वह झुनिया के पास जा बैठी और उसका सिर अपनी जाँघ पर रख कर उसका पेट सहलाती हुई बोली - मैं तो आज तुझे देखते ही समझ गई थी। सच पूछो, तो इसी धड़के में आज मुझे नींद नहीं आई। यहाँ तेरा कौन सगा बैठा है? झुनिया ने दर्द से दाँत जमा कर सी करते हुए कहा - अब न बचूँगी! दीदी! हाय मैं तो भगवान से माँगने न गई थी। एक को पाला-पोसा। उसे तुमने छीन लिया, तो फिर इसका कौन काम था? मैं मर जाऊँ माता, तो तुम बच्चे पर दया करना। उसे पाल-पोस देना। भगवान तुम्हारा भला करेंगे। चुहिया स्नेह से उसके केश सुलझाती हुई बोली - धीरज धर बेटी, धीरज धर। अभी छन-भर में कष्ट कटा जाता है। तूने भी तो जैसे चुप्पी साध ली थी। इसमें किस बात की लाज! मुझे बता दिया होता, तो मैं मौलवी साहब के पास से ताबीज ला देती। वही मिर्जा जी जो इस हाते में रहते हैं। इसके बाद झुनिया को कुछ होश न रहा। नौ बजे सुबह उसे होश आया, तो उसने देखा, चुहिया शिुश को लिए बैठी है और वह साफ साड़ी पहने लेटी हुई है। ऐसी कमजोरी थी, मानो देह में रक्त का नाम न हो। चुहिया रोज सबेरे आ कर झुनिया के लिए हरीरा और हलवा पका जाती और दिन में भी कई बार आ कर बच्चे को उबटन मल जाती और ऊपर का दूध पिला जाती। आज चौथा दिन था, पर झुनिया के स्तनों में दूध न उतरता था। शिशु रो-रो कर गला गाड़े लेता था, क्योंकि ऊपर का दूध उसे पचता न था। एक छन को भी चुप न होता था। चुहिया अपना स्तन उसके मुँह में देती। बच्चा एक क्षण चूसता, पर जब दूध न निकलता, तो फिर चीखने लगता। जब चौथे दिन साँझ तक झुनिया के दूध न उतरा, तो चुहिया घबराई। बच्चा सूखता चला जाता था। नखास में एक पेंशनर डाक्टर रहते थे। चुहिया उन्हें ले आई। डाक्टर ने देख-भाल कर कहा - इसकी देह में खून तो है ही नहीं, दूध कहाँ से आए? समस्या जटिल हो गई। देह में खून लाने के लिए महीनों पुष्टिकारक दवाएँ खानी पड़ेंगी, तब कहीं दूध उतरेगा। तब तक तो इस माँस के लोथड़े का ही काम तमाम हो जायगा।
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