गोबर और झुनिया के जाने के बाद घर सुनसान रहने लगा । धनिया को बार-बार चुन्नू की याद आती रहती है । बच्चे की माँ तो झुनिया थी, पर उसका पालन धनिया ही करती थी। वही उसे उबटन मलती, काजल लगाती, सुलाती और जब काम-काज से अवकाश मिलता, उसे प्यार करती। वात्सल्य का यह नशा ही उसकी विपत्ति को भुलाता रहता था। उसका भोला-भाला, मक्खन-सा मुँह देख कर वह अपनी सारी चिंता भूल जाती और स्नेहमय गर्व से उसका हृदय फूल उठता । वह जीवन का आधार अब न था । उसका सूना खटोला देख कर वह रो उठती। वह कवच, जो सारी चिंताओं और दुराशाओं से उसकी रक्षा करता था, उससे छिन गया था। वह बार-बार सोचती, उसने झुनिया के साथ ऐसी कौन-सी बुराई की थी, जिसका उसने यह दंड दिया। डाइन ने आ कर उसका सोने-सा घर मिट्टी में मिला दिया। गोबर ने तो कभी उसकी बात का जवाब भी न दिया था। इसी राँड़ ने उसे फोड़ा और वहाँ ले जा कर न जाने कौन-कौन-सा नाच नचाएगी। यहाँ ही वह बच्चे की कौन बहुत परवाह करती थी। उसे तो अपने मिस्सी-काजल, माँग-चोटी ही से छुट्टी नहीं मिलती। बच्चे की देखभाल क्या करेगी? बेचारा अकेला जमीन पर पड़ा रोता होगा। बेचारा एक दिन भी तो सुख से नहीं रहने पाता। कभी खाँसी, कभी दस्त, कभी कुछ, कभी कुछ। यह सोच-सोच कर उसे झुनिया पर क्रोध आता। गोबर के लिए अब भी उसके मन में वही ममता थी। इसी चुड़ैल ने उसे कुछ खिला-पिला कर अपने बस में कर लिया। ऐसी मायाविनी न होती, तो यह टोना ही कैसे करती? कोई बात न पूछता था। भौजाइयों की लातें खाती थी। यह भुग्गा मिल गया तो आज रानी हो गई। होरी ने चिढ़ कर कहा - जब देखो तब झुनिया ही को दोस देती है। यह नहीं समझती कि अपना सोना खोटा तो सोनार का क्या दोष? गोबर उसे न ले जाता तो क्या आप-से-आप चली जाती? सहर का दाना-पानी लगने से लौंडे की आँखें बदल गईं, ऐसा क्यों नहीं समझ लेती। धनिया गरज उठी - अच्छा, चुप रहो। तुम्हीं ने राँड़ को मूड़ पर चढ़ा रखा था, नहीं मैंने पहले ही दिन झाड़ू मार कर निकाल दिया होता। खलिहान में डाठें जमा हो गई थीं। होरी बैलों को जुखर कर अनाज माँड़ने जा रहा था। पीछे मुँह फेर कर बोला - मान ले, बहू ने गोबर को फोड़ ही लिया, तो तू इतना कुढ़ती क्यों है? जो सारा जमाना करता है, वही गोबर ने भी किया। अब उसके बाल-बच्चे हुए। मेरे बाल-बच्चों के लिए क्यों अपनी साँसत कराए, क्यों हमारे सिर का बोझ अपने सिर रखे!
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