मुंशी प्रेमचंद - गोदान

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गोदान

भाग-30

पेज-303

इधर कभी-कभी दोनों देहातों की ओर चले जाते थे और किसानों के साथ दो-चार घंटे रह कर, कभी-कभी उनके झोंपड़ों में रात काटकर, और उन्हीं का-सा भोजन करके, अपने को धन्य समझते थे। एक दिन वह सेमरी तक पहुँच गए और घूमते-घामते बेलारी जा निकले। होरी द्वार पर बैठा चिलम पी रहा था कि मालती और मेहता आ कर खड़े हो गए। मेहता ने होरी को देखते ही पहचान लिया और बोला - यही तुम्हारा गाँव है? याद है, हम लोग रायसाहब के यहाँ आए थे और तुम धनुषयज्ञ की लीला में माली बने थे।

होरी की स्मृति जाग उठी। पहचाना और पटेश्वरी के घर की ओर कुरसियाँ लाने चला।

मेहता ने कहा - कुरसियों का कोई काम नहीं। हम लोग इसी खाट पर बैठे जाते हैं। यहाँ कुरसी पर बैठने नहीं, तुमसे कुछ सीखने आए हैं।

दोनों खाट पर बैठे। होरी हतबुद्धि-सा खड़ा था। इन लोगों की क्या खातिर करे! बड़े-बड़े आदमी हैं। उनकी खातिर करने लायक उसके पास है ही क्या?

आखिर उसने पूछा - पानी लाऊँ?

मेहता ने कहा - हाँ, प्यास तो लगी है।

'कुछ मीठा भी लेता आऊँ?'

'लाओ, अगर घर में हो।'

होरी घर में मीठा और पानी लेने गया। तब तक गाँव के बालकों ने आ कर इन दोनों आदमियों को घेर लिया और लगे निरखने, मानो चिड़ियाघर के अनोखे जंतु आ गए हों।

सिल्लो बच्चे को लिए किसी काम से चली जा रही थी। इन दोनों आदमियों को देख कर कौतूहलवश ठिठक गई।

मालती ने आ कर उसके बच्चे को गोद में ले लिया और प्यार करती हुई बोली - कितने दिनों का है?

सिल्लो को ठीक न मालूम था। एक दूसरी औरत ने बताया - कोई साल-भर का होगा, क्यों री?

सिल्लो ने समर्थन किया।

मालती ने विनोद किया, प्यारा बच्चा है। इसे हमें दे दो।

सिल्लो ने गर्व से फूल कर कहा - आप ही का तो है।

'लो मैं इसे ले जाऊँ?'

'ले जाइए। आपके साथ रह कर आदमी हो जायगा।'

 

 

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