मुंशी प्रेमचंद - गोदान

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गोदान

भाग-3

पेज-16

'यह तो उनका काम था कि किसी को अपने साथ ले लेते। भगवान के दिए दो-दो बेटे हैं।'

'न होंगे घर पर। दूध ले कर बाजार गए होंगे।'

'यह तो अच्छी दिल्लगी है कि अपना माल भी दो और उसे घर तक पहुँचा भी दो। लाद दे, लदा दे, लादने वाला साथ कर दे।'

'अच्छा भाई, कोई मत जाए। मैं पहुँचा दूँगी। बड़ों की सेवा करने में लाज नहीं है।'

'और तीन खाँचे उन्हें दे दूँ, तो अपने बैल क्या खाएँगे?'

'यह सब तो नेवता देने के पहले ही सोच लेना था। न हो, तुम और गोबर दोनों जने चले जाओ।'

'मुरौवत मुरौवत की तरह की जाती है, अपना घर उठा कर नहीं दे दिया जाता!'

'अभी जमींदार का प्यादा आ जाय, तो अपने सिर पर भूसा लाद कर पहुँचाओगे तुम, तुम्हारा लड़का, लड़की सब। और वहाँ साइत मन-दो-मन लकड़ी भी गाड़नी पड़े।'

'जमींदार की बात और है।'

'हाँ, वह डंडे के जोर से काम लेता है न।'

'उसके खेत नहीं जोतते?'

'खेत जोतते हैं, तो लगान नहीं देते?'

'अच्छा भाई, जान न खा, हम दोनों चले जाएँगे। कहाँ-से-कहाँ मैंने इन्हें भूसा देने को कह दिया। या तो चलेगी नहीं, या चलेगी तो दौड़ने लगेगी।'

तीनों खाँचे भूसे से भर दिए गए। गोबर कुढ़ रहा था। उसे अपने बाप के व्यवहारों में जरा भी विश्वास न था। वह समझता था, यह जहाँ जाते हैं, वहीं कुछ-न-कुछ घर से खो आते हैं। धनिया प्रसन्न थी। रहा होरी, वह धर्म और स्वार्थ के बीच में डूब-उतरा रहा था।

होरी और गोबर मिल कर एक खाँचा बाहर लाए। भोला ने तुरंत अपने-अंगौछे का बींड़ बना कर सिर पर रखते हुए कहा - मैं इसे रख कर अभी भागा आता हूँ। एक खाँचा और लूँगा।

होरी बोला - एक नहीं, अभी दो और भरे धरे हैं। और तुम्हें न आना पड़ेगा। मैं और गोबर एक-एक खाँचा ले कर तुम्हारे साथ ही चलते हैं।

 

 

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