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पत्नी से पति
उसने जाकर समीप से पैसे को देखा, जो मेज पर रखा दिया गया था। उसका ह्रदय धक् से हो गया । यह वही घिसा हुआ पैसा था।
उस अंधे की दशा, उसके त्याग का स्मरण करके गोदावरी अनुरक्त
हो उठी । कँपते हुए स्वर में बोली – मुझे आप यह पैसा दे दीजिए, मैं पॉँच रूपये दूंगी ।
सभापति ने कहा – एक बहन इस पैसे के दाम पांच रूपये दे रही है।
दूसरी आवाज आयी –दस रुपये।
तीसरी आवाज आयी- बीस रुपये ।
गोदावरी ने इस अन्तिम व्यक्ति की ओर देखा । उसके मुख पर आत्माभिमान झलक रहा था, मानों कह रहा हो कि यहॉँ कौन है, जो मेरी बराबरी कर सके ! गोदावरी के मन मे स्पर्द्धा का भाव जाग उठा । चाहे कुछ हो जाय, इसके हाथ में यह पैसा न जाय । समझता है, इसने बीस रुपये क्या कह दिये, सारे संसार का मोल ले लिया ।
गोदावरी ने कहा – चालीस रूपये ।
उस पुरूष ने तुरंत कहा—पचास रूपये ।
हजारों आँखें गोदावरी की ओर उठ गयीं मानो कह रही हों, अब की आप ही हमारी लाज रखिए ।
गोदावरी ने उस आदमी की ओर देखकर धमकी से मिले हुए स्वर में कहा – सौ रुपये।
धनी आदमी ने भी तुरंत कहा- एकं सौ बीस रूपये ।
लोगों के चेहरे पर हवाइयँ उड़ने लगीं। समझ गयें, इसी के हाथ विजय रही। निराश आंखों से गोदावरी की ओर ताकने लगे; मगर ज्यों ही गोदावरी के मुँह से निकला डेढ़ सौ, कि चारों तरफ तालियॉ पड़ने लगीं, मानो किसी दंगल के दर्शक अपने पहलवान कीविजय पर मतवाले हो गये हों।
उस आदमी ने फिर कहा – पौने दो सौ।
गोदावरी बोली – दो सौ।
फिर चारों तरफ से तालियँ पड़ी। प्रतिद्वंद्वी ने अब मैदान से हट जाने ही मेंअपनी कुशल समझी ।
गोदावरी विजय के गर्व पर नम्रता का पर्दा डाले हुए खड़ी थी और हजारो शुभ कामनाऍं उस पर फुलों की तरह बरस रही थीं।
4
जब लोगो को मालूम हुआ कि यह देवी मिस्टर सेठ की बीबी है।, तो उन्हें ईर्ष्यामय आनंद के साथ उस पर दया भी आयी ।
मिस्टर सेठ अभी फ्लावर शों मे ही थें कि एक पुलिस के अफसर ने उन्हें यह घातक संवाद सुनाया । मिस्टर सेठ सकते में पड़ गये, मानो सारी देह शुन्य पड़ गयी हो । फिर दानों मुटियँ बांध लीं । दांत पीसे, ओठ चबाये और उसी वक्त घर चले । उनकी मोटर –साईकिल कभी इतनी तेज न चली थी।
घर में कदम रखते ही उन्होंने चिनगारियों –भरी ऑंखों से देखते हुए कहा- क्या तुम मेरे मुंह में कालिख पुतवाना चाहती हो?
गोदावरी ने शांत भाव से कहा-कुछ मुह से भी तो कहो या गालियॉँ ही दिये जाओगे? तुम्हारे मुहँ में कालिख लगेगी, तो क्या मेरे मुहँ में न लगेगी? तुम्हारी जड़ खुदेगी, तो मेरे लिए दूसरा कौन-सा सहारा है।
मिस्टर सेठ—सारे शहर में तूफान मचा हुआ है। तुमने मेरे लिए रुपये दिये क्यों?
गोदावरी ने उसी शांत भाव से कहा—इसलिए कि मैं उसे अपना ही रुपया समझती हूँ।
मिस्टर सेठ दॉँत किटकिटा कर बोले—हरगिज नहीं, तुम्हें मेरा रुपया खर्च करने का कोई हक नहीं है।
गोदावरी-बिलकुल गलत, तुम्हारे खर्च करने का तुम्हें जितना अख्तियार है, उतना ही मुझको भी है। हॉँ, जब तलाक का कानून पास करा लोगे और तलाक दे दोगे, तब न रहेगा।
मिस्टर सेठ ने अपना हैट इतने जोर से मेज पर फेंका कि वह लुढ़कता हुआ जमीन पर गिर पड़ा और बोले—मुझे तुम्हारी अक्ल पर अफसोस आता है। जानती हो तुम्हारी इस उद्दंडता का क्या नतीजा होगा? मुझसे जवाब तलब हो जाएगा। बतलाओ, क्या जवाब दूँगा? जब यह जाहिर है कि कांग्रेस सरकार से दुश्मनी कर रही है तो कांग्रेस की मदद करना सरकार के साथ दुश्मनी करनी है।
‘तुमने तो नहीं की कांग्रेस की मदद!’
‘तुमने तो की!’
इसकी सजा मुझे मिलेगी या तुम्हें? अगर मैं चोरी करूँ, तो क्या तुम जेल जाओगे?’
‘चोरी की बात और है, और यह बात और है।’
‘तो क्या कांग्रेस की मदद करना चोरी या डाके से भी बुरा है?’
‘हॉँ, सरकारी नौकर के लिए चोरी या डाके से भी बुरा है।’
‘मैंने यह नहीं समझा था।’
अगर तुमने यह नहीं समझा था, तो तुम्हारी ही बुद्धि का भ्रम था। रोज अखबारों में देखती हो, फिर भी मुझसे पूछती हो। एक कॉँग्रेस का आदमी प्लेटफार्म पर बोलने खड़ा होता है, तो बीसियों सादे कपड़े वाले पुलिस अफसर उसकी रिपोर्ट लेने बैठते हैं। काँग्रेस के सरगनाओं के पीछे कई-कई मुखबिर लगा दिए जाते हैं, जिनका काम यही है कि उन पर कड़ी निगाह रखें। चोरों के साथ तो इतनी सख्ती कभी नहीं की जाती। इसीलिए हजारों चोरियॉँ और डाके और खून रोज होते रहते हैं, किसी का कुछ पता नहीं चलता, न पुलिस इसकी परवाह करती है। मगर पुलिस को जिस मामले में राजनीति की गंध भी आ जाती है। फिर देखो पुलिस की मुस्तैदी। इन्सपेक्टर जरनल से लेकर कांस्टेबिल तक ऐड़ियों तक का जोर लगाते हैं। सरकार को चोरों से भय नहीं। चोर सरकार पर चोट नहीं करता। कॉँग्रेस सरकार को अख्तियार पर हमला करती है, इसलिए सरकार भी अपनी रक्षा के लिए अपने अख्तियार से काम लेती है। यह तो प्रकृति का नियम है।
मिस्टर सेठ आज दफ्तर चले, तो उनके कदम पीछे रह जाते थे! न जाने आज वहॉँ क्या हाल हो। रोज की तरह दफ्तर में पहुँच कर उन्होंने चपरासियों को डॉंटा नहीं, क्लर्कों पर रोब नहीं जमाया, चुपके से जाकर कुर्सी पर बैठ गये। ऐसा मालूम होता था, कोई तलवार सिर पर लटक रही है। साहब की मोटर की आवाज सुनते ही उनके प्राण सूख गये। रोज वह अपने कमरे में बैठ रहते थे। जब साहब आकर बैठ जाते थे, तब आध घण्टे के बाद मिसलें लेकर पहुँचते थे। आज वह बरामदे में खड़े थे, साहब उतरे तो झुककर उन्होंने सलाम किया। मगर साहब ने मुँह फेर लिया।
लेकिन वह हिम्मत नहीं हारे, आगे बढ़कर पर्दा हटा दिया, साहब कमरे में गये, तो सेठ साहब ने पंखा खोल दिया, मगर जान सूखी जाती थी कि देखें, कब सिर पर तलवार गिरती है। साहब ज्यों ही कुर्सी पर बैठे, सेठ ने लपककर, सिगार-केस और दियासिलाई मेज पर रख दी।
एकाएक ऐसा मालूम हुआ, मानो आसमान फट गया हो। साहब गरज रहै थे, तुम दगाबाज आदमी हो!
सेठ ने इस तरफ साहब की तरफ देखा, जैसे उनका मतलब नहीं समझे।
साहब ने फिर गरज कर कहा-तुम दगाबाज आदमी हो।
मिस्टर सेठ का खून गर्म हो उठा, बोले-मेरा तो ख्याल है कि मुझसे बड़ा राजभक्त इस देश में न होगा।
साहब-तुम नमकहारम आदमी है।
मिस्टर सेठ के चेहरे पर सुर्खी आयी-आप व्यर्थ ही अपनी जबान खराब कर रहै हैं।
साहब-तुम शैतान आदमी है।
मिस्टर सेठ की ऑंखों में सुर्खी आयी-आप मेरी बेइज्जती कर रहै
हैं। ऐसी बातें सुनने की मुझे आदत नहीं है।
साहब-चुप रहो, यू ब्लडी। तुमको सरकार पॉँच सौ रूपये इसलिए नहीं देता कि तुम अपने वाइफ के हाथ से कॉँग्रेस का चंदा दिलवाये। तुमको इसलिए सरकार रुपया नहीं देता।
मिस्टर सेठ को अपनी सफाई देने का अवसर मिला। बोले-मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मेरी वाइफ ने सरासर मेरी मर्जी के खिलाफ रुपये दिये हैं। मैं तो उस वक्त फ्लावर शो देखने गया था, जहॉँ मिस फ्रॉँक का गुलदस्ता पॉँच रुपये में लिया। वहॉँ से लौटा, तो मुझे यह खबर मिली।
साहब-ओ! तुम हमको बेवकूफ बनाता है?
यह बात अग्नि-शिला की भॉँति ज्यों ही साहब के मस्तिष्क में घुसी, उनके मिजाज का पारा उबाल के दर्जे तक पहुँच गया। किसी हिंदुस्तानी की इतनी मजाल कि उन्हें बेवकूफ बनाये! वह जो हिंदुस्तान के बादशाह हैं, जिनके पास बड़े-बड़े तालुकेदार सलाम करने आते हैं, जिनके नौकरों को बड़े-बडे रईस नजराना देते हैं, उन्हीं को कोई बेवकूफ बनाये! उसके लिये वह असह्य था! रूल उठा कर दौड़ा।
लेकिन मिस्टर सेठ भी मजबूत आदमी थे। यों वह हर तरह की खुशामद किया करते थे! लेकिन यह अपमान स्वीकार न कर सके। उन्होंने रूल का तो हाथ पर लिया और एक डग आगे आगे बढ़कर ऐसा घूँसा साहब के मुँह पर रसीद किया कि साहब की ऑंखों के सामने अँधेरा छा गया। वह इस मुष्टिप्रहार के लिए तैयार न थे। उन्हें कई बार इसका अनुभव हो चुका था कि नेटिव बहुत शांत, दब्बू और गमखोर होता है। विशेषकर साहबों के सामने तो उनकी जबान तक नहीं खुलती। कुर्सी पर बैठ कर नाक का खून पोंछने लगा। फिर मिस्टर सेठ के उलझने की उसकी हिम्मत नहीं पड़ीं; मगर दिल में सोच रहा था, इसे कैसे नीचा दिखाऊँ।
मिस्टर सेठ भी अपने कमरे में आ कर इस परिस्थिति पर विचार करने लगे। उन्हें बिलकुल खेद न था; बल्कि वह अपने साहस पर प्रसन्न थे। इसकी बदमाशी तो देखो कि मुझ पर रूल चला दिया! जितना दबता था, उतना ही दबाये जाता था। मेम यारों को लिये घूमा करती है, उससे बोलने की हिम्मत नहीं पड़ती। मुझसे शेर बन गया। अब दौड़ेगा कमिश्नर के पास। मुझे बरखास्त कराये बगैर न छोड़ेगा। यह सब कुछ गोदावरी के कारण हो रहा है। बेइज्जती तो हो ही गयी अब रोटियों को भी मुहताज होना पड़ा। मुझ से तो कोई पूछेगा भी नहीं, बरखास्तगी का परवाना आ जायेगा। अपील कहॉँ होगी? सेक्रेटरी हैं हिन्दुस्तानी, मगर अँगरेजों से भी ज्यादा अँगरेज। होम मेम्बर भी हिन्दुस्तानी हैं, मगर अँगरेजों के गुलाम। गोदावरी के चंदे का हाल सुनते ही उन्हें जूड़ी चढ़आयेगी। न्याय की किसी से आशा नहीं, अब यहॉँ से निकल जाने में ही कुशल है।
उन्होंने तुंरत एक इस्तीफा लिखा और साहब के पास भेज दिया। साहब ने उस पर लिख दिया, ‘बरखास्त’।
5
दोपहर को जब मिस्टर सेठ मुहँ लटकाये हुए घर पहूँचे तो गोदावरी ने पूछा-आज जल्दी कैसे आ गये?
मिस्टर सेठ दहकती हुई ऑखों से देख कर बोले-जिस बात पर लगी थीं, वह हो गयी। अब रोओ, सिर पर हाथ रखके!
गोदावरी-बात क्या हुई, कुछ कहो भी तो?
सेठ-बात क्या हुई, उसने ऑंखें दिखायीं, मैंने चाँटा जमाया और इस्तीफा दे कर चला आया।
गोदावरी-इस्तीफा देने की क्या जल्दी थी?
सेठ-और क्या सिर के बाल नुचवाता? तुम्हारा यही हाल है, तो आज नहीं, कल अलग होना ही पड़ता।
गोदावरी-खैर, जो हुआ, अच्छा ही हुआ। आज से तुम भी कॉँग्रेस में शरीक हो जाओ।
सेठ ने ओठ चबा कर कहा-लजाओगी तो नहीं, ऊपर से घाव पर नमक छिड़कती हो।
गोदावरी-लजाऊँ क्यों, मैं तो खुश हूँ कि तुम्हारी बेड़ियॉँ कट गयीं।
सेठ-आखिर कुछ सोचा है, काम कैसे चलेगा?
गोदावरी-सब सोच लिया है। मैं चल कर दिखा दूँगी। हॉँ, मैं जो कुछ कहूँ, वह तुम किये जाना। अब तक मैं तुम्हारे इशारे पर चलती थी, अब से तुम मेरे इशारे पर चलना। मैं तुमसे किसी बात की शिकायत न करती थी; तुम जो कुछ खिलाते थे खाती थी, जो कुछ पहनाते थे पहनती थी। महल में रखते, महल में रहती। झोपड़ी मे रखते, झोपड़ी में रहती। उसी तरह तुम भी रहना। जो काम करने को कहूँ वह करना। फिर देखूँ कैसे काम नहीं चलता। बड़प्पन सूट-बूट और ठाठ-बाट में नहीं है। जिसकी आत्मा पवित्र हो, वही ऊँचा है। आज तक तुम मेरे पति थे आज से मैं तुम्हारा पति हूँ।
सेठ जी उसकी और स्नेह की ऑंखों से देख कर हँस पड़े।
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217