Home Page

States of India

Hindi Literature

Religion in India

Articles

Art and Culture

 

कवच kavach Premchand's Hindi story

कवच kavach Premchand's Hindi story

पेज 2

कवच

 

और क्यो आपसे यह भिक्षा मांगी? यहां ऐसे आदमियों की कमी नहीं है, जो मेरा इशारा पाते ही उस दुष्ट के टुकड़े उड़ा देगें, सरे बाजार उसके रक्त से भूमि को रंग देंगे। जी हां, एक इशारे से उसकी हड्डियों का बुरादा बना सकता हूं।, उसके नहों में कीलें ठुकवा सकता हूं।, मगर मैंने सबकों छोड़कर आपकों छांटा, जानतें हो क्यों? इसलिए कि मुझे तुम्हारे ऊपर विश्वास है, वह विश्वास जो मुझे अपने निकटतम आदमियों पर भी नहीं, मैं जानता हूं। कि तुम्हारे हृदय में यह भेद उतना ही गुप्त रहेगा, जितना मेरे। मुझे विश्वास है कि प्रलोभन अपनी चरम शक्ति का उपयोग करके भी तुम्हें नहीं डिगा सकता। पाशविक अत्याचार भी तुम्हारे अधरों को नहीं खोल सकते, तुम बेवफाई न करोगे, दगा न करोगे, इस अवसर से अनुचित लाभ न उठाओंगे, जाते हो, इसका पुरस्कार क्या होगा? इसके विषय में तुम कुछ भी शंका न करों। मुझमें और चाहे कितने ही दुर्गुण हों, कृतध्नता का दोष नहीं है। बड़े से बड़ा पुरस्कार जो मेरे अधिकार में है, वह तुम्हें दिया जाएगा। मनसब, जागीर, धन, सम्मान सब तुम्हारी इच्छानुसार दिये जाएंगे। इसका सम्पूर्ण अधिकार तुमकों दिया जाएगा, कोई दखल न देगा। तुम्हारी महत्वाकांक्षा को उच्चतम शिखर तक उड़ने की आजादी होगी। तुम खुद फरमान लिखोगे और मैं उस पर आंखें बंद करके दस्तखत करूंगा; बोलो, कब जाना चाहते हो? उसका नाम और पता इस कागर पर लिखा हुआ है, इसे अपने हृदय पर अंकित कर लो, और कागज फाड़ डालो। तुम खुद समझ सकते हो कि मैंने कितना बड़ा भार तुम्हारे ऊपर रखा ाहै। मेरी आबरू, मेरी जान, तुम्हारी मुट्ठी में हैं। मुझे विश्वास है कि तुम इस काम को सुचारू रूप से पूरा करोगे। जिन्हें अपना सहयोगी बनाओंगे, वे भरोसे के आदमी होंगे। तुम्हें अधिकतम बुद्धिमत्ता, दूरदर्शिता और धैर्य से काम लेना पड़ेगा। एक असंयत शब्द, एक क्षण का विलम्ब, जरा-सी लापरवाही मेरे और तुम्हारें दोनों के लिए प्राणघातक होगी। दुश्मन घात में बैठा हुआ है, ’कर तो डर, न कर तो डर’ का मामला है। यों ही गद्दी से उतारने के मंसूबें सोचे जा रहे हैं, इस रहस्य के खुल जाने पर क्या दुर्गति होगी, इसका अनुमान तुम आप कर सकते हो। मैं बर्मा में नजरबन्द कर दिया जाऊंगा, रियासत गैरों के हाथ मे चली जाएगी और मेरा जीवन नष्ट हो जाएगा। में चाहता हूं कि आज ही चले जाओ। यह इम्पीरियल बैंक का चेक बुक है, मैंने चेको पर दस्तखत कर दिए है, जब जितने रूपयों की जरूरत हों, ले लेना।
‘मेरा दिमाग सातवें आसमान पर जा पहुंचा। अब मुझे मालूम हुआ कि प्रलोभन में ईमान को बिगाड़ने की कितनी शक्ति होती है। मुझे जैसे कोई नशा हो गया।’ मैंने एक किताब में पढ़ा था कि अपने भाग्य-निर्माण का अवसर हर एक आदमी को मिलता है और एक ही बार। जो इस अवसर को दोनों हाथो से पकड़ लेता है, वह मर्द है, जो आगा-पीछा में पड़कर उसे छोड़ देता है, वह कायर होता है। एक को धन, यश, गौरव नसीब होता है और दूसरा खेद, लज्जा और दुर्दशा में रो-रोकर जिंदगी के दिन काटता है। फैसला करने के लिए केवल एक क्षण का समय मिलता है। वह समय कितना बहुमूल्य होता है। मेरे जीवन में यह वही अवसर था। मैंने उसे दोनों हाथों से पकड़ने का निश्चय कर लिया। सौभाग्य अपनी सर्वोत्तम सिद्धियों का थाल लिए मेरे सामने हाजिर है, वह सारी विभूतियों; जिनके लिए आदमी जीता-मरता है, मेरा स्वागत करने के लिए खड़ी है। अगर इस समय मै। उनकी उपेक्षा करूं, तो मुझ जैसा अभागा आदमी संसार में न होगा। माना कि बड़े जोखिम का काम है, लेकिन पुरस्कार तो देखों। दरिया में गोता लगाने ही से तो मोती मिलता है, तख्त पर बेठे हुए कायरों के लिए कोड़ियों और घोंघों के सिवा और क्या है?  माना कि बेगुनाह के खून से हाथ रंगना पड़ेगा। क्या मुजायका! बलिदान से ही वरदान मिलता है। संसार समर भूमि है। यहाँ लाशों का जीना बनाकर उन्नति के शिखर पर चढ़ना पड़ता है। खून के नालों में तैरकर ही विजय-तट मिलता है। संसार का इतिहास देखों,. सफल पुरूषों का चरित्र रक्त के अक्षरों में लिखा हुआ है। वीरो ने सदैव खून के दरिया में गोते लगाये हैं, खून की होलियां खेली है। खून का डर दुर्बलता और कम हिम्मती का चिह्न है। कर्मयोगी की दृष्टि लक्ष्य पर रहती हैं, मार्ग पर नहीं, शिखर पर रहती है, मध्यवर्ती चट्टानों पर नहीं, मैंने खड़े होकर अर्ज की—गुलाम इस खिदमत के लिए हाजिर हे।’
राजा साहब ने सम्मान की दृष्टि से देखरक कहा—मुझे तुमसे यही आशा थी। तुम्हारा दिल कहता है कि यह काम पूरा कर आओगे?
‘मुझे विश्वास है।’
‘मेरा भी यही विचार था। देखो, एक-एक क्षण का समाचार भेजते रहना।’
‘ईश्वर ने चाहा तो हुजूर को शिकायत का कोई मौका न मिलेगा।’
‘ईश्वर का नाम न लो, ईश्वर ऐसे मौक के लिए नहीं है। ईश्वर की मदद उस वक्त मांगो, जब अपना दिल कमजोर हो। जिसकी बांहों में शक्ति, मन में विकल्प, बुद्धि में बल और साहस है, वह ईश्वर का आश्रय क्यों ले? अच्छा, जाओं और जल्द सुर्खरू होकर लौटो, आंखें तुम्हारी तरफ लगी रहेंगी।’


2

मैंने आत्मा की आलोचनाओं को सिर तक न उठाने दिया। उस दुष्ट को क्या अधिकार था कि वह सरफराज से ऐसा कुत्सित सम्बंध रखे, जब उसे मालूम था कि राजा साहब ने, उसे अपने हरम में दाखिल कर लिया है? यह लगभग उतना ही गर्हित अपराध है, जितना किसी विवाहित स्त्री को भगा ले जाना। सरफराज एक प्रकार से विवाहिता है, ऐसी स्त्री से पत्र-व्यवहार करना और उस पर डोरे डालना किसी दशा में भी क्षम्म नहीं हो सकता। ऐसे संगीन अपराध की सजा भी उतनी ही संगीन होनी चाहिए। अगर मेरे हृदय में उस वक्त तक कुछ दुर्बलता, कुछ संशय, कुछ अविश्वास था, तो इस तर्क ने उसे दूर कर दिया। सत्य का विश्वास सत्-साहस का मंत्र है। अब वह खून मेरी नजरों में पापमय हत्या नहीं, जायज खून था और उससे मुंह मोड़ना लज्जाजनक कायरता।
गाड़ी के जाने में अभी दो घण्टे की देर थी। रात-भर का सफर था, लेकिन भोजन की ओर बिल्कुल रूचि न थी। मैंने सफर की तैयारी शुरू की। बाजाद से एक नकली दाढ़ी लाया, ट्रंक में दो रिवाल्वर रख लिये, फिर सोचने लगा, किसे अपने साथ ले चलूं? यहां से किसी को ले जाना तो नीति-विरूद्ध है। फिर क्या अपने भाई साहब को तार दूँ? हां, यही उचित है। उन्हें लिख दूँ कि मुझसे बम्बई में आकर मिलें, लेकिन नहीं, भाई साहब को क्यों फंसाऊं? कौन जाने क्या हो? बम्बई में ऐसे आदमी की क्या कमी? एक लाख रूपये का लालच दूंगा। चुटकियों में काम हो जाएगा। वहां एक से एक शातिर पड़े है, जो चाहें तो फरिश्तों का भी खून कर आयें।  बस, इन महाशय को किसी हिकमत से किसी वेश्या के कमरे में लाया जाय और वहीं उनका काम तमाम कर दिया जाय। या समुद्र के किनारे जब वह हवा खाने निकलें, तो वहीं मारकर लाश समुद्र में डाल दी जाय।
अभी चूंकि देर थी, मैंने सोचा, लाओं सन्ध्या कर लूं। ज्योंही सन्ध्या के कमरे में कदम रखा, माता जी के तिरंगे चित्र पर नजर पड़ी। मैं मूर्ति-पूजक नहीं हूं, धर्म की ओर मेरी प्रवृत्ति नहीं है, न कभी कोई व्रत रखता हूँ, लेकिन न जाने क्यो, उस चित्र को देखकर अपनी आत्मा में एक प्रकाश का अनुभव करता हूं। उन आंखों में मुझे अब भी वही वात्सल्यमय ज्योति, वही दैवी आशीर्वात मिलता है, जिसकी बाल-स्मृति अब भी मेरे हृदय को गदगद कर देती है। वह चित्र मेरे लिए चित्र नहीं, बल्कि सजीव प्रतिमा है, जिसने मेरी सृष्टि की है और अब भी मुझे जीवन प्रदान कर रही है। उस चित्र को देखकर मैं यकायक चौंक पड़ा, जैसे कोई आदमी उस वक्त चोर के कंधे पर हाथ रख उदे जब वह सेंध मार रहा हो। इस चित्र को रोज ही देखा करता था, दिन में कई बार उस पर निगाह पड़ती थी पर आज मेरे मन की जो दशा हुई, वह कभी न हुई थी। कितनी लज्जा और कितना क्रोध! मानों वह कह रही थी, मुझे तुझसे ऐसी आशा न थी। मैं उस तरफ ताक न सका। फौरन आंखें झुका ली। उन आंखों के सामने खड़े होने की हिम्मत मुझे न हुई। वह तसवीर की आंखें न थी, सजीव, तीव्र और ज्वालामय, हृदय में पैठने वाली, नोकदार भाले की तरह हृदय में चुभने वाली आंखें थी। मुझे ऐसा मालूम हुआ, गिर पडूंगा। मैं वहीं फर्श पर बैठ गया। मेरा सिर आप ही आप झुग गया। बिल्कुल अज्ञातरूप से मानो किसी दैवी प्रेरणा से मेरे संकल्प में एक में क्रान्ति-सी हो गई। उस सत्य के पुतले, उस प्रकाश की प्रतिमा ने मेरी आत्मा को सजग कर दिया। मन-में क्या–क्या भाव उत्पन्न हुए, क्या-क्या विचार उठे, इसकी मुझे खबर नहीं। मैं इतना ही जानता हूं कि मैं एक सम्मोहित दशा में घर से निकला, मोटर तैयार कराई और दस बजे राजा साहब की सेवा में जा पहुंचा। मेरे लिए उन्होंने विशेष रूप से ताकीद कर दी थी। जिस वक्त चाहूं, उनसे मिल सकूं। कोई अड़चन न पड़ी। में जाकर नम्र भाव से बोला—हुजूर, कुछ अर्ज करना चाहता हूं।
राजा साहब अपने विचार में इस समस्या को सुलझाकर इस वक्त इत्मीनान की सांस ले रहे थे। मुझे देखकर उन्हें किसी नई उलझन का संदेह हुआ। त्योरियों पर बल पड़ गये, मगर एक ही क्षण में नीति ने विजय पाई, मुस्कराकर बोले—हां हां, कहिए, कोई खास बात?
मैंने निर्भीक हेाकर कहा—मुणे क्षमा कीजिए, मुझसे यह काम न होगा।
राजा साहब का चेहरा पीला पड़ गया, मेरी ओर विस्मत से देखकर बोले—इसका मतलब?
’मैं यह काम न कर सकूंगा।‘
’क्यों?’
’मुझमें वह सामर्थ्य नहीं है।
राजा साहब ने व्यंगपूर्ण नेत्रों से देखकर कहा—शायद आत्मा जागृत हो गई, क्यो? वही बीमारी, जो कायरों और नामर्दों को हुआ करती है। अच्छी बात है, जाओ।
‘हुजूर, आप मुझसे नाराज न हों, मैं अपने में वह....।‘
राजा साहब ने सिंह की भांति आग्नेय नेत्रों से देखते हुए गरजकनर कहा—मत बको, नमक...
फिर कुछ नम्र होकर बोले—तुम्हारे भाग्य में ठोकरें खाना ही लिखा है। मैंने तुम्हें वह अवसर दिया था, जिसे कोई दूसरा आदमी दैवी वरदान समझता, मगर तुमने उसकी कद्र न की। तुम्हारी तकदीर तुमसे फिरी हुई है। हमेशा गुलामी करोगे और धक्के खाओगे। तुम जैसे आदमियों के लिए गेरूए बाने है। और कमण्डल तथा पहाड़ की गुफा। इस धर्म और अधर्म की समस्या पर विचार करने के लिए उसी वैराग्य की जरूरत है। संसार मर्दो के लिए है।
मैं पछता रहा था कि मैंने पहले ही क्यों न इन्कार कर दिया।
राजा साहब ने एक क्षण के बाद फिर कहा—अब भी मौका है, फिर सोचों।
मैंने उसी नि:शक तत्परता के साथ कहा—हुजूर, मैंने खूब सोचा लिया है।
राजा साहब हाठ दांतों से काटकर बोले—बेहतर है, जाओं और आज ही रात को मेरे राज्य की सीमा के बाहर निकल जाओ। शायद कल तुम्हें इसका अवसर न मिले। मैं न मालूम क्या समझकर तुम्हारी जान बख्शी कर रहा हू। न जाने कौन मेरे हृदय में बैठा हुआ तुम्हारी रक्षा कर रहा है। मै। इस वक्त अपने आप में नहीं हूँ, लेकिन मुझे तुम्हारी शराफत पर भरोसा है। मुझे अब भी विश्वास है कि हइस मामले केा तुम दीवार के सामने भी जबान पर न लाओंगे।
मैं चुपके से निकल आया और रातों-रात राज्य के बाहर पहुंच गयां मैंने उस चित्र के सिवा और कोई चीज अपने साथ न ली।
इधर सूर्य ने पूर्व की सीमा में पर्दापण किया, उधर मैं रियासत की सीमा से निकल करह अंग्रेजी इलाके में जा पहुंचा।

—‘विशाल भारत’, दिसम्बर, १९२०

पेज 1
पेज 2

 

 

 

top

National Record 2012

Most comprehensive state website
Bihar-in-limca-book-of-records

Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)

See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217