प्रात:काल होरी के घर में एक पूरा हंगामा हो गया। होरी धनिया को मार रहा था। धनिया उसे गालियाँ दे रही थी। दोनों लड़कियाँ बाप के पाँवों से लिपटी चिल्ला रही थीं और गोबर माँ को बचा रहा था। बार-बार होरी का हाथ पकड़ कर पीछे ढकेल देता, पर ज्यों ही धनिया के मुँह से कोई गाली निकल जाती, होरी अपने हाथ छुड़ा कर उसे दो-चार घूँसे और लात जमा देता। उसका बूढ़ा क्रोध जैसे किसी गुप्त संचित शक्ति को निकाल लाया हो। सारे गाँव में हलचल पड़ गई। लोग समझाने के बहाने तमाशा देखने आ पहुँचे। सोभा लाठी टेकता आ खड़ा हुआ। दातादीन ने डाँटा - यह क्या है होरी, तुम बावले हो गए हो क्या? कोई इस तरह घर की लच्छमी पर हाथ छोड़ता है। तुम्हें तो यह रोग न था। क्या हीरा की छूत तुम्हें भी लग गई? होरी ने पालागन करके कहा - महाराज, तुम इस बखत न बोलो। मैं आज इसकी बान छुड़ा कर तब दम लूँगा। मैं जितना ही तरह देता हूँ, उतना ही यह सिर चढ़ती जाती है। धनिया सजल क्रोध में बोली - महाराज, तुम गवाह रहना। मैं आज इसे और इसके हत्यारे भाई को जेहल भेजवा कर तब पानी पिऊँगी। इसके भाई ने गाय को माहुर खिला कर मार डाला। अब तो मैं थाने में रपट लिखाने जा रही हूँ, तो यह हत्यारा मुझे मारता है। इसके पीछे अपने जिंदगी चौपट कर दी, उसका यह इनाम दे रहा है। होरी ने दाँत पीस कर और आँखें निकाल कर कहा - फिर वही बात मुँह से निकाली। तूने देखा था हीरा को माहुर खिलाते? 'तू कसम खा जा कि तूने हीरा को गाय की नाँद के पास खड़े नहीं देखा?' 'हाँ, मैंने नहीं देखा, कसम खाता हूँ।' 'बेटे के माथे पर हाथ रखके कसम खा!' होरी ने गोबर के माथे पर काँपता हुआ हाथ रख कर काँपते हुए स्वर में कहा - मैं बेटे की कसम खाता हूँ कि मैंने हीरा को नाँद के पास नहीं देखा। धनिया ने जमीन पर थूक कर कहा - थुड़ी है तेरी झुठाई पर। तूने खुद मुझसे कहा कि हीरा चोरों की तरह नाँद के पास खड़ा था। और अब भाई के पच्छ में झूठ बोलता है। थुड़ी है! अगर मेरे बेटे का बाल भी बाँका हुआ, तो घर में आग लगा दूँगी। सारी गृहस्थी में आग लगा दूँगी। भगवान, आदमी मुँह से बात कह कर इतनी बेसरमी से मुकर जाता है। होरी पाँव पटक कर बोला - धनिया, गुस्सा मत दिला, नहीं बुरा होगा। 'मार तो रहा है, और मार ले। जो, तू अपने बाप का बेटा होगा तो आज मुझे मार कर तब पानी पिएगा। पापी ने मारते-मारते मेरा भुरकस निकाल लिया, फिर भी इसका जी नहीं भरा। मुझे मार कर समझता है, मैं बड़ा वीर हूँ। भाइयों के सामने भीगी बिल्ली बन जाता है, पापी कहीं का, हत्यारा!' फिर वह बैन कह कर रोने लगी - इस घर में आ कर उसने क्या नहीं झेला, किस-किस तरह पेट-तन नहीं काटा, किस तरह एक-एक लत्ते को तरसी, किस तरह एक-एक पैसा प्राणों की तरह संचा, किस तरह घर-भर को खिला कर आप पानी पी कर सो रही। और आज उन सारे बलिदानों का यह पुरस्कार। भगवान बैठे यह अन्याय देख रहे हैं और उसकी रक्षा को नहीं दौड़ते। गज की और द्रौपदी की रक्षा करने बैकुंठ से दौड़े थे। आज क्यों नींद में सोए हुए हैं?
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