Dr Amit Kumar Sharma

लेखक -डा० अमित कुमार शर्मा
समाजशास्त्र विभाग, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली - 110067

गायत्री तत्व

गायत्री तत्व

 

लोकात्मा, वेदात्मा एवं प्राणात्मा ये तीनों ही गायत्री के तीन पाद हैं। परब्रहम परमात्मा ही चतुर्थ पाद हैं।
सम्पूर्ण छन्दों में गायत्री छन्द प्रधान है, क्योंकि वही छन्दों के प्रयोक्ता गयारण्य प्राणों का रक्षक है। सम्पूर्ण छन्दों का आत्मा प्राण है, प्राण की आत्मा गायत्री है।
गायत्री सम्पूर्ण वेदों की जननी है। जो गायत्री का अभिप्राय है, वही सम्पूर्ण वेदों का अर्थ है। विश्व-तैजस-प्राज्ञ, विराट्-हिरण्य गर्भ अव्याकृत व्यष्टि-समष्टि जगत् तथा उसकी जाग्रत-स्वप्न-सुषुप्ति-ये तीनों अवस्थाएं प्रणव की अ, उ, म इन तीनों मात्राओं के अर्थ हैं।
सर्वपालक परब्रहम प्रणव का वाच्यार्थ सर्वाधिष्ठान , सर्वप्रकाशक, सगुण, सर्वशक्ति, सर्वरहित ब्रहम प्रणव का लक्ष्यार्थ है। उत्पादक, पालक, संहारक त्रिविध लोकात्मा भग्वान तीनों व्याहृतियों के अर्थ हैं। जगदुत्पत्ति-स्थिति-संहार-कारण परब्रहम ही 'सवितृ' शब्द का अर्थ है।
गायत्री के द्वारा विश्वोत्पादक,स्वप्रकाश परमात्मा के उस रमणीय चिन्मय तेज का ध्यान किया जाता है, जो समस्त बुध्दियों का प्रेरक एवं साक्षी है। अनंत कल्याणगुणगण सम्पन्न, सगुण, निराकार परमेश्वर की उपासना गायत्री के द्वारा हो सकती है। सगुण, साकार , सच्चिदानन्द परब्रहम का ध्यान गायत्री के द्वारा किया जा सकता है। प्राणिप्रसवार्थक सूड़् धातु से सवृति शब्द की निष्पत्ति होती है। उत्पत्ति, स्थिति , एवं लय का कारण पर-ब्रह्म ही 'सवितृ' शब्द का अर्थ है।
इस दृष्टि से उत्पादक, पालक, संहारक-ब्रहमा, विष्णु , रूद्र तथा उनकी स्वरूप भूत तीनों शक्तियों का ध्यान गायत्री मंत्र से किया जाता है।
त्रिपदा गायत्री आदित्य में प्रतिष्ठित हैं। गायत्री आध्यात्म प्राण में प्रतिष्ठित हैं। जिस प्राण में सम्पूर्ण देव, वेद, कर्मफल एक हो जाते हैं, वही प्राणरूपा गायत्री सबकी आत्मा है। उपस्थान मंत्र में कहा गया है कि 'हे गायत्री ! आप त्रैलोक्यरूप पाद से एकपदी हो, त्रयीं विद्या रूप पाद से द्विपदी हो, प्राणादि तृतीय पाद से चतुष्पदि हो। अत: प्रत्यक्ष परोरजा ( परोरजा का अर्थ है सृष्टि को उत्पन्न करने वाली परा रज: शक्ति । भगवती परम रज हैं। उन्ही से संसार, जगत और सृष्टि की उत्पत्ति होती है) आपके तुरीय पाद को हम प्रणाम करते हैं।'

यह सम्पूर्ण चराचर भूत-प्रपंच गायत्री ही हैं। वाक् ही गायत्री हैं। वाक् ही समस्त भूतों का गान एवं रक्षण करती है। गायत्री पृथ्वी रूप है। पृथ्वी में सम्पूर्ण प्राणों की स्थिति है। अपने इष्ट देवता का ध्यान गायत्री मंत्र द्वारा सर्वथा उपयुक्त है। सविता शब्द सूर्य का द्योतक है। उसी की सार शक्ति सावित्री हैं। गायत्री मंत्र का जप चाहे किसी स्थान, समय एवं स्थिति में नहीं किया जा सकता। इसके लिए पवित्र देश-काल तथा पात्र की अपेक्षा है, तभी वह त्राण कर सकती हैं।

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