दिया। दूसरा होता तो जहर खा मर जाता। मुझसे दस साल बड़े होंगे भोला, पर राम-राम पहले ही करते हैं।'

'तो क्या कहते थे कि जिस दिन तुम्हारी घरवाली का मुँह देख लेता हूँ तो क्या होता है?'

'उस दिन भगवान कहीं-न-कहीं से कुछ भेज देते हैं।;

 

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