मिर्जा ने अपराधी भाव से मुस्करा कर कहा - मैंने शिकार इस गरीब आदमी को दे दिया। अब जरा इसके घर चल रहा हूँ। आप भी आइए न। तंखा ने मिर्जा को कौतूहल की दृष्टि से देखा और बोले - आप अपने होश में हैं या नहीं? 'कह नहीं सकता। मुझे खुद नहीं मालूम।' 'शिकार इसे क्यों दे दिया?' 'इसलिए कि उसे पा कर इसे जितनी खुशी होगी, मुझे या आपको न होगी।' तंखा खिसिया कर बोले - जाइए! सोचा था, खूब कबाब उड़ाएँगे, सो आपने सारा मजा किरकिरा कर दिया। खैर, रायसाहब और मेहता कुछ न कुछ लाएँगे ही। कोई गम नहीं। मैं इस इलेक्शन के बारे में कुछ अर्ज करना चाहता हूँ। आप नहीं खड़ा होना चाहते न सही, आपकी जैसी मर्जी, लेकिन आपको इसमें क्या ताम्मुल है कि जो लोग खड़े हो रहे हैं, उनसे इसकी अच्छी कीमत वसूल की जाए। मैं आपसे सिर्फ इतना चाहता हूँ कि आप किसी पर यह भेद न खुलने दें कि आप नहीं खड़े हो रहे हैं। सिर्फ इतनी मेहरबानी कीजिए मेरे साथ! ख्वाजा जमाल ताहिर इसी शहर से खड़े हो रहे हैं। रईसों के वोट तो सोलहों आने उनकी तरफ हैं ही, हुक्काम भी उनके मददगार हैं। फिर भी पब्लिक पर आपका जो असर है, इससे उनकी कोर दब रही है। आप चाहें तो आपको उनसे दस-बीस हजार रुपए महज यह जाहिर कर देने के मिल सकते हैं कि आप उनकी खातिर बैठ जाते हैं…नहीं मुझे अर्ज कर लेने दीजिए। इस मुआमले में आपको कुछ नहीं करना है। आप बेफिक्र बैठे रहिए। मैं आपकी तरफ से एक मेनिफेस्टो निकाल दूँगा और उसी शाम को आप मुझसे दस हजार नकद वसूल कर लीजिए। मिर्जा साहब ने उनकी ओर हिकारत से देख कर कहा - मैं ऐसे रुपए पर और आप पर लानत भेजता हूँ। मिस्टर तंखा ने जरा भी बुरा नहीं माना। माथे पर बल तक न आने दिया। 'मुझ पर जितनी लानत चाहें भेजें, मगर रुपए पर लानत भेज कर आप अपना ही नुकसान कर रहे हैं।' 'मैं ऐसी रकम को हराम समझता हूँ।' 'आप शरीयत के इतने पाबंद तो नहीं हैं।' 'लूट की कमाई को हराम समझने के लिए शरा का पाबंद होने की जरूरत नहीं है।' 'तो इस मुआमले में क्या आप फैसला तब्दील नहीं कर सकते?' 'जी नहीं।'
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