मुंशी प्रेमचंद - गोदान

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गोदान

भाग-17

पेज-164

झुनिया ने धीरे से हाथ छुड़ा लिया और पीछे हट कर बोली - सब तुम्हारी दया है महराज! मैं तो कहीं की न रही। घर से भी गई, यहाँ से भी गई। न माया मिली, न राम ही हाथ आए। दुनिया का रंग-ढंग न जानती थी। इसकी मीठी-मीठी बातें सुन कर जाल में फँस गई।

मातादीन ने गोबर की बुराई करनी शुरू की - वह तो निरा लफंगा है, घर का न घाट का। जब देखो, माँ-बाप से लड़ाई। कहीं पैसा पा जाय, चट जुआ खेल डालेगा, चरस और गाँजे में उसकी जान बसती थी, सोहदों के साथ घूमना, बहू-बेटियों को छेड़ना, यही उसका काम था। थानेदार साहब बदमासी में उसका चालान करने वाले थे, हम लोगों ने बहुत खुसामद की, तब जा कर छोड़ा। दूसरों के खेत-खलिहान से अनाज उड़ा लिया करता। कई बार तो खुद उसी ने पकड़ा था, पर गाँव-घर का समझ कर छोड़ दिया।

सोना ने बाहर आ कर कहा - भाभी, अम्माँ ने कहा है, अनाज निकाल कर धूप में डाल दो, नहीं चोकर बहुत निकलेगा। पंडित ने जैसे बखार में पानी डाल दिया हो।

मातादीन ने अपने सफाई दी - मालूम होता है, तेरे घर में बरसात नहीं हुई। चौमासे में लकड़ी तक गीली हो जाती है, अनाज तो अनाज ही है।

यह कहता हुआ वह बाहर चला गया। सोना ने आ कर उसका खेल बिगाड़ दिया।

सोना ने झुनिया से पूछा - मातादीन क्या करने आए थे?

झुनिया ने माथा सिकोड़ कर कहा - पगहिया माँग रहे थे। मैंने कह दिया, यहाँ पगहिया नहीं है।

'यह सब बहाना है। बड़ा खराब आदमी है।'

'मुझे तो बड़ा भला आदमी लगता है। क्या खराबी है उसमें?'

'तुम नहीं जानतीं - सिलिया चमारिन को रखे हुए है।'

'तो इसी से खराब आदमी हो गया?'

'और काहे से आदमी खराब कहा जाता है?'

तुम्हारे भैया भी तो मुझे लाए हैं। वह भी खराब आदमी हैं?'

सोना ने इसका जवाब न दे कर कहा - मेरे घर में फिर कभी आएगा, तो दुतकार दूँगी।

'और जो उससे तुम्हारा ब्याह हो जाय?'

'सोना लजा गई - तुम तो भाभी, गाली देती हो।

'क्यों, इसमें गाली की क्या बात है?'

'मुझसे बोले, तो मुँह झुलस दूँ।'

तो क्या तुम्हारा ब्याह किसी देवता से होगा। गाँव में ऐसा सुंदर, सजीला जवान दूसरा कौन है?'

'तो तुम चली जाओ उसके साथ, सिलिया से लाख दर्जे अच्छी हो।'

'मैं क्यों चली जाऊँ? मैं तो एक के साथ चली आई। अच्छा है या बुरा।'

'तो मैं भी जिसके साथ ब्याह होगा, उसके साथ चली जाऊँगी, अच्छा हो या बुरा।'

'और जो किसी बूढ़े के साथ ब्याह हो गया?'

सोना हँसी - मैं उसके लिए नरम-नरम रोटियाँ पकाऊँगी, उसकी दवाइयाँ कूटूँगी-छानूँगी, उसे हाथ पकड़ कर उठाऊँगी, जब मर जायगा तो मुँह ढाँप कर रोऊँगी।

'और जो किसी जवान के साथ हुआ?'

तब तुम्हारा सिर, हाँ नहीं तो!'

'अच्छा बताओ, तुम्हें बूढ़ा अच्छा लगता है कि जवान!'

'जो अपने को चाहे, वही जवान है, न चाहे वही बूढ़ा है।'

'दैव करे, तुम्हारा ब्याह किसी बूढ़े से हो जाय, तो देखूँ, तुम उसे कैसे चाहती हो। तब मनाओगी, किसी तरह यह निगोड़ा मर जाय, तो किसी जवान को ले कर बैठ जाऊँ।'

'मुझे तो उस बूढ़े पर दया आए।'

 

 

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