मुंशी प्रेमचंद - गोदान

premchand godan,premchand,best novel in hindi, best literature, sarveshreshth story

गोदान

भाग-30

पेज-308

नदी के किनारे चाँदी का फर्श बिछा हुआ था और नदी रत्न-जटित आभूषण पहने मीठे स्वरों में गाती, चाँद को और तारों को और सिर झुकाए नींद में माते वृक्षों को अपना नृत्य दिखा रही थी। मेहता प्रकृति की उस मादक शोभा से जैसे मस्त हो गए। जैसे उनका बालपन अपने सारी क्रीड़ाओं के साथ लौट आया हो। बालू पर कई कुलाटें मारीं। फिर दौड़े हुए नदी में जा कर घुटनों तक पानी में खड़े हो गए।

मालती ने कहा - पानी में न खड़े हो। कहीं ठंड न लग जाए।

मेहता ने पानी उछाल कर कहा - मेरा तो जी चाहता है, नदी के उस पार तैर कर चला जाऊँ।

'नहीं-नहीं, पानी से निकल आओ। मैं न जाने दूँगी।'

'तुम मेरे साथ न चलोगी उस सूनी बस्ती में, जहाँ स्वप्नों का राज्य है?'

'मुझे तो तैरना नहीं आता।'

'अच्छा, आओ, एक नाव बनाएँ, और उस पर बैठ कर चलें।'

वह बाहर निकल आए। आस-पास बड़ी दूर तक झाऊ का जंगल खड़ा था। मेहता ने जेब से चाकू निकाला और बहुत-सी टहनियाँ काट कर जमा कीं। कगार पर सरपत के जूटे खड़े थे। ऊपर चढ़ कर सरपत का एक गट्ठा काट लाए और वहीं बालू के फर्श पर बैठ कर सरपत की रस्सी बटने लगे। ऐसे प्रसन्न थे, मानो स्वर्गारोहण की तैयारी कर रहे हैं। कई बार उँगलियाँ चिर गईं, खून निकला। मालती बिगड़ रही थी, बार-बार गाँव लौट चलने के लिए आग्रह कर रही थी, पर उन्हें कोई परवाह न थी। वही बालकों का-सा उल्लास था, वही अल्हड़पन, वही हठ। दर्शन और विज्ञान सभी इस प्रवाह में बह गए थे।

रस्सी तैयार हो गई। झाऊ का बड़ा-सा तख्ता बन गया, टहनियाँ दोनों सिरों पर रस्सी से जोड़ दी गई थीं। उसके छिद्रों में झाऊ की टहनियाँ भर दी गईं, जिससे पानी ऊपर न आए। नौका तैयार हो गई। रात और भी स्वप्निल हो गई थी।

मेहता ने नौका को पानी में डाल कर मालती का हाथ पकड़ कर कहा - आओ, बैठो।

मालती ने सशंक हो कर कहा - दो आदमियों का बोझ सँभाल लेगी?

 

 

पिछला पृष्ठ गोदान अगला पृष्ठ
प्रेमचंद साहित्य का मुख्यपृष्ट हिन्दी साहित्य का मुख्यपृष्ट

 

 

Kamasutra in Hindi

top