मुंशी प्रेमचंद

वरदान

17 कमला के नाम विरजन के पत्र

पेज- 42

(5)

मझगाँव

'प्यारे!

तुम्हारे पत्र ने बहुत रुलाया। अब नहीं रहा जाता। मुझे बुला लो। एक बार देखकर चली आँऊगी। सच बताओं, यदि में तुम्हारे यहाँ आ जाऊं, तो हँसी तो न उड़ाओगे?  न जाने मन मे क्या समझोग ?  पर कैस आऊं? तुम लालाजी को लिखो खूब!  कहेंगे यह नयी धुन समायी है।
कल चारपाई पर पड़ी थी। भोर हो गया था, शीतल मन्द पवन चल रहा था कि स्त्रीयाँ गाने का शब्द सुनायी पड़ा। स्त्रीयाँ अनाज का खेत  काटने जा रही थीं। झाँककर देखा तो दस-दस बारह-बारह स्त्रीयों का एक-एक गोल था। सबके हाथों में हंसिया, कन्धों पर गाठियाँ बाँधने की रस्स् ओर सिर पर भुने हुए मटर की छबड़ी थी। ये इस समय जाती हैं, कहीं बारह बजे लौंटेगी। आपस में गाती, चुहलें करती चली जाती थीं।
दोपहर तक बड़ी कुशलता रही। अचानक आकश मेघाच्छन्न हो गया। ऑंधी आ गयी और ओले गिरने लगे। मैंने इतने बड़े ओले गिरते न देखे थे। आलू से बड़े और ऐसी तेजी से गिरे जैसे बन्दूक से गोली। क्षण-भर में पृथ्वी पर एक फुट ऊंचा बिछावन बिछ गया। चारों तरफ से कृषक भागने लगे। गायें, बकिरयाँ, भेड़ें सब चिल्लाती हुई पेड़ों की छाया ढूँढ़ती, फिरती थीं। मैं डरी कि न-जाने तुलसा पर क्या बीती। आंखे फैलाकर देखा तो खुले मैदान में तुलसा, राधा और मोहिनी गाय दीख पड़ीं। तीनों घमासान ओले की मार में पड़े थे! तुलसा के सिर पर एक छोटी-सी टोकरी थी और राधा के सिर पर एक बड़ा-सा गट्ठा। मेरे नेत्रों में आंसू भर आये कि न जाने इन बेचारों की क्या गति होगी। अकस्मात एक प्रखर झोंके ने राधा के सिर से गट्ठा गिरा दिया। गट्ठा का गिरना था कि चट तुलसा ने अपनी टोकरी उसके सिर पर औंधा दी। न-जाने उस पुष्प ऐसे सिर पर कितने ओले पड़े। उसके हाथ कभी पीठ पर जाते, कभी सिर सुहलाते। अभी एक सेकेण्ड से अधिक यह दशा न रही होगी कि राधा ने बिजली की भाँति जपककर गट्ठा उठा लिया और टोकरी तुलसा को दे दी। कैसा घना प्रेम है!
अनर्थकारी दुर्देव ने सारा खेल बिगाड़ दिया ! प्रात:काल स्त्रीयाँ गाती हुई जा रही थीं। सन्ध्या को घर-घर शोक छाया हुआ था। कितना के सिर लहू-लुहान हो गये, कितने हल्दी पी रहे हैं। खेती सत्यानाश हो गयी। अनाज बर्फ के तले दब गया। ज्वर का प्रकोप हैं सारा गाँव अस्पताल बना हुआ है। काशी भर का भविष्य प्रवचन प्रमाणित हुआ। होली की ज्वाला का भेद प्रकट हो गया। खेती की यह दशा और लगान उगाहा जा रहा है। बड़ी विपत्ति का सामना है। मार-पीट, गाली, अपशब्द सभी साधनों से काम लिया जा रहा है। दोंनों पर यह दैवी कोप!

तुम्हारी
विरजन

 

 

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