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मुंशी प्रेमचंद - गोदान
गोदान
भाग-29
पेज-296
सिल्लो भी पीछे-पीछे आ कर आँगन में खड़ी हो गई। उसने देखा, सोना यहाँ कितने आराम से रहती है। ओसारी में खाट है। उस पर सुजनी का नर्म बिस्तर बिछा हुआ है, बिलकुल वैसा ही, जैसा मातादीन की चारपाई पर बिछा रहता था। तकिया भी है, लिहाफ भी है। खाट के नीचे लोटे में पानी रखा हुआ है। आँगन में ज्योत्स्ना ने आइना-सा बिछा रखा है। एक कोने में तुलसी का चबूतरा है, दूसरी ओर जुआर के ठेठों के कई बोझ दीवार से लगा कर रखे हैं। बीच में पुआलों के गट्ठे हैं। समीप ही ओखल है, जिसके पास कुटा हुआ धान पड़ा हुआ है। खपरैल पर लौकी की बेल चढ़ी हुई है और कई लौकियाँ ऊपर चमक रही हैं। दूसरी ओर की ओसारी में एक गाय बँधी हुई है। इस खंड में मथुरा और सोना सोते हैं। और लोग दूसरे खंड में होंगे। सिलिया ने सोचा, सोना का जीवन कितना सुखी है।
सोना उठ कर आँगन में आ गई थी, मगर सिल्लो से टूट कर गले नहीं मिली। सिल्लो ने समझा, शायद मथुरा के खड़े रहने के कारण सोना संकोच कर रही है। या कौन जाने, उसे अब अभिमान हो गया हो? सिल्लो चमारिन से गले मिलने में अपना अपमान समझती हो। उसका सारा उत्साह ठंडा हो गया। इस मिलन से हर्ष के बदले उसे ईष्या हुई। सोना का रंग कितना खुल गया है, और देह कैसी कंचन की तरह निखर आई है। गठन भी सुडौल हो गया है। मुख पर गृहिणीत्व की गरिमा के साथ युवती की सहास छवि भी है। सिल्लो एक क्षण के लिए जैसे मंत्र-मुग्ध-सी खड़ी ताकती रह गई। यह वही सोना है, जो सूखी-सी देह लिए, झोंटे खोले इधर-उधर दौड़ा करती थी। महीनों सिर में तेल न पड़ता था। फटे चिथड़े लपेटे फिरती थी। आज अपने घर की रानी है। गले में हँसुली और हुमेल है, कानों में करनफूल और सोने की बालियाँ, हाथों में चाँदी के चूड़े और कंगन। आँखों में काजल है, माँग में सेंदुर। सिलिया के जीवन का स्वर्ग यहीं था, और सोना को वहाँ देख कर वह प्रसन्न न हुई। इसे कितना घमंड हो गया है! कहाँ सिलिया के गले में बाँहे डाल घास छीलने जाती थी, और आज सीधे ताकती भी नहीं। उसने सोचा था, सोना उसके गले लिपट कर जरा-सा रोएगी, उसे आदर से बैठाएगी, उसे खाना खिलाएगी, और गाँव और घर की सैकड़ों बातें पूछेगी और अपने नए जीवन के अनुभव बयान करेगी - सोहागरात और मधुर मिलन की बातें होंगी। और सोना के मुँह में दही जमा हुआ है। वह यहाँ आ कर पछताई।
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