Dr Amit Kumar Sharma

लेखक -डा० अमित कुमार शर्मा
समाजशास्त्र विभाग, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली - 110067

आतंकवाद

आतंकवाद

 

मुंबई कांड 26/11/2008 के बाद जनता का नेताओं के प्रति आक्रोश अद्भुत लेकिन स्वाभाविक है। इसके दो परिणाम निकलते हैं। एक अपनी साख बचाने के लिए सरकार पाकिस्तान से युध्द लड़ कर आतंकवादी ठिकानों को नष्ट कर सकती है या दूसरा एक नया - निकल सकता है। एक नई राजनीतिक संस्कृति विकसित हो सकती है। आतंकवाद अब एक मुनाफेवाला व्यवसाय या पेशा बन चुका है। दिल्ली सल्तनत के समय भाड़े के सैनिकों का एक पेशेवर वर्ग होता था। चीन आदि देशों में भी ऐसा एक पेशावर वर्ग था। आतंकवादी भाड़े का सैनिक है। आतंकवाद युध्द का नया स्वरूप है। आतंकवादी संगठनों ने हमारे देश का गहरा अध्ययन किया है। ये संगठन बड़ी सावधानी से पेशेवर (काबिल) लोगों को चुनकर प्रशिक्षित करते हैं। उनके द्वारा दिए गए वेतन किसी भी कॉरपोरेट से ज्यादा है। आला दर्जे के टेक्नोक्रेट उनके लिए काम कर रहे हैं। आधुनिकतम हथियार और जानकारियां उन्हें उपलब्ध हैं।
भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में भ्रष्टाचार के साथ भारी आर्थिक खाई का निर्माण हुआ है और सामंतवादी प्रवृतियां हमेशा मुखर रही हैं। इन तीनों देशों ने ऐसी अन्याय पूर्ण व्यवस्था रची है कि इनका युवा वर्ग आंतकवादी संगठनों के प्रति एडवेंचरस मूड में आकर्षित होता है। अब आंतकवाद एक कॉरपोरेट व्यवसाय की तरह निहायत काबिलियत और दक्षता से चलाया जा रहा है। ड्रग्स और हथियारों की तस्करी के साथ टेक्लोलॉजी की चोरी ने उन्हें विपुल धन दिया है।
भारत के पास इन से मुकाबला करने के लिए साहस भी है और साधन भी लेकिन अनुकूल दृष्टि एवं दृढ़ता का अभाव है। सेनाध्यक्षों की सलाह से एक कमांडो फोर्स बनायी जाए जिसमें मौजूदा कमांडो को शामिल करके आंतरिक सुरक्षा का स्वायत्ता - राजनीतिविहिन दस्ता तैयार किया जाए। इसमें किसी भी दल के नेता की राजनीतिक दखलंदाजी नहीं हो। इसे उच्चतम वेतन पाने वाला स्वायत्ता पेशेवर संगठन बनाना होगा जिसे टेंडर निकालकर घटिया हथियार खरीदने पर बाध्य नहीं होना पड़े। इस संकटकाल में हमारे अनगिनत आला अफसर और कमांडो नेताओं की सुरक्षा में लगाए गए हैं। वह नेता ही क्या जिसे उसकी जनता के धन पर प्रशिक्षित कमांडो की आवश्यकता है। सरकरों के तमाम तमाझाम और लाव लश्कर को घटाने का वक्त आ गया है।
साहसिक पहल यह होनी चाहिए कि पाकिस्तान में आतंकवाद के अड्डों की तलाश करने और उन्हें नष्ट करने के लिए एक बहुदेशीय दस्ता बनाया जाए। इस दस्ते में भारत, पाकिस्तान, बांगलादंश, श्रीलंका के अलावा ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, स्वीडन आदि देशों के प्रतिनिधियों को रखा जा सकता है। अमेरिका और इजरायल को शामिल करने के मुद्दे पर भारत के बुध्दिजीवियों में दो मत है।  खुफिया तंत्र की विफलता पुराने ढंग से चली आ रही नौकरशाही का प्रतिरूप है जो अंतर्राष्ट्रीय जिहादियों से निपटने के मामले में बिलकुल कारगर साबित नहीं होती।

आज देश का हर नागरिक जागरूक और आक्रोशित है। मीडिया के इस दौर में जागरूक नागरिकता की ताकत को कम करके नहीं आंक सकते। अब एक नया वोट बैंक तैयार है। किसी भी राजनेता के लिए इस शहरी, जागरूक और वाचाल मतदाता को नजरअंदाज करना और सिर्फ ग्रामीण जनता पर निर्भर रहना असंभव है। 26/11/2008 ने यह सुनिश्चित कर दिया है कि भारत का उच्च मध्य वर्ग अपनी सुविधा के खोल से बाहर निकले। ताल के मलबे से गुजरकर अब भारतीय कुलीन वर्ग आखिरकार परिपक्व व्यवहार करने के लिए मजबूर हो गया है। आज पूरा भारत लहूलुहान है और देशकी आत्मा कुपित और नाराज है। भारत अपनी आबादी के संयोजन, आंतरिक सांप्रदायिक कमजोरियों और सीमाओं में सुराख के कारण आतंकवाद के लिहाज से असुरक्षित है।

 

  डा० अमित कुमार शर्मा के अन्य लेख  

 

top