मेहता ने कुछ उत्तर न दिया। बंदूक कनपटी से कंधों पर दबा ली और मालती को दोनों हाथों से उठा कर कंधों पर बैठा लिया। मालती अपने पुलक को छिपाती हुई बोली - अगर कोई देख ले? 'भद्दा तो लगता है।' दो पग के बाद उसने करुण स्वर में कहा - अच्छा बताओ, मैं यहीं पानी में डूब जाऊँ, तो तुम्हें रंज हो या न हो? मैं तो समझती हूँ, तुम्हें बिलकुल रंज न होगा। मेहता ने आहत स्वर से कहा - तुम समझती हो, मैं आदमी नहीं हूँ? 'मैं तो यही समझती हूँ, क्यों छिपाऊँ।' 'सच कहती हो मालती?' 'तुम क्या समझते हो?' 'मैं! कभी बतलाऊँगा।' पानी मेहता की गर्दन तक आ गया। कहीं अगला कदम उठाते ही सिर तक न आ जाए। मालती का हृदय धक-धक करने लगा। बोली - मेहता, ईश्वर के लिए अब आगे मत जाओ, नहीं, मैं पानी में कूद पडूँगी। उस संकट में मालती को ईश्वर याद आया, जिसका वह मजाक उड़ाया करती थी। जानती थी, ईश्वर कहीं बैठा नहीं है, जो आ कर उन्हें उबार लेगा, लेकिन मन को जिस अवलंब और शक्ति की जरूरत थी, वह और कहाँ मिल सकती थी? पानी कम होने लगा था। मालती ने प्रसन्न हो कर कहा - अब तुम मुझे उतार दो। 'नहीं-नहीं, चुपचाप बैठी रहो। कहीं आगे कोई गढ़ा मिल जाए।' 'तुम समझते होगे, यह कितनी स्वार्थिन है।' 'मुझे इसकी मजदूरी दे देना।' मालती के मन में गुदगुदी हुई। 'क्या मजदूरी लोगे?' 'यही कि जब तुम्हारे जीवन में ऐसा ही कोई अवसर आए, तो मुझे बुला लेना।' किनारे आ गए। मालती ने रेत पर अपने साड़ी का पानी निचोड़ा, जूते का पानी निकाला, मुँह-हाथ धोया, पर ये शब्द अपने रहस्यमय आशय के साथ उसके सामने नाचते रहे। उसने इस अनुभव का आनंद उठाते हुए कहा - यह दिन याद रहेगा। मेहता ने पूछा - तुम बहुत डर रही थीं? 'पहले तो डरी, लेकिन फिर मुझे विश्वास हो गया कि तुम हम दोनों की रक्षा कर सकते हो।' मेहता ने गर्व से मालती को देखा - उनके मुख पर परिश्रम की लाली के साथ तेज था। 'मुझे यह सुन कर कितना आनंद आ रहा है, तुम यह समझ सकोगी मालती?' 'तुमने समझाया कब? उलटे और जंगलों में घसीटते फिरते हो, और अभी फिर लौटती बार यही नाला पार करना पड़ेगा। तुमने कैसी आफत में जान डाल दी। मुझे तुम्हारे साथ रहना पड़े, तो एक दिन न पटे।' मेहता मुस्कराए। इन शब्दों का संकेत खूब समझ रहे थे। 'तुम मुझे इतना दुष्ट समझती हो! और जो मैं कहूँ कि मैं तुमसे प्रेम करता हूँ, तो तुम मुझसे विवाह करोगी?' 'ऐसे काठ-कठोर से कौन विवाह करेगा। रात-दिन जला कर मार डालोगे।' और मधुर नेत्रों से देखा, मानो कह रही हो - इसका आशय तुम खूब समझते हो। इतने बुद्धू नहीं हो।
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