Sonbhadra District Uttar Pradesh
History of Sonbhadra, Uttar Pradesh
District Court, Sonbhadra was inaugurated on 30th March, 1990 by Hon'ble Administrative judge Dr. Jagdish Narayan Dube, High Court Allahabad. Presently there are eleven courts at headquarter Robertsganj and there are two Out line courts namely Dudhi & Anpara at Obra. There are also two courts of Special judicial Magistrate. Most of the Judicial Officers reside in court campus. Sitting of Juvenile Justice Board is done at headquarters at Lorhi two days in a week namely on Tuesday and Friday.
सोनभद्र सोनांचल की सरजमी कई मायनों में अपनी विशिष्टता के कारण प्रदेश में ही नहीं बल्कि पूरे देश के मानचित्र में भी कोहिनूर की मानिंद दैदिप्यमान है। अपनी खनिज सम्पदाओं के कारण प्रदेश में तो इसका स्थान अद्वितीय है ही साथ ही ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में भी देश के अग्रणी जनपदों में प्रथम पायदान पर मानी जाती है। यहां की सांस्कृतिक विरासतें अपने आप में एक अनूठीं सामग्रीयों को समेटे हुए है। सोनांचल की भौगोलिक दुरूहता अन्य लोगों के लिए भले ही खले लेकिन वहां के वनवासियों के लिए तो यहां परिस्थिति प्रकृति में ऐसी रची बसी है कि इसके बगैर वे जीवन की समरसता की कल्पना भी नहीं कर सकते। प्रदेश के सर्वाधिक वन क्षेत्र वाले इस जनपद के तकरीबन पांच ब्लाकों में आदिवासी संस्कृति, कला, नृत्य व गायन के कद्रदान देश के जाने माने लोग है। पर्यटन की दृष्टि से यदि इस जनपद के प्रमुख स्थलों को विकसित कर दिया जाय तो विश्व के पर्यटन मानचित्र में सोनभद्र का नाम आदर से लिया जाता है।
परिचय
पर्वत मालाओं एवं जंगलो से आच्छादित तथा प्राकृतिक सम्पदाओं से परिपूर्ण मिर्जापुर के दक्षिणांचल को दिनांक 04 मार्च, 1989 को विभाजित कर जनपद सोनभद्र का नव सृजन हुआ। यह नया जनपद दक्षिण में मध्य प्रदेश के सरगुजा एवं सीधी पूरब में बिहार प्रदेश का पलामू पश्चिम में मध्य प्रदेश का रीवा तथा उत्तर में मिर्जापुर से घिरा हुआ है। धार्मिक एवं सास्कृतिक दृष्टिकोण से मिले प्रमाणों के आधार पर रामायण एवं महाभारत काल के सांस्कृतिक चिन्ह यहां प्राप्त हुयें है। महाभारत युद्ध में जरासन्ध ने अनेक नरेशों को यहीं बन्दी बनाकर रखा था। तृतीय शताब्दी में कन्तित कान्तिपुरी नागवंशीय वाकाटक राजवंश के राजाओं की राजधानी रही है और नवीं शताब्दी तक इसका प्रभुत्व रहा है। इसी क्षेत्र में कोल राजाओं एवं आभोर वंश के प्रतापी राजाओं का भी राज्य था। इस जनपद में स्थित अगोरी दुर्ग पर गदनशाह विजयगढ़ दुर्ग पर काशी नरेश चेत सिंह एवं सोढ़रीगढ़ पर गढ़वाल राजाओं का अधिपत्य था।
इसका कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 7388.80 वर्ग किमी है जो 23.52 और 25.32 उत्तरी अक्षंाश तथा 82.72 एवं 83.33 पूरवी देशान्तर के मध्य में स्थित है। प्रशासनिक दृष्टि से इसे तहसील रावर्टर््सगंज दुद्धी एवं घोरावल तथा विकास खण्ड रावटर््सगंज चोपन चतरा नगवाँ दुद्धी घोरावल बभनी एवं म्योरपुर में विभाजित किया गया है। वर्तमान में इस जिले का मुख्यालय रावटर््सगंज में है। इसी प्रकार भूमि की बनावट एवं प्राकृतिक दृष्टि से इसे दो उप संभागों में बांटा जा सकता है।
मध्यवर्ती पठार
इस संभाग का क्षेत्र विन्ध्य पर्वक के अन्र्तगत पठारी हिस्से से होता हुआ कैमूर पर्वत श्रृंखला की अन्तिम सीमा सोननदी तक फैला हुआ है, जिसमें जनपद का 50 प्रतिशत से अधिक भाग सम्मिलित है। रावटर््सगंज चतरा नगवाँ घोरावल विकास खण्ड इसमें स्थित है। कर्मनाशा व चन्द्रप्रभा आदि अनेक छोटी पहाड़ी नदियां बहती हुई सोननदी में मिलती है। यह संभाग गंगा की घाटी से 400 फुट से लेकर 1100 फुट तक की ऊंचाई पर है।
सोनघाटी
रावटर््सगंज तहसील का चोपन विकास खण्ड एवं दुद्धी तहसील का दुद्धी बभनी तथा म्योरपुर विकास खण्ड इस उप संभाग में स्थित है जो सोननदी के दक्षित का इलाका है। सिंगरौली सोन घाटी एवं दुद्धी घाटी अपनी प्राकृतिक संपदाओं एवं उपजाऊ भूमि के लिए महत्वपूर्ण है।
जलवायु
यह जनपद गर्म तापीय क्षेत्र में आता है ठन्डक के दिनों में तापमान करीब 10 डिग्री से लेकर 17.50 डिग्री तक तथा गर्मी में 21.50 डिग्री से 40 डिग्री तक हो जाता है। जबकि जून के माह में हय 4.5 डिग्री तक तथा जनवरी में 3.5 डिग्री तक भी आ जाता है।
जाड़ा गर्मी एवं वर्षा तीनों ऋतुयें बराबर का असर डालती हैं। वर्ष जून के द्वितीय सप्ताह से शुरू हो जाती है एवं लगभग सितम्बर के प्रथम सप्ताह में समाप्त हो जाती है। मानसून मुख्यतः बंगाल की खाड़ी से आता है 80 प्रतिशत वर्ष जून से सितम्बर तथा 20 प्रतिशत शेष महीनों में होती है।
यह जनपद जल के अभाव में सूखे से सदा त्रस्त रहता है गर्मी के दिनों में तो कई-कई गांवों के लोगो को पीने का शुद्ध पानी बहुत दूर से लाना पड़ता है। केन्द्रीय पठारी भाग में भूमि की विशेष बनावट एवं स्थिति के कारण भूमिगत जल का उपयोग कर पाना बहुत खर्चीला तथा श्रमशील है। दक्षिणी भाग में जल की अपर्याप्ता के कारण कृषि कार्य कठिन हो जाता है। अतः लगभग पूरा जनपद वर्षा के जल पर ही निर्भर रहता है।
वन
सोनभद्र जनपद का लगभग 75 प्रतिशत क्षेत्रफल पहाड़ एवं वनों से आच्छादित है जिसे ओबरा एवं रेणुकूट वन प्रखण्ड में बांटा गया है। यहा आंवला बहेरा शीशम नीम जामुन महुआ बरगद एवं पीपल आदि के वृक्षों का बाहुल्य है। तेंदू की पत्ती का सर्वाधिक उत्पादन इन वनों से किया जाता है जिससे बीड़ी बनाई जाती है। इमारती लकड़ी के अलावा ईधन की लकड़ी बांस एव लकड़ी का कोयला यहां से सभी जिलों में भेजा जाता है। जिसमें आबादी का एक बड़ा समुदाय इन वनों से आजीविकोपार्जन करता है। जनपद की बेरोजगारी दूर करने के अतिरिक्त जनपद की आर्थिक दशा सुदृढ़ करने में इस वनों की महत्वपूर्ण भूमिका है।
खनिज सम्पदा
पहाड़ों से भरपूर होने के कारण जनपद के दक्षिणांचल की भूमि के गर्भ में अनेक मूल्यवान खनिज सम्पदाओं का भण्डार समाहित है। अत्यधिक गुणवत्ता का चूना पत्थर इस जनपद के अधिकांश भागों में उपलब्ध है। डोलोमाइट, कैलसाइटा, संगमरमर, गौरवट, स्वेसिव सिविल, स्वेसिव वायचलै, एण्डालूसाइड बिल्डिंग स्टोन, चीनी मिट्टी, कच्चा लोहा, माइका, कोयला, यूरेनियम एवं मैग्नइट आदि की जानकारी मिल चुकी है एवं कुछ अन्य के बारे में शोध कार्य अनवरत जारी है।
नदियां
सोननदी इस जनपद की सतत् प्रवाशील नदी है। इसके अतिरिक्त कर्मनाशा, चन्द्रप्रभा, रिहन्द एवं कनहर मध्य श्रेणी की नदियां है। वर्षा के दिनों में इनका स्वरूप उग्र हो जाता है परन्तु गर्मी में करीब करीब सूख जाती हैं इन नदियों को जगह-जगह बांध द्वारा रोककर इनके जल का उपयोग सिंचाई एवं विद्युत बनाने हेतु किया जा रहा है लगभग सभी नदियों की धारा पूरब से पश्चिम की ओर बहती है।
भूमि
कृषि योग्य भूमि इस जनपद में केवल 2.5 प्रतिशत ही है शेष भाग जंगल तथा पहाड़ों से घिरा हुआ है। यहां की मिट्टी दोमट, मटियार तथा बलुई है।
फसले
इस जनपद में समय पर वर्षा हो जाने पर धान की अच्छी खेती हो जाती है परन्तु वर्षा न होने पर केवल उसी क्षेत्र में धान पैदा हो जाता है जो यहां पर नहरों द्वारा सींचा जा सकता है। रबी की फसलों में गेंहू चना सरसों व मसूर आदि की पैदावार बहुत कम होती है खरीफ में कहीं कहीं पर धान के अतिरिक्त अरहर मक्का ज्वार बाजरा एवं महुआ आदि भी पैदा हो जाता है।
पशुपालन
पशुपालन में यहा भेड़ बकरी एवं गांव आदि के पालने का धंधा है यहां के पशु देशी नस्ल के हैं।
जनसंख्या
इस जनपद की जनसंख्या 1862612 है जिसमें से 973480 पुरूष एवं 889137 महिलायें है रोजगार की दृष्टि से जनपद की पढ़ी लिखी जनसंख्या के सिमित लोग प्रविष्ठानों में तथा गैर सरकारी या निजी क्षेत्र में कार्यरत है। कुछ लोग अपना स्वरोजगार शुरू करके आजीविका आर्जित कर रहें है। शेष कृषि एवं जंगल पर निर्भर है।
शिक्षा
इस जनपद में साक्षरता लगभग 66.18 है जिसमें से 77.19 पुरूष तथा 54.11 महिलाओं ने उच्च शिक्षा माध्यमिक एवं प्राथमिक दर्जे की शिक्षा ग्रहण की है। कुछ लोग केवल कार्य साधक ज्ञान ही रखते है। .
स्वास्थ्य
वर्तमान में सुदूर दक्षिणांचल के जंगली क्षेत्रों में यहां आदिवासियों की बस्तियां हैं। इस जनपद में एलोपैथिक, आयुर्वेदिक, होम्यापैथिक, यूनानी चिकित्सालयों एवं औषधालयों की संख्या लगभग 50 है।