पहर रात हो गई थी। गोबर ताड़ी पिए ओसारे में पड़ा हुआ था। चुहिया बच्चे को चुप कराने के लिए उसके मुँह में अपने छाती डाले हुए थी कि सहसा उसे ऐसा मालूम हुआ कि उसकी छाती में दूध आ गया है। प्रसन्न हो कर बोली - ले झुनिया, अब तेरा बच्चा जी जायगा, मेरे दूध आ गया। झुनिया ने चकित हो कर कहा - तुम्हें दूध आ गया? 'नहीं री, सच।' 'मैं तो नहीं पतियाती।' 'देख ले!' उसने अपना स्तन दबा कर दिखाया। दूध की धार फूट निकली। झुनिया ने पूछा - तुम्हारी छोटी बिटिया तो आठ साल से कम की नहीं है। 'हाँ आठवाँ है, लेकिन मुझे दूध बहुत होता था।' 'इधर तो तुम्हें कोई बाल-बच्चा नहीं हुआ।' 'वही लड़की पेट-पोछनी थी। छाती बिलकुल सूख गई थी, लेकिन भगवान की लीला है, और क्या!' अब से चुहिया चार-पाँच बार आ कर बच्चे को दूध पिला जाती। बच्चा पैदा तो हुआ था दुर्बल, लेकिन चुहिया का स्वस्थ दूध पी कर गदराया जाता था। एक दिन चुहिया नदी स्नान करने चली गई। बच्चा भूख के मारे छटपटाने लगा। चुहिया दस बजे लौटी, तो झुनिया बच्चे को कंधों से लगाए झुला रही थी और बच्चा रोए जाता था। चुहिया ने बच्चे को उसकी गोद से ले कर दूध पिला देना चाहा, पर झुनिया ने उसे झिड़क कर कहा - रहने दो। अभागा मर जाय, वही अच्छा। किसी का एहसान तो न लेना पड़े। चुहिया गिड़गिड़ाने लगी। झुनिया ने बड़े अदरावन के बाद बच्चा उसकी गोद में दिया।
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