मुंशी प्रेमचंद - गोदान

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गोदान

भाग-30

पेज-304

 

गाँव की और महिलाएँ आ गईं और मालती को होरी के घर में ले गईं। यहाँ मरदों के सामने मालती से वार्तालाप करने का अवसर उन्हें न मिलता। मालती ने देखा, खाट बिछी है, और उस पर एक दरी पड़ी हुई है, जो पटेश्वरी के घर से माँग कर आई थी, मालती जा कर बैठी। संतान-रक्षा और शिशु-पालन की बातें होने लगीं। औरतें मन लगा कर सुनती रहीं।

धनिया ने कहा - यहाँ यह सब सफाई और संजम कैसे होगा सरकार! भोजन तक का ठिकाना तो है नहीं।

मालती ने समझाया - सफाई में कुछ खर्च नहीं। केवल थोड़ी-सी मेहनत और होशियारी से काम चल सकता है।

दुलारी सहुआइन ने पूछा - यह सारी बातें तुम्हें कैसे मालूम हुईं सरकार, आपका तो अभी ब्याह ही नहीं हुआ?

मालती ने मुस्करा कर पूछा - तुम्हें कैसे मालूम हुआ कि मेरा ब्याह नहीं हुआ है।'

सभी स्त्रियाँ मुँह फेर कर मुस्कराईं। पुनिया बोली-भला, यह भी छिपा रहता है, मिस साहब, मुँह देखते ही पता चल जाता है।

मालती ने झेंपते हुए कहा - इसलिए ब्याह नहीं किया कि आप लोगों की सेवा कैसे करती!

सबने एक स्वर में कहा - धन्य हो सरकार, धन्य हो।

सिलिया मालती के पाँव दबाने लगी - सरकार कितनी दूर से आई हैं, थक गई होंगी।

मालती ने पाँव खींच कर कहा - नहीं-नहीं, मैं थकी नहीं हूँ। मैं तो हवागाड़ी पर आई हूँ। मैं चाहती हूँ, आप लोग अपने बच्चे लाएँ, तो मैं उन्हें देख कर आप लोगों को बताऊँ कि आप इन्हें कैसे तंदुरुस्त और नीरोग रख सकती हैं।

 

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