होरी ने व्यथित कंठ से कहा - अच्छा, वह छोटी नहीं, बड़ी सही। जो आदमी नहीं रहना चाहता, क्या उसे बाँध कर रखेगी? माँ-बाप का धरम है, लड़के को पाल-पोस कर बड़ा कर देना। वह हम कर चुके। उनके हाथ-पाँव हो गए। अब तू क्या चाहती है, वे दाना-चारा ला कर खिलाएँ। माँ-बाप का धरम सोलहों आना लड़कों के साथ है। लड़कों का माँ-बाप के साथ एक आना भी धरम नहीं है। जो जाता है, उसे असीस दे कर विदा कर दे। हमारा भगवान मालिक है। जो कुछ भोगना बदा है, भोगेंगे, चालीस सात सैंतालीस साल इसी तरह रोते-धोते कट गए। दस-पाँच साल हैं, वह भी यों ही कट जाएँगे। उधर गोबर जाने की तैयारी कर रहा था। इस घर का पानी भी उसके लिए हराम है। माता हो कर जब उसे ऐेसी-ऐसी बातें कहे, तो अब वह उसका मुँह भी न देखेगा। देखते ही देखते उसका बिस्तर बँधा गया। झुनिया ने भी चुँदरी पहन ली। चुन्नू भी टोप और फ्राक पहन कर राजा बन गया। होरी ने आर्द्र कंठ से कहा - बेटा, तुमसे कुछ कहने का मुँह तो नहीं है, लेकिन कलेजा नहीं मानता। क्या जरा जा कर अपनी अभागिनी माता के पाँव छू लोगे, तो कुछ बुरा होगा? जिस माता की कोख से जनम लिया और जिसका रकत पी कर पले हो, उसके साथ इतना भी नहीं कर सकते? गोबर ने मुँह फेर कर कहा - मैं उसे अपनी माता नहीं समझता। होरी ने आँखों में आँसू ला कर कहा - जैसी तुम्हारी इच्छा। जहाँ रहो, सुखी रहो। झुनिया ने सास के पास जा कर उसके चरणों को आँचल से छुआ। धनिया के मुँह से आसीस का एक शब्द भी न निकला। उसने आँखें उठा कर देखा भी नहीं। गोबर बालक को गोद में लिए आगे-आगे था। झुनिया बिस्तर बगल में दबाए पीछे। एक चमार का लड़का संदूक लिए था। गाँव के कई स्त्री-पुरुष गोबर को पहुँचाने गाँव के बाहर तक आए। और धनिया बैठी रो रही थी, जैसे कोई उसके हृदय को आरे से चीर रहा हो। उसका मातृत्व उस घर के समान हो रहा था, जिसमें आग लग गई हो और सब कुछ भस्म हो गया हो। बैठ कर रोने के लिए भी स्थान न बचा हो।
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