जनमत धीरे-धीरे धनिया की ओर आने लगा। इसमें अब किसी को संदेह नहीं रहा कि हीरा ने ही गाय को जहर दिया। होरी ने बिलकुल झूठी कसम खाई है, इसका भी लोगों को विश्वास हो गया। गोबर को भी बाप की इस झूठी कसम और उसके फलस्वरूप आने वाली विपत्ति की शंका ने होरी के विरुद्ध कर दिया। उस पर जो दातादीन ने डाँट बताई, तो होरी परास्त हो गया। चुपके से बाहर चला गया। सत्य ने विजय पाई। दातादीन ने सोभा से पूछा - तुम कुछ जानते हो सोभा, क्या बात हुई? सोभा जमीन पर लेटा हुआ बोला - मैं तो महाराज, आठ दिन से बाहर नहीं निकला। होरी दादा कभी-कभी जा कर कुछ दे आते हैं, उसी से काम चलता है। रात भी वह मेरे पास गए थे। किसने क्या किया, मैं कुछ नहीं जानता। हाँ, कल साँझ को हीरा मेरे घर खुरपी माँगने गया था। कहता था, एक जड़ी खोदना है। फिर तब से मेरी उससे भेंट नहीं हुई। धनिया इतनी शह पा कर बोली - पंडित दादा, वह उसी का काम है। सोभा के घर से खुरपी माँग कर लाया और कोई जड़ी खोद कर गाय को खिला दी। उस रात को जो झगड़ा हुआ था, उसी दिन से वह खार खाए बैठा था। दातादीन बोले - यह बात साबित हो गई, तो उसे हत्या लगेगी। पुलिस कुछ करे या न करे, धरम तो बिना दंड दिए न रहेगा। चली तो जा रुपिया, हीरा को बुला ला। कहना, पंडित दादा बुला रहे हैं। अगर उसने हत्या नहीं की है, तो गंगाजली उठा ले और चौरे पर चढ़ कर कसम खाए। धनिया बोली - महाराज, उसके कसम का भरोसा नहीं। चटपट खा लेगा। जब इसने झूठी कसम खा ली, जो बड़ा धर्मात्मा बनता है, तो हीरा का क्या विश्वास? अब गोबर बोला - खा ले झूठी कसम। बंस का अंत हो जाए। बूढ़े जीते रहें। जवान जीकर क्या करेंगे! रूपा एक क्षण में आ कर बोली - काका घर में नहीं हैं, पंडित दादा! काकी कहती हैं, कहीं चले गए हैं। दातादीन ने लंबी दाढ़ी फटकार कर कहा - तूने पूछा नहीं, कहाँ चले गए हैं? घर में छिपा बैठा न हो। देख तो सोना, भीतर तो नहीं बैठा? धनिया ने टोका - उसे मत भेजो दादा! हीरा के सिर हत्या सवार है, न जाने क्या कर बैठे।
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