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वह अभागा लू सुन

वह अभागा लू सुन

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मैनें सोचा, "मैं एक भिखारी द्वारा अपना इम्तहान क्यों होने दूं।" इसलिए मैंने मुंह फेर लिया और उसकी उपेक्षा कर दी। कुछ देर प्रतीक्षा करके उसने बड़े प्यार से कहा, "क्या तुम इसे नही लिख सकते हो? मैं तुम्हें बताऊंगा कि कैसे लिख सकते हो? तुम इस याद रखना। जब तुम्हारी अपनी दुकान होगी तो तुम्हें उसकी जरूरत पड़ेगी।"

   मुझे बहुत दिनों तक अपनी दुकान होने की आशा नहीं दिखाई देती थी। इसके अलावा हमारा मालिक ह्मू-सियांग फलियों को कभी रोकड़ बही में दर्ज नहीं करता था। उसकी बात से थोड़ा प्रसन्न होकर, फिर भी कुछ खीजकर, मैने जवाब दिया, "कौन चाहता है कि आप बढ़ावें? क्या ‘ह्मू’ अक्षर भारी नहीं है?"

 कुंग खुश  हो गया। उसने अपने हाथ के दो लम्बे नाखूनों से काउण्टर का  टिकटिका कर कहा, "तुम ठीक कहते हो। ‘ह्म’ लिखने के सिर्फ चार अलग-अलग तरीके हैं। क्या तुम उन्हें जानते हो?"

मेरा धीरज समाप्त हो चला था। मैने त्योरी चढ़ाई और वहां से चल पड़ने को हुआ। कुंग ने अपनी उंगली शराब में ड़बोई, जिससे काउण्टर पर उन अक्षरो को लिख सके। किन्तु जब उसने मेरी उदासीनता देखी तो एक आह भरी। उसकी आंखों में व्यथा झलक रही थी।

 कभी-कभी पास-पड़ोस के बच्चे हंसी सुनकर उस मनोरंजन में भाग लेने आ जाते और कुंग को घेर लेते। तब वह उनमें हरएक को मसाले भरी एक-एक फली देता। उसे खाकर बच्चे भी उसका पीछा न छोड़ते।उनकी निगाहें खाने-पीने की चीजों पर लगी रहतीं। कुंग रकाबियों को अपने हाथ से ढकेलता और आगे झेककर कहता, "जाओ, अब कुछ नहीं है।"

  इस पर बच्चे शोर मचाते और हंसी की फुहारें छोड़ते चले जाते।इतना मजेदार था कुंग।

पतझड़ के उत्सव से कुछ दिन पहले एक दिन शराबघर का मालिक अपना हिसाब पूरा करने पर जुटा था। अचानक निगाह उठाकर बोला, "कुंग बहुत दिनों से नहीं आया, उसकी ओर उन्नीस कैश निले रहे हैं। मलिक की इस बात से हमें पता लगा कि कुंग को कितने दिनों से नहीं देखा है।

  "वह आयेगा कैसे," एक ग्राहक ने कहा,"उस पर इतनी मार पड़ी है कि उसकी टांगे टूट गई हैं।"

"अच्छा!"

"वह चोरी कर रहा था। उसने इस बार बड़ी मूर्खता की कि सूबे के विद्वान मिटिंग के यहां चोरी करने गया, जैसे वह वहां पकड़ा ही नहीं जायगा।"

"फिर क्या हुआ?"

"होता क्या, उसने लिखकर अपना अपराध कबूल किया, फिर उसकी मरम्मत हुई। बेचारा सारी सारी पिटता रहा, जब तक कि उसकी टांगें टूट न गईं।"

"फिर।"

"फिर क्या, टांगें गईं!"

"सो तो ठीक है, उसके बाद क्या हुआ?"

"उसके बाद?...कौन जाने, वह चल बासा हो।"

उस उत्सव के बाद ज्यों-ज्यों जाड़ा आता गया, हवा ठंडी होती गई। मैं अपना समय अंगीठी के सहारे गुजारता। एक दिन दोपहर बीत जाने पर दुकान खाली थी और मैं आंखें बन्द किये बैठा था कि आवाज आई, "एक प्याला शराब गरम करो।"

यह सुनकर मेरा मालिक काउण्टर पर आगे झुका और बोला, "ओहो, कुंग, तुम हो? तुम्हारी तरफ हमारे उन्नीस कैश निकल रहे हैं।"

"उन्हें मै फिर चुका दुगां।" बेचैनी से देखते हुए कुंग बोला, "ये लो अभी  के पैसे, एक प्याला बढ़िया शराब दो।"

मालिक बड़बड़ाया और बोला, "कुंग, तुम फिर चोरी करने लगे!"

इस बात का जोर से खण्डन करने के बजाय कुंग ने कहा, "आपने यह भी खूब पूछा! अपना मजाक छोड़ो।"

"मजाक! अगर तुमने चोरी नहीं की तो तुम्हारी टांगें कैसे टूटी?"

"मैं गिर गया था।" कुंग ने धीमी आवाज में कहा, "गिरने से मेरी टांगों में चोट आ गई।" कुंग की आंखें जैसे मालिक से कह रही थीं कि इस बात को आगे मत बढ़ाओ। अबतक बहुत से लोग इकट्ठे हो गये थे और हंसने लगे थे। मैंने शराब गरम की  और उसे दे दी। उसने अपने फटे कोट की जेब से चार कैश निकाले और मेरे हाथ में थमा दिये। मैंने देखा, उसके हाथों में धूल-मिट्टी  लगी थी। वह शायद हाथों के बल चलकर आया था। उसने शराब का प्याला खत्म किया और लोगों के हंसी-मजाक के बीच हाथों के सहारे चला गया।

इसके बाद फिर बहुत दिन गुजर गये। कुंग दिखाई नहीं दिया। एक दिन शराबघर  के मालिक ने हिसाब देखा तो बोला, "कुंग के हिसाब में अब उन्नीस कैश पड़े हैं।"

अगले साल एक दूसरा उत्सव आया तो मालिक ने फिर वही बात दोहराई, लेकिन जब पतझड़ का उत्सव आया तो उसने उसकी बाबत कुछ नहीं कहा।

नये साल का आगमन हुआ, पर कुंग को फिर कभी हमने नहीं देखा। शायद उसकी सचमुच मृत्यु हो गई।

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