मुंशी प्रेमचंद - गोदान

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गोदान

भाग-21

पेज-215

उन दोनों का चिल्लाना सुन कर गोबर गुस्से से भरा हुआ आया और दोनों को दो-दो घूँसे जड़ दिए। दोनों रोती हुई निकल कर घर चली दीं। सिंचाई का काम रूक गया। इस पर पिता-पुत्र में एक झड़प हो गई।

होरी ने पूछा - पानी कौन चलाएगा? दौड़े-दौड़े गए, दोनों को भगा आए। अब जा कर मना क्यों नहीं लाते?

'तुम्हीं ने इन सबों को बिगाड़ रखा है।'

'इस तरह मारने से और निर्लज्ज हो जाएँगी।'

'दो जून खाना बंद कर दो, आप ठीक हो जायँ।'

'मैं उनका बाप हूँ, कसाई नहीं हूँ।'

पाँव में एक बार ठोकर लग जाने के बाद किसी कारण से बार-बार ठोकर लगती है और कभी-कभी अँगूठा पक जाता है और महीनों कष्ट देता है। पिता और पुत्र के सदभाव को आज उसी तरह की चोट लग गई थी और उस पर यह तीसरी चोट पड़ी।

गोबर ने घर जा कर झुनिया को खेत में पानी देने के लिए साथ लिया। झुनिया बच्चे को ले कर खेत में आ गई। धनिया और उसकी दोनों बेटियाँ बैठी ताकती रहीं। माँ को भी गोबर की यह उद्दंडता बुरी लगती थी। रूपा को मारता तो वह बुरा न मानती, मगर जवान लड़की को मारना, यह उसके लिए असहाय था।

 

 

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