Home Page

States of India

Hindi Literature

Religion in India

Articles

Art and Culture

 

मंदिर और मस्जिद mandir aur masjid Premchand's Hindi story Temple and mosque

मंदिर और मस्जिद mandir aur masjid Premchand's Hindi story Temple and mosque

पेज 2

मंदिर और मस्जिद

 

ठाकुर—नहीं हजूर, अपनी जान के खौफ से।

5

चौधरी साहब ने यह खबर सुनी, तो सन्नाटे में आ गए। अब क्या हो? अगर मुकदमे की पैरवी न की गई तो ठाकुर का बचना मुश्किल है। पैरवी करते है, तो इसलामी दुनिया में तहलका पड़ जाता है। चारों तरफ से फतवे निकलने लगेंगे। उधर मुसलमानों ने ठान ली कि इसे फांसी दिलाकर ही छोड़ेंगे। आपस में चंदा किया गया। मुल्लाओं ने मसजिद में चंदे की अपील की, द्वार-द्वार झोली बांधकर घूमे। इस पर कौमी मुकदमे का रंग चढ़ाया गया। मुसलमान वकीलों को नाम लूटने का मौका मिला। आसपास के जिलों में लोग जिहाद में शरीक होने के लिए आने लगे।
चौधरी साहब ने भी पैरवी करने का निश्चय किया, चाहे कितनी ही आफते क्यों न सिर पर आ पड़े। ठाकुर उन्हें इंसाफ की निगाह में बेकसूर मालूम होता था और बेकसूर की रक्षा करने में उन्हें किसी का खौफ न था, घर से निकल खड़े हुए और शहर में जाकर डेरा जमा लिया।
छ: महीने तक चौधरी साहब ने जान लड़ाकर मुकदमे की पैरवी की। पानी की तरह रुपये बहाये, आंधी की तरह दौड़े। वह सब किया जो जिन्दगी में कभी न किया था, और न पीछे कभी किया। अहलकारों की खुशामदें कीं, वकीलों के नाज उठाये, हकिमों को नजरें दीं और ठाकुर को छुड़ा लिया। सारे इलाके में धूम मच गई। जिसने सुना, दंग रह गया। इसे कहते हैं शराफत! अपने नौकर को फांसी से उतार लिया।
लेकिन साम्प्रदायिक द्वेष ने इस सत्कार्य को और ही आंखों से देखा—मुसलमान झल्लाये, हिन्दुओं ने बगलें बजाईं। मुसलामन समझे इनकी रही-सही मुसलमानी भी गायब हो गई। हिन्दुओ ने खयाल किया, अब इनकी शुद्धि कर लेनी चाहिए, इसका मौका आ गया। मुल्लाओं ने जारे-जोर से तबलीग की हांक लगानी शुरू की, हिन्दुओ ने भी संगठन का झंडा उठाया। मुसलमानों की मुलसमानी जाग उठी और हिन्दुओ का हिन्दुत्व। ठाकुर के कदम भी इस रेले में उखड़ गये। मनचले थे ही, हिन्दुओं के मुखिया बन बैठे। जिन्दगी मे कभी एक लोटा जल तक शिव को न चढ़ाया था, अब देवी-देवताओं के नाम पर लठ चलाने के लिए उद्यत हो गए। शुद्धि करने को कोई मुसलमान न मिला, तो दो-एक चमारो ही की शुद्धि करा डाली। चौधरी साहब के दूसरे नौकरों पर भी असर पड़ा; जो मुसलमान कभी मसजिद के सामने खड़े न होते थे, वे पांचों वक्त की नमाज अदा करने लगे, जो हिन्दू कभी मन्दिररों में झांकते न थे, वे दोनों वक्त सन्ध्या करने लगे।
बस्ती में हिन्दुओं की संख्या अधिक थी। उस पर ठाकुर भजनसिंह बने उनके मुखिया, जिनकी लाठी का लोह सब मानते थे। पहले मुसमान, संख्या में कम होने पर भी, उन पर गालिब रहते थे, क्योंकि वे संगठित न थे, लेकिन अब वे संगठित हो गये थे, मुट्ठी-भर मुसलमान उनके सामने क्या ठहरते।
एक साल और गुजर गया। फिर जन्माष्टमी का उत्सव आया। हिन्दुओ को अभी तक अपनी हार भूली न थी। गुप्त रूप से बराबर तैयारियां होती रहती थी। आज प्रात:काल ही से भक्त लोग मन्दिरर में जमा होने लगे। सबके हाथों में लाठियां थीं, कितने ही आदमियों ने कमर में छुरे छिपा लिए थे। छेड़कर लड़ने की राय पक्की हो गई थी। पहले कभी इस उत्सव में जुलूस न निकला था। आज धूम-धाम से जुलूस भी निकलने की ठहरी।
दीपक जल चुके थे। मसजिदों में शाम की नमाज होने लगी थी। जुलूस निकला। हाथी, घोड़े, झंडे-झंडियां, बाजे-गाजे, सब साथ थे। आगे-आगे भजनसिंह अपने अखाड़े के पट्ठों को लिए अकड़ते चले जाते थे।  
जामा मसजिद सामने दिखाई दी। पट्ठों ने लाठियां संभालीं, सब लोग सतर्क हो गये। जो लोग इधर-उधर बिखरे हुए थे, आकर सिमट गये। आपस में कुछ काना-फूसी हुई। बाजे और जोर से बजने लगगे। जयजयकार की ध्वनि और जोर से उठने लगी। जुलूस मसजिद के सामने आ पहुंचा।
सहसा एक मुसलमान ने मसजिद से निकलकर कहा—नमाज का वक्त है, बाजे बन्द कर दो।
भजनसिंह—बाजे न बन्द होंगे।
मुसलमान—बन्द करने पड़ेंगे।
भजनसिंह—तुम अपनी नमाज क्यों नहीं बन्द कर देते?
मुसलमान—चौधरी साहब के बल पर मत फूलना। अबकी होश ठंडे हो जायेंगे।
भजनसिंह—चौधरी साहब के बल पर तुम फूलो, यहां अपने ही बल का भरोसा हैं यह धर्म का मामला है।
इतने में कुछ और मुसलमान निकल आए, और बाज बन्द करने का आग्रह करने लगे, इधर और जोर से बाजे बजने लगे। बात बढ़ गई। एक मौलवी ने भजनसिंह को काफिर कह दिया। ठाकुर ने उसकी दाढ़ी पकड़ ली। फिर क्या था। सूरमा लोग निकल पड़े, मार-पीट शुरू हो गई। ठाकुर हल्ला मारकर मसजिद में घुस गये, और मसजिद के अन्दर मार-पीट होने लगी। यह नहीं कहा जा सकता कि मैदान किसके हाथ रहा। हिन्दू कहते थे, हमने खदेड़-खदेड़कर मारा, मुसलामन कहते थे, हमने वह मार मारी कि फिर सामने नहीं आएंगे। पर इन विवादों की बीच में एक बात मानते थे, और वह थी ठाकुर भजनसिंह की अलौकिक वीरता। मुसलमानों का कहना था कि ठाकुर न होता तो हम किसी को जिन्दा न छोड़ते। हिन्दू कहते थे कि ठाकुर सचमुच महावीर का अवतार है। इसकी लाठियों ने उन सबों के छक्के छुड़ा दिए।
उत्सव समाप्त हो चुका था। चौधरी साहब दीवानखाने में बैठे हुए हुक्का पी रहे थे। उनका मुख लाल था, त्यौंरिया चढ़ी हुईं थी, और आंखों से चिनगारियां-सी निकल रहीं थीं। ‘खुदा का घर’ नापाक किया गया। यह ख्याल रह-रहकर उनके कलेजे को भसोसता था।
खुदा का घर नापाक किया गया! जालिमों को लड़ने के लिए क्या नीचे मैदान में जगह न थी! खुदा के पाक घर में यह खून-खच्चर! मुसजिद की यह बेहुरमती! मन्दिरर भी खुदा का घर है और मसजिद भी। मुसलमान किसी मन्दिरर को नापाक करने के लिए सजा के लायक है, क्या हिन्दू मसजिद को नापाक करने के लिए उसी सजा के लायक नहीं?
और यह हरकत ठाकुर ने की! इसी कसूर के लिए तो उसने मेरे दामाद को कत्ल किया। मुझे मालूम होता है कि उसके हाथों ऐसा फेल होगा, तो उसे फांसी पर चढ़ने देता। क्यों उसके लिए इतना हैरान, इतना बदनाम, इतना जेरबार होता। ठाकुर मेरा वफादार नौकर है। उसने बारहा मेरी जान बचाई है। मेरे पसीने की जगह खून बहाने को तैयार रहता है। लेकिन आज उसने खुदा के घर को नापाक किया है, और उसे इसकी सजा मिलनी चाहिए। इसकी सजा क्या है? जहन्नुम! जहन्नुम की आग के सिवा इसकी और कोई सजा नहीं है। जिसने खुदा के घर को नापाक किया, उसने खुदा की तौहीन की। खुदा की तौहीन!
सहसा ठाकुर भजनसिंह आकर खड़े हो गए।
चौधरी साहब ने ठाकुर को क्रोधोन्मत्त आंखों से देखकर कहा—तुम मसजिद में घुसे थे?
भजनसिंह—सरकार, मौलवी लोग हम लोगों पर टूट पड़े।
चौधरी—मेरी बात का जवाब दो जी—तुम मसजिद में घुसे थे?
भजनसिंह—जब उन लोगों ने मसजिदके भीतर से हमारे ऊपर पत्थर फेंकना शुरू किया तब हम लोग उन्हें पकड़ने के लिए मसजिद में घुस गए।
चौधरी—जानते हो मसजिद खुदा का घर है?
भजनसिंह—जानता हूं हुजूर, क्या इतना भी नहीं जानता।
चौधरी—मसजिद खुदा का वैसा ही पाक घर है, जैसे मंदिर।
भजनसिंह ने इसका कुछ जवाब न दिया।
चौधरी—अगर कोई मुसलमान मन्दिरर को नापाक करने के लिए गर्दनजदनी है तो हिन्दू भी मसजिद को नापाक करने के लिए गर्दनजदनी है।
भजनसिंह इसका भी कुछ जवाब न दे सका। उसने चौधरी साहब को कभी इतने गुस्से में न देखा था।
चौधरी—तुमने मेरे दामाद को कत्ल किया, और मैंने तुम्हारी पैरवी की। जानते हो क्यों? इसलिए कि मै अपने दामाद को उस सजा के लायक समझता था जो तुमने उसे दी। अगर तुमने मेरे बेटे को, या मुझी को उस कसूर के लिए मार डाला होता तो मैं तुमसे खून का बदला न मांगता। वही कसूर आज तुमने किया है। अगर किसी मुसलमान ने मसजिद में तुम्हें जहन्नुम में पहुंचा दिया होता तो मुझे सच्ची खुशी होती। लेकिन तुम बेहयाओं की तरह वहां से बचकर निकल आये। क्या तुम समझते हो खुदा तुम्हें इस फेल की सजा न देगा? खुदा का हुक्म है कि जो उसकी तौहीन करे, उसकी गर्दन मार देनी चाहिए। यह हर एक मुसलमान का फर्ज है। चोर अगर सजा न पावे तो क्या वह चोर नहीं है? तुम मानते हो या नहीं कि तुमने खुदा की तौहीन की?
ठाकुर इस अपराध से इनकार न कर सके। चौधरी साहब के सत्संग ने हठधर्मी को दूर कर दिया था। बोले—हां साहब, यह कसूर तो हो गया।
चौधरी—इसकी जो सजा तुम दे चुके हो, वह सजा खुद लेने के लिए तैयार हो?
ठाकुर—मैंने जान-बूझकर तो दूल्हा मियां को नहीं मारा था।
चौधरी—तुमने न मारा होता, तो मैं अपने हाथों से मारता, समझ गए! अब मैं तुमसे खुदा की तौहीन का बदला लूंगा। बोलो, मेरे हाथों चाहते हो या अदालत के हाथों। अदालत से कुछ दिनों के लिए सजा पा जाओंगे। मैं कत्ल करूंगा। तुम मेरे दोस्त हो, मुझे तुमसे मुतलक कीना नहीं है। मेरे दिल को कितना रंज है, यह खुदा के सिवा और कोई नहीं जान सकता। लेकिन मैं तुम्हें कत्ल करूंगा। मेरे दीन का यह हुक्म है।
यह कहते हुए चौधरी साहब तलवार लेकर ठाकुर के सामने खड़े हो गये। विचित्र दृश्य था। एक बूढा आदमी, सिर के बाल पके, कमर झुकी, तलवार लिए एक देव के सामने खड़ा था। ठाकुर लाठी के एक ही वार से उनका काम तमाम कर सकता था। लेकिन उसने सिर झुका दिया। चौधरी के प्रति उसक रोम-रोम में श्रद्धा थी। चौधरी साहब अपने दीन के इतने पक्के हैं, इसकी उसने कभी कल्पना तक न की थी। उसे शायद धोखा हो गया था कि यह दिल से हिन्दू हैं। जिस स्वामी ने उसे फांसी से उतार लिया, उसके प्रति हिंसा या प्रतिकार का भाव उसके मन में क्यों कर आता? वह दिलेर था, और दिलेरों की भांति निष्कपट था। उसे इस समय क्रोध न था, पश्चात्ताप था। दीन कहता था—मारो। सज्जनता कहती थी—छोड़ो। दीन और धर्म में संघर्ष हो रहा था।
ठाकुर ने चौधरी का असमंजस देखा। गदगद कंठ से बोला—मालिक, आपकी दया मुझ पर हाथ न उठाने देगी। अपने पाले हुए सेवक को आप मार नहीं सकते। लेकिन यह सिर आपका है, आपने इसे बचाया था, आप इसे ले सकते हैं, यह मेरे पास आपकी अमानत थी। वह अमानत आपको मिल जाएगी। सबेरे मेरे घर किसी को भेजकर मंगवा लीजिएगा। यहां दूंगा, तो उपद्रव खड़ा हो जाएगा। घर पर कौन जायेगा, किसने मारा। जो भूल-चूक हुई हो, क्षमा कीजिएगा।
यह कहता हुआ ठाकुर वहां से चला गया।


—‘माधुरी’, अप्रैल, १९२५

पेज 1
पेज 2

 

top

National Record 2012

Most comprehensive state website
Bihar-in-limca-book-of-records

Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)

See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217