दुखित स्वर में बोली - यह मंतर तुम्हें कौन दे रहा है बेटा, तुम तो ऐसे न थे। माँ-बाप तुम्हारे ही हैं, बहनें तुम्हारी ही हैं, घर तुम्हारा ही है। यहाँ बाहर का कौन है? और हम क्या बहुत दिन बैठे रहेंगे? घर की मरजाद बनाए रखोगे, तो तुम्हीं को सुख होगा। आदमी घरवालों ही के लिए धन कमाता है कि और किसी के लिए? अपना पेट तो सुअर भी पाल लेता है। मैं न जानती थी, झुनिया नागिन बन कर हमीं को डसेगी। गोबर ने तिनक कर कहा - अम्माँ, मैं नादान नहीं हूँ कि झुनिया मुझे मंतर पढ़ाएगी। तुम उसे नाहक कोस रही हो। तुम्हारी गिरस्ती का सारा बोझ मैं नहीं उठा सकता। मुझसे जो कुछ हो सकेगा, तुम्हारी मदद कर दूँगा, लेकिन अपने पाँवों में बेड़ियाँ नहीं डाल सकता। झुनिया भी कोठरी से निकल कर बोली - अम्माँ, जुलाहे का गुस्सा डाढ़ी पर न उतारो। कोई बच्चा नहीं है कि मैं फोड़ लूँगी। अपना-अपना भला-बुरा सब समझते हैं। आदमी इसीलिए नहीं जनम लेता कि सारी उमर तपस्या करता रहे और एक दिन खाली हाथ मर जाए। सब जिंदगी का कुछ सुख चाहते हैं, सबकी लालसा होती है कि हाथ में चार पैसे हों। धनिया ने दाँत पीस कर कहा - अच्छा झुनिया, बहुत गियान न बघार। अब तू भी अपना भला-बुरा सोचने जोग हो गई है। जब यहाँ आ कर मेरे पैरों पर सिर रक्खे रो रही थी, तब अपना भला-बुरा नहीं सूझा था? उस घड़ी हम भी अपना भला-बुरा सोचने लगते, तो आज तेरा कहीं पता न होता। इसके बाद संग्राम छिड़ गया। ताने-मेहने, गाली-गलौच, थुक्का-गजीहत, कोई बात न बची। गोबर भी बीच-बीच में डंक मारता जाता था। होरी बरौठे में बैठा सब कुछ सुन रहा था। सोना और रूपा आँगन में सिर झुकाए खड़ी थीं, दुलारी, पुनिया और कई स्त्रियाँ बीच-बचाव करने आ पहुँची थीं। गर्जन के बीच में कभी-कभी बूँदें भी गिर जाती थीं। दोनों ही अपने-अपने भाग्य को रो रही थीं। दोनों ही ईश्वर को कोस रही थीं, और दोनों अपनी-अपनी निर्दोषिता सिद्ध कर रही थीं। झुनिया गड़े मुर्दे उखाड़ रही थी। आज उसे हीरा और सोभा से विशेष सहानुभूति हो गई थी, जिन्हें धनिया ने कहीं का न रखा था। धनिया की आज तक किसी से न पटी थी, तो झुनिया से कैसे पट सकती है? धनिया अपनी सफाई देने की चेष्टा कर रही थी, लेकिन न जाने क्या बात थी कि जनमत झुनिया की ओर था। शायद इसलिए कि झुनिया संयम हाथ से न जाने देती थी और धनिया आपे से बाहर थी। शायद इसलिए भी कि झुनिया अब कमाऊ पुरुष की स्त्री थी और उसे प्रसन्न में रखने में ज्यादा मसलहत थी। तब होरी ने आँगन में आ कर कहा - मैं तेरे पैरों पड़ता हूँ धनिया, चुप रह। मेरे मुँह में कालिख मत लगा। हाँ, अभी मन न भरा हो तो और सुन। धनिया फुंकार मार कर उधर दौड़ी - तुम भी मोटी डाल पकड़ने चले। मैं ही दोसी हूँ। यह तो मेरे ऊपर फूल बरसा रही है? संग्राम का क्षेत्र बदल गया। 'जो छोटों के मुँह लगे, वह छोटा।' धनिया किस तर्क से झुनिया को छोटा मान ले?
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