'यह तो मेरी तैयारी पर है। जब तैयार हो जाऊँगा, बैठ जाऊँगा। छोटी-छोटी उपाधियों के लिए हम पढ़-पढ़ कर आँखें फोड़ लिया करते हैं। यह तो जीवन-व्यापार की परीक्षा है।' 'अच्छी बात है, मैं भी देखूँगी, आप किस ग्रेड में पास होते हैं।' यह कहते हुए उसने बच्चे को उनकी गोद में दे दिया। उन्होंने बच्चे को कई बार उछाला, तो वह चुप हो गया। बालकों की तरह डींग मार कर बोले - देखा आपने, कैसा मंतर के जोर से चुप कर दिया। अब मैं भी कहीं से एक बच्चा लाऊँगा। गोविंदी ने विनोद किया - बच्चा ही लाइएगा, या उसकी माँ भी। मेहता ने विनोद-भरी निराशा से सिर हिला कर कहा - ऐसी औरत तो कहीं मिलती ही नहीं। 'क्यों, मिस मालती नहीं हैं? सुंदरी, शिक्षिता, गुणवती, मनोहारिणी, और आप क्या चाहते हैं?' 'मिस मालती में वह एक बात नहीं है, जो मैं अपनी स्त्री में देखना चाहता हूँ।' गोविंदी ने इस कुत्सा का आनंद लेते हुए कहा - उसमें क्या बुराई है, सुनूँ। भौंरे तो हमेशा घेरे रहते हैं। मैंने सुना है, आजकल पुरुषों को ऐसी ही औरतें पसंद आती हैं। मेहता ने बच्चे के हाथों से अपने मूँछों की रक्षा करते हुए कहा - मेरी स्त्री कुछ और ही ढंग की होगी। वह ऐसी होगी, जिसकी मैं पूजा कर सकूँगा। गोविंदी अपने हँसी न रोक सकी - तो आप स्त्री नहीं, कोई प्रतिमा चाहते हैं। स्त्री तो ऐसी शायद ही कहीं मिले। 'जी नहीं, ऐसी एक देवी इसी शहर में है।' 'सच! मैं भी उसके दर्शन करती, और उसी तरह बनने की चेष्टा करती।' 'आप उसे खूब जानती हैं। यह एक लखपती की पत्नी है, पर विलास को तुच्छ समझती है, जो उपेक्षा और अनादर सह कर भी अपने कर्तव्य से विचलित नहीं होती, जो मातृत्व की वेदी पर अपने को बलिदान करती है, जिसके लिए त्याग ही सबसे बड़ा अधिकार है, और जो इस योग्य है कि उसकी प्रतिमा बना कर पूजी जाए।' गोविंदी के हृदय में आनंद का कंपन हुआ। समझ कर भी न समझने का अभिनय करते हुए बोली - ऐसी स्त्री की आप तारीफ करते हैं। मेरी समझ में तो वह दया के योग्य है। मेहता ने आश्चर्य से कहा - दया के योग्य! आप उसका अपमान करती हैं। वह आदर्श नारी है और जो आदर्श नारी हो सकती है, वही आदर्श पत्नी भी हो सकती है। 'लेकिन वह आदर्श इस युग के लिए नहीं है।' 'वह आदर्श सनातन है और अमर है। मनुष्य उसे विकृत करके अपना सर्वनाश कर रहा है।
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