'बूढ़े के साथ क्यों जाऊँ? भैया बूढ़े थे जो झुनिया को ले आए? उन्हें किसने कै पैसे दहेज में दिए थे?' 'उसमें बाप-दादा का नाम डूबता है।' 'मैं तो सोनारी वालों से कह दूँगी, अगर तुमने एक पैसा भी दहेज लिया, तो मैं तुमसे ब्याह न करूँगी।' सोना का विवाह सोनारी के एक धनी किसान के लड़के से ठीक हुआ था। 'और जो वह कह दे, कि मैं क्या करूँ, तुम्हारे बाप देते हैं, मेरे बाप लेते हैं, इसमें मेरा क्या अख्तियार है?' सोना ने जिस अस्त्र को रामबाण समझा था, अब मालूम हुआ कि वह बाँस की कैन है। हताश हो कर बोली - मैं एक बार उससे कहके देख लेना चाहती हूँ, अगर उसने कह दिया, मेरा कोई अख्तियार नहीं है, तो क्या गोमती यहाँ से बहुत दूर है? डूब मरूँगी। माँ-बाप ने मर-मर के पाला-पोसा। उसका बदला क्या यही है कि उनके घर से जाने लगूँ, तो उन्हें करजे से और लादती जाऊँ? माँ-बाप को भगवान ने दिया हो, तो खुसी से जितना चाहें लड़की को दें, मैं मना नहीं करती, लेकिन जब वह पैसे-पैसे को तंग हो रहे हैं, आज महाजन नालिस करके लिल्लाम करा ले, तो कल मजूरी करनी पड़ेगी, तो कन्या का धरम यही है कि डूब मरे। घर की जमीन-जैजात तो बच जायगी, रोटी का सहारा तो रह जायगा। माँ-बाप चार दिन मेरे नाम को रो कर संतोष कर लेंगे। यह तो न होगा कि मेरा ब्याह करके उन्हें जनम-भर रोना पड़े। तीन-चार साल में दो सौ के दूने हो जाएँगे, दादा कहाँ से ला कर देंगे? सिलिया को जान पड़ा, जैसे उसकी आँख में नई ज्योति आ गई है। आवेश में सोना को छाती से लगा कर बोली - तूने इतनी अक्कल कहाँ से सीख ली सोना? देखने में तो तू बड़ी भोली-भाली है।
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