गोबर ने सफाई देते हुए कहा - तुमने रसीद ले ली होती तो मैं लाख उनकी हँसी उड़ाता, तुम्हारा बाल भी बाँका न कर सकते। मेरी समझ में नहीं आता कि लेन-देन में तुम सावधानी से क्यों काम नहीं लेते। यों रसीद नहीं देते, तो डाक से रूपया भेजो। यही तो होगा, एकाध रूपया महसूल पड़ जायगा। इस तरह की धाँधली तो न होगी।' 'तुमने यह आग न लगाई होती, तो कुछ न होता। अब तो सभी मुखिया बिगड़े हुए हैं। बेदखली की धमकी दे रहे हैं। दैव जाने कैसे बेड़ा पार लगेगा!' 'मैं जा कर उनसे पूछता हूँ।' 'तुम जा कर और आग लगा दोगे।' 'अगर आग लगानी पड़ेगी, तो आग लगा दूँगा। यह बेदखली करते हैं, करें। मैं उनके हाथ में गंगाजली रख कर अदालत में कसम खिलाऊँगा। तुम दुम दबा कर बैठे रहो। मैं इसके पीछे जान लड़ा दूँगा। मैं किसी का एक पैसा दबाना नहीं चाहता, न अपना एक पैसा खोना चाहता हूँ।' वह उसी वक्त उठा और नोखेराम की चौपाल में जा पहुँचा। देखा तो सभी मुखिया लोगों का केबिनेट बैठा हुआ है। गोबर को देख कर सब-के-सब सतर्क हो गए। वातावरण में षड़यंत्र की-सी कुंठा भरी हुई थी। गोबर ने उत्तेजित कंठ से पूछा - यह क्या बात है कारिंदा साहब, कि आपको दादा ने हाल तक का लगान चुकता कर दिया और आप अभी दो साल का बाकी निकाल रहे हैं? यह कैसा गोलमाल है। नोखेराम ने मसनद पर लेट कर रोब दिखाते हुए कहा - जब तक होरी है, मैं तुमसे लेन-देन की कोई बातचीत नहीं करना चाहता।
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