अयोध्याकाण्ड
अयोध्याकाण्ड पेज 5
एकहिं बार आस सब पूजी। अब कछु कहब जीभ करि दूजी।।
फोरै जोगु कपारु अभागा। भलेउ कहत दुख रउरेहि लागा।।
कहहिं झूठि फुरि बात बनाई। ते प्रिय तुम्हहि करुइ मैं माई।।
हमहुँ कहबि अब ठकुरसोहाती। नाहिं त मौन रहब दिनु राती।।
करि कुरूप बिधि परबस कीन्हा। बवा सो लुनिअ लहिअ जो दीन्हा।।
कोउ नृप होउ हमहि का हानी। चेरि छाड़ि अब होब कि रानी।।
जारै जोगु सुभाउ हमारा। अनभल देखि न जाइ तुम्हारा।।
तातें कछुक बात अनुसारी। छमिअ देबि बड़ि चूक हमारी।।
दो0-गूढ़ कपट प्रिय बचन सुनि तीय अधरबुधि रानि।
सुरमाया बस बैरिनिहि सुह्द जानि पतिआनि।।16।।
सादर पुनि पुनि पूँछति ओही। सबरी गान मृगी जनु मोही।।
तसि मति फिरी अहइ जसि भाबी। रहसी चेरि घात जनु फाबी।।
तुम्ह पूँछहु मैं कहत डेराऊँ। धरेउ मोर घरफोरी नाऊँ।।
सजि प्रतीति बहुबिधि गढ़ि छोली। अवध साढ़साती तब बोली।।
प्रिय सिय रामु कहा तुम्ह रानी। रामहि तुम्ह प्रिय सो फुरि बानी।।
रहा प्रथम अब ते दिन बीते। समउ फिरें रिपु होहिं पिंरीते।।
भानु कमल कुल पोषनिहारा। बिनु जल जारि करइ सोइ छारा।।
जरि तुम्हारि चह सवति उखारी। रूँधहु करि उपाउ बर बारी।।
दो0-तुम्हहि न सोचु सोहाग बल निज बस जानहु राउ।
मन मलीन मुह मीठ नृप राउर सरल सुभाउ।।17।।
चतुर गँभीर राम महतारी। बीचु पाइ निज बात सँवारी।।
पठए भरतु भूप ननिअउरें। राम मातु मत जानव रउरें।।
सेवहिं सकल सवति मोहि नीकें। गरबित भरत मातु बल पी कें।।
सालु तुम्हार कौसिलहि माई। कपट चतुर नहिं होइ जनाई।।
राजहि तुम्ह पर प्रेमु बिसेषी। सवति सुभाउ सकइ नहिं देखी।।
रची प्रंपचु भूपहि अपनाई। राम तिलक हित लगन धराई।।
यह कुल उचित राम कहुँ टीका। सबहि सोहाइ मोहि सुठि नीका।।
आगिलि बात समुझि डरु मोही। देउ दैउ फिरि सो फलु ओही।।
दो0-रचि पचि कोटिक कुटिलपन कीन्हेसि कपट प्रबोधु।।
कहिसि कथा सत सवति कै जेहि बिधि बाढ़ बिरोधु।।18।।
भावी बस प्रतीति उर आई। पूँछ रानि पुनि सपथ देवाई।।
का पूछहुँ तुम्ह अबहुँ न जाना। निज हित अनहित पसु पहिचाना।।
भयउ पाखु दिन सजत समाजू। तुम्ह पाई सुधि मोहि सन आजू।।
खाइअ पहिरिअ राज तुम्हारें। सत्य कहें नहिं दोषु हमारें।।
जौं असत्य कछु कहब बनाई। तौ बिधि देइहि हमहि सजाई।।
रामहि तिलक कालि जौं भयऊ।? तुम्ह कहुँ बिपति बीजु बिधि बयऊ।।
रेख खँचाइ कहउँ बलु भाषी। भामिनि भइहु दूध कइ माखी।।
जौं सुत सहित करहु सेवकाई। तौ घर रहहु न आन उपाई।।
दो0-कद्रूँ बिनतहि दीन्ह दुखु तुम्हहि कौसिलाँ देब।
भरतु बंदिगृह सेइहहिं लखनु राम के नेब।।19।।
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See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217