रायसाहब को ऐसा आवेश आ रहा था कि इस दुष्ट को गोली मार दें। इसी बदमाश ने सब्ज बाग दिखा कर उन्हें खड़ा किया और अब अपनी सफाई दे रहा है। पीठ में धूल भी नहीं लगने देता, लेकिन परिस्थिति जबान बंद किए हुए थी। 'तो अब आपके किए कुछ नहीं हो सकता?' 'ऐसा ही समझिए।' 'मैं पचास हजार पर भी समझौता करने को तैयार हूँ।' 'राजा साहब किसी तरह न मानेंगे।' 'पच्चीस हजार पर तो मान जाएँगे?' 'कोई आशा नहीं। वह साफ कह चुके हैं।' 'वह कह चुके हैं या आप कह रहे हैं?' 'आप मुझे झूठा समझते हैं?' रायसाहब ने विनम्र स्वर में कहा - मैं आपको झूठा नहीं समझता, लेकिन इतना जरूर समझता हूँ कि आप चाहते, तो मुआमला हो जाता।' 'तो आपका खयाल है, मैंने समझौता नहीं होने दिया?' 'नहीं, यह मेरा मतलब नहीं है। मैं इतना ही कहना चाहता हूँ कि आप चाहते तो काम हो जाता और मैं इस झमेले में न पड़ता।' मिस्टर तंखा ने घड़ी की तरफ देख कर कहा - तो रायसाहब, अगर आप साफ कहलाना चाहते हैं, तो सुनिए - अगर आपने दस हजार का चैक मेरे हाथ पर रख दिया होता, तो आज निश्चय एक लाख के स्वामी होते। आप शायद चाहते होंगे, जब आपको राजा साहब से रुपए मिल जाते, तो आप मुझे हजार-दो-हजार दे देते। तो मैं ऐसी कच्ची गोली नहीं खेलता। आप राजा साहब से रुपए ले कर तिजोरी में रखते और मुझे अँगूठा दिखा देते। फिर मैं आपका क्या बना लेता बतलाइए? कहीं नालिश-फरियाद भी तो नहीं कर सकता था।
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