होरी और गोबर दोनों ऊख बोने के लिए खेत सींच रहे थे। अबकी ऊख की खेती होने की आशा तो थी नहीं, इसलिए खेत परती पड़ा हुआ था। अब बैल आ गए हैं, तो ऊख क्यों न बोई जाए। मगर दोनों जैसे छत्तीस बने हुए थे। न बोलते थे, न ताकते थे। होरी बैलों को हाँक रहा था और गोबर मोट ले रहा था। सोना और रूपा दोनों खेत में पानी दौड़ा रही थीं कि उनमें झगड़ा हो गया। विवाद का विषय यह था कि झिंगुरीसिंह की छोटी ठकुराइन पहले खुद खा कर पति को खिलाती हैं या पति को खिला कर तब खुद खाती है। सोना कहती थी, पहले वह खुद खाती है। रूपा का मत इसके प्रतिकूल था। रूपा ने जिरह की - अगर वह पहले खाती है, तो क्यों मोटी नहीं है? ठाकुर क्यों मोटे हैं? अगर ठाकुर उन पर गिर पड़े, तो ठकुराइन पिस जायँ। सोना ने प्रतिवाद किया - तू समझती है, अच्छा खाने से लोग मोटे हो जाते हैं। अच्छा खाने से लोग बलवान होते हैं, मोटे नहीं होते। मोटे होते हैं घास-पात खाने से। 'तो ठकुराइन ठाकुर से बलवान हैं?' 'और क्या। अभी उस दिन दोनों में लड़ाई हुई, तो ठकुराइन ने ठाकुर को ऐसा ढकेला कि उनके घुटने फूट गए।' 'तो तू भी पहले आप खा कर तब जीजा को खिलाएगी?' 'और क्या! ' 'अम्माँ तो पहले दादा को खिलाती हैं।' 'तभी तो जब देखो तब दादा डाँट देते हैं। मैं बलवान हो कर अपने मरद को काबू में रखूँगी। तेरा मरद तुझे पीटेगा, तेरी हडी तोड़ कर रख देगा।' रूपा रूआँसी हो कर बोली - क्यों पीटेगा, मैं मार खाने का काम ही न करूँगी। 'वह कुछ न सुनेगा। तूने जरा भी कुछ कहा - और वह मार चलेगा। मारते-मारते तेरी खाल उधेड़ लेगा।' रूपा ने बिगड़ कर सोना की साड़ी दाँतों से फाड़ने की चेष्टा की और असफल होने पर चुटकियाँ काटने लगी। सोना ने और चिढ़ाया - वह तेरी नाक भी काट लेगा। इस पर रूपा ने बहन को दाँत से काट खाया। सोना की बाँह लहुआ गई। उसने रूपा को जोर से ढकेल दिया। वह गिर पड़ी और उठ कर रोने लगी। सोना भी दाँतों के निशान देख कर रो पड़ी।
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