मुंशी प्रेमचंद - प्रेमा

छठा अध्याय - मुये पर सौ दुर्रे

पेज- 42

प्यारे पाठकगण। हम यह वर्णन करके कि इन दोनों आदमियों के पहुँचते ही वहॉँ कैसी खलबली पड़ गयी, मुंशी बदरीप्रसाद ने इनका कैसा आदर किया, गुलजारीलाल, दाननाथ और मिस्टर शर्मा कैसी ऑंखे चुराने लगे, या साहब ने कैसे काट-छांट की बाते की और मुंशी जी को सी.आई.ई  की पदवी की किन शब्दों में आशा दिलाइ आपका समय नहीं गँवाया चाहते। खुलासा यह कि अमॄतराय को यहॉँ से सत्तरह हजार रूपया मिला। मुंशी बदरीप्रसाद ने अकेले बारह हजार दिया जो उनकी उम्मेद से बहुत ज्यादा था। वह जब यहॉँ से चले तो ऐसा मालूम होता था कि मानों कोई गढ़ी जीते चले आ रहे है। वह जमीन भी जिसके लिए उन्होने कमेटी मे दरखस्त की थी मिल गयी और आज ही इंजीनियर ने उसको नाप कर अनाथालय का नकशा बनाना आरंभ कर दिया।
साहब और अमृतराय के चले जाने पर यहॉँ यो बाते होने लगी।
झम्मनलाल—यार, हमको तो इस लौंडे ने आज पांच सौ के रूप में डाल दिया।
गुलजारी लाल—जनाब, आप पॉँच सौ को रो रही है यहॉँ तो एक हजार पर पानी फिर गया। मुंशी जी तो सी.आई.ई की पदवी पावेगें।यहॉँ तो कोई रायबहादुरी को भी नहीं पूछता।
कमलाप्रसाद—बडे शोक की बात है कि आप लोग ऐसे शुभ कार्य मे सहायता देकर पछताते है। अमृतराय को देखिए कि उन्होंने अपना एक गॉँव बेचकर दस हजार रूपया भी दिया और उस पर दौड़-धूप अलग कर रहे है।
मुंशी बदरीप्रसाद—अमृतराय बड़ा उत्साही आदमी है। मैने आज इसको जाना। बच्चा कमलाप्रसाद। तुम आज शाम को उनके यहॉँ जाकर हमारी ओर से धन्यवाद दे देना।
झम्मनलाल—(मुंह फेरकर) आप क्यों न प्रसन्न होंगे, आपको तो पदवी मिलेगी न?
कमलाप्रसाद—(हंसकर) अगर आपका वह कवित्त तैयार हो तो जरा सुनाइए।
दाननाथ जो अब तक चुपचाप बैठे हुए थे बोले—अब आप उनकी निंदा करने की जगह उनकी प्रंशसा कीजिए।
मिस्टर शर्मा—अच्छा, जो हुआ सो हुआ, अब सभा विसर्जन कीजिए, आज यह मालूम हो गया कि अमृतराय अकेले हम सब पर भारी है।

कमलाप्रसाद—आपने नहीं सुन, सत्य की सदा जय होती है।

 

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